कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि किसानों के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती है लाभकारी Publish Date : 27/08/2024
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि किसानों के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती है लाभकारी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
पर्यांवरण किसान, और उपभोक्ताओं की सेहत को नित हो रहे नुकसान को देखते हुए परंपरागत खेती को एक बार फिर बढ़ावा दिया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों ने भी जैविक और प्राकृतिक खेती को भविष्य की खेती बताया है। इसके पीछे दलील दी जा रही है कि उत्पादन, लागत और मुनाफे के हिसाब से जैविक या प्राकृतिक खेती ही अच्छी है। इस प्रकार से किसानों को इस खेती को देर सबेर अपनाना ही पड़ेगा, इसका कोईं विकल्प नही है।
भारत में किसानों की आय बढ़ाने के लिए भारत सरकार के द्वारा कई योजनाएं चलाईं जा रही है। देश में Sustainable Farming Methods को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक और जैविक खेती को पर्यांप्त रूप स बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके पीछे अत्यधिक लागत वाली रासायनिक खेती से पर्यावरण और इंसान की सेहत के लिए उपजे खतरे से बचना भी एक बड़ा कारण है। कृषि वैज्ञानिक भी अब इस बात को मानने लगे हैं कि सर्वकल्याण के लिहाज से जहर मुक्त प्राकृतिक और जैविक खेती ही इसका स्थाई समाधान है।
पर्यावरण संबंधी शोध संस्था CSE के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है कि खर्च और आमदनी के हिसाब से रसायन मुक्त खेती ही एकमात्र मुनाफे का सौदा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जिन किसानों को समय के साथ यह बात समझ में आ रही है, वे प्राकृतिक और जैविक खेती को अपना रहे हैं। खेती की इसी परंपरागत विधा के रूप में किसानों को आज नहीं तो कल, प्राकृतिक या जैविक खेती को अपनाना ही होगा।
समग्र लाभ देने में समर्थ है प्राकृतिक खेती
शोध में खेती की लागत से जुड़े सभी Components का विस्तृत अध्ययन किया गया है। इसमें खाद, बीज, ऊर्जा, दवाएं और श्रम सहित खेती में लगने वाली सभी प्रकार की लागत और मौसम आदि से हुए नुकसान के बाद हुए उत्पादन और मुनाफे का विश्लेषण विस्तार से किया गया।
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इसके निष्कर्ष में कहा गया है कि जैविक और प्राकृतिक खेती हर लिहाज से किसानों को संपूर्ण लाभ देने में सक्षम है। इस लाभ में इस खेती का Climate Adaptive होना भी शामिल है। रिपोर्ट में इस बात पर हैरत जताई गई है कि इतने व्यापक फायदे होने के बावजूद खेती की इस विधा को अपनाने का ग्राफ बढ़ने की गति अभी भी धीमी ही है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक एवं जैविक खेती जलवायु की अनुकूलता के लिहाज से बिल्कुल उचित है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तंन की चुनौतियों का किसानों को जो नुकसान उठाना पड़ रहा है, वह प्राकृतिक या जैविक खेती करके किसान इस नुकसान से बच सकते हैं।
अध्ययन में शामिल कर्नाटक के धारवाड़ स्थित कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सी. पी. चंद्रशेखर ने बताया कि प्राकृतिक और जैविक खेती ज्यादा उत्पादन और मुनाफा देने वाली कृषि पद्वति हैं और यह बात इस शोध में भी उजागर हुई है। इस बात का परीक्षण लागत और मुनाफे का समग्र लेखा जोखा करके ही किया गया है। अध्ययन में मिट्टी, पानी, ऊर्जा, जैव विविधता, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के अलावा जीव जगत की सेहत पर प्रभाव के पहलुओं को भी शामिल किया गया।
परंपरागत खेती से प्राप्त लाभ
सीएसई की (Evidence on Holistic Benefits of Organic and Natural Farming in India) शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में प्राकृतिक और जैविक खेती के फायदों का जिक्र किया गया है। इसके अनुसार खेती की इन विधाओं में खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होता है। मिट्टी को सख्त बनाने वाले रासायनिक उर्वंरकों से इतर गोबर एवं अन्य जैविक खाद से खेत की मिट्टी का भुरभुरापन (Soil Porosity) बढ़ता है। इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता (Water-Holding Capacity) बढ़ती है। फलस्वरूप पौधों की जड़ें ज्यादा गहराई में जाने से पौधों को ज्यादा पोषक तत्व मिलते हैं।
चंद्रशेखर ने कहा कि कुल मिलाकर रसायन रहित खेती से मिट्टी की सूक्ष्मजीवी सेहत बेहतर होती है। इससे सेहत के लिहाज से पौधे मजबूत बनने के कारण जलवायु की प्रत्येक परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होते हैं। इसीलिए प्राकृतिक एवं जैविक खेती को Sustainable Farming का उपयुक्त विकल्प माना जा रहा है। इस आधार पर रिपोर्ट में प्राकृतिक खेती को संपूर्ण लाभ के लिहाज से रासायनिक खेती की तुलना में ज्यादा फायदेमंद बताया गया है।
प्राकृतिक कृषि को अपनाने की दर धीमी
रिपोर्ट के अनुसार प्राकृतिक और जैविक खेती को हर लिहाज से लाभदायक मानते हुए सरकार इसे बढ़ावा दे रही है। इनमें केंद्र और राज्य सरकारें परंपरागत कृषि विकास योजना, पूर्वाेत्तर राज्यों के लिए चल रहा Mission Organic Value Chain vkSj National Mission on Natural Farming सहित अन्य योजनाएं शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इसके बावजूद प्राकृतिक और जैविक खेती का दायरा बढ़ने की गति अभी भी धीमी ही बनी हुई है। इसकी वजह यह है कि पिछले 5-6 दशकों में किसानों द्वारा अपनाई गई रासायनिक खेती को छोड़ कर फिर से परंपरागत खेती को अपनाना जोखिम या चुनौतीपूर्ण काम लगता है।
सरकार के आंकड़ों से इस स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है, इसके अनुसार मार्च 2023 तक देश भर में बोई गई फसलों के क्षेत्रफल में प्राकृतिक और जैविक खेती की हिस्सेदारी महज 4.2 प्रतिशत थी। इस अवधि में बुआई करने वाले 14.6 करोड़ किसानों में Organic Farmers की भागीदारी महज 3 फीसदी तक ही पहुंच पाई थी। इसी कारण से सरकार की भी चिंता है कि हर लिहाज से काफी लाभदायक साबित होने वाली प्राकृतिक एवं जैविक खेती को अपनाने वाले किसानों की संख्या में अपेक्षित इजाफा नहीं हो पा रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।