
मृदा स्वास्थ्य कार्ड आवश्यकता और उपयोग Publish Date : 11/06/2025
मृदा स्वास्थ्य कार्ड आवश्यकता और उपयोग
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
उच्च उत्पादकता वाली टिकाऊ खेती के लिये मिट्टी का स्वस्थ होना नितान्त आवश्यक है। प्रायः किसान मिट्टी परीक्षण आधारित अनुशंसा के बिना ही उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं। जिससे बमुश्किल नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की ही आपूर्ति हो पाती है तथा गौण एवं सूक्ष्म तत्वों की लगातार अनदेखी होती रहती है। फलस्वरूप मिट्टी में बहुपोषक तत्वों की कमी तेजी से बढ़ी है। मिट्टी परीक्षण से प्राप्त आंकड़ों से इसकी पुष्टि हो चुकी है। परन्तु मृदा स्वास्थ्य तथा उस पर आधारित उवर्रक संस्तुतियों संबंधी जानकारी के अभाव में वे प्रायः उर्वरकों का तदर्थ एवं अनावश्यक उपयोग करते हैं। इससे उत्पादन लागत बढ़ती है तथा धरती से होने वाले आर्थिक लाभ में गिरावट आती है।
मृदा स्वास्थ्य संवर्धन एवं उर्वरकों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने देश के हर किसान को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराने का संकल्प किया है। यह भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के द्वारा चलाई जा रही एक योजना है। इसका कार्यन्वयन सभी राज्य के कृषि विभागों के माध्यम से किया जा रहा है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड का उद्देश्य प्रत्येक किसान को उसके खेत की मृदा में मौजूदै पोषक तत्वों की स्थिति की सही जानकारी देना है और उन्हें उर्वरकों की सही मात्रा के प्रयोग और आवश्यक सुधारों के संबंध में भी सलाह देना है ताकि लंबी अवधि के लिए मृदा स्वास्थ्य को कायम रखा जा सके। मृदा स्वास्थ्य कार्ड नामक केन्द्र सरकार की योजना के तहत देश के सभी 14 करोड़ जोत धारकों को मार्च 2017 तक मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित करने का लक्ष्य रखा गया था। राज्य सरकार, कृषि विभाग के स्टॉफ या आउटसोर्स एजेंसी के स्टॉफ के माध्यम से नमूने एकत्रित करेगी। इस कार्य में राज्य सरकारें राज्य कृषि महाविद्यालयों अथवा विज्ञान कॉलेजों के विद्यार्थियों को भी शामिल कर सकती हैं।
इस योजना के लिए वर्ष 2015-16 में 200 करोड़ रुपये की तुलना में वर्ष 2016-17 के लिए कुल 360 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। यह गत वर्ष की तुलना में 180 प्रतिशत की वृद्धि है।
स्थल विशिष्ट पोषक तत्व प्रबंधन उर्वरकों का मृदा परीक्षण आधारित प्रयोग सम्मलित करते हुए उर्वरक प्रयोग का प्रचार-प्रसार महत्वपूर्ण कार्य है। अम्लीय क्षारीय मृदाओं में विभिन्न प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है। छिड़काव एवं फव्वारा सिंचाई के माध्यम से जल विलायक उर्वरकों के प्रयोग से सम्मिलित उर्वरता जल और उर्वरकों के प्रयोग से बेहतर नतीजे मिलने की प्रत्याशा है। अतः यह आवश्यक है कि अम्लीय/क्षारीय मृदाओं में मृदा सुधारकों के प्रयोग के साथ-साथ पोषक, तत्वों के पादप उपलब्ध रूपों के अनिवार्य स्रोतों के प्रयोग को बढ़ावा दें।
भारत में, सामान्यतः छोटे सीमांत किसानों द्वारा विभिन्न फसल प्रणालियों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश हेतु व्यापक उर्वरक सिफारिशों का अनुसरण किया जाता है, जो कभी-कभार ही मृदा उर्वरता आवश्यकता से मेल खाती है। इसके अतिरिक्त अक्सर गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही भारत सरकार एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (आईएनएम) को बढ़ावा दे रही है अर्थात मृदा स्वास्थ्य और फसल उत्पादकता कायम रखने के लिए जैव उर्वरकों और मृदा जांच पर आधारित स्थानीय उपलब्ध कार्बनिक खादों के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों का संतुलित एवं उचित प्रयोग करना समाचीन होगा।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।