प्रदेश में मिट्टी के स्वास्थ्य में भारी गिरावटः सुधार के लिए काम जारी Publish Date : 21/01/2025
प्रदेश में मिट्टी के स्वास्थ्य में भारी गिरावटः सुधार के लिए काम जारी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
रासायनिक खादों का बहुतायत और अविवेकपूर्ण तरीके से उपयोग और फ्लड इरिगेशन पद्वति के चलते प्रदेश की मृदा की शक्ति दिन प्रति दिन क्षीण होती जा रही है। ऐसे में अभी भी हमारे पास रासायनिक खादों का संतुलित प्रयोग और प्राकृतिक खेती के तौर तरीकों को अपनाकर इसकी दशा को सुधारने का विकल्प मौजूद है। इसके साथ ही बीज उत्पादन को बढ़ावा देने वाली नीति भी लानी होगी।
कृषि उत्पादन आयुक्त मोनिका एस गर्ग ने वाराणसी स्थित अंतर्राष्ट्रीय चावल शोध संस्थान में पहुँच कर यह बात कही है। उन्होनें प्रदेश में खा़द्य संकट, प्राकृतिक खेती, एफपीओ योजना के सहित विभिन्न विषयों पर किसान जागरण डॉट कॉम के प्रतिनिधि से बातचीत की।
प्रभावी बीज नीति को बनाकर किसानों को जोड़ना होगा
मोनिका एस गर्ग ने कहा कि सीड एक्ट में सर्टिफाइड सीड की बात है जो कि प्रदेश में उपलब्ध है। अभी तक हम दूसरे राज्यों से बीज आयात करते थे। इस आयात का कारण है कि प्रदेश का क्लाइमेट कुछ सीड्स के उत्पादन के लिए अनुकूल नही है, तो वहीं कुछ बीज उत्पादन के लिए अनुकूल भी है।
हमारे प्रदेश काफी बड़ा होने के साथ ही नौ एग्री क्लाइमेट जोन में विभाजित किया गया है जो हमारी ताकत हैं। ऐसे में हम अलग अलग जोन में वहां के अनुकूल बीजों का उत्पादन कर दूसरे राज्यों को बेच सकते हैं। जिस प्रकार अभी हम मटर के बीज दूसरे राज्यों को भेज रहे हैं। इसके लिए एक बीज नीति बनाकर उससे किसानों को जाड़ना होगा, इस पर अभी काफी शोध भी किए जा रहे हैं।
60 प्रतिशत से अधिक लोग जुड़े हैं कृषि से और महिलाओं की भूमिका भी है अहम
हम किसानों की आय में वृद्वि करने की बात कर रहे हैं और देश में 60 प्रतिशत से अधिक लोग सीधे तौर पर कृषि से जुड़े हुए हैं। हालांकि, महिलाओं का पारंपरिक कृषि में बहुत बड़ा योगदान रहा है, परन्तु अभी भी हम आधी जनसंख्या की प्रतिभागिता का सही मूल्यांकन नही कर पाते हैं।
कृषि में जो महिलाएं काम करती थी, वह बीज बचाती थी और कृषि विविधिकरण किया करती थी। घर के समीप यदि थोड़ी सी भूमि मिल जाए तो वह उसमें मूली, गाजर और पालक जैसी सब्जियों की बुवाई कर देती हैं। प्रत्येक माँ यही चाहती है कि उसके बच्चों के खाने की थाली रंगीन होने के साथ ही भरी हुई भी हो।
मोनिका ने कहा कि वाराणसी अब निर्यात का हब बनने जा रहा है और यहां से सब्जियों का निर्यात किया जा रहा है। यमुना एक्सप्रेस-वे में जेवर एयरपोर्ट के पास निर्यात के लिए एक बड़ा हब तैयार किया जा रहा है। यहां से हम अपने कृषि उत्पादों का निर्यात आसानी से कर पाएंगे। अभी तक हम एक लैंड लॉक स्टेट हैं। हमारे पास पोर्ट नही होने के कारण बहुत से उत्पादो का निर्यात दूसरे राज्यों में ले जाकर करना पड़ता है, जिसकी गिनती हमारे राज्य के निर्यात में नही हो पाती है।
गंगा के किनारे रसायन मुक्त खेती का प्रयास
मोनिका एस गर्ग ने कहा कि नमामी गंगे परियोजना के अंतर्गत हम गंगा के किनारों पर हम रसायन मुक्त खेती करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए भी एक कार्य योजना बनाई जा रही है।
पारंपरिक खेती के साथ आधुनिक तकनीक को जोड़ना बहुत आवश्यक
मृा पीक्षण प्रोग्राम पर जोर देने के साथ ही इस कार्य में महिलाओं की सहभागिता को भी बढ़ाया जा रहा है। इसके लिए सात हजार कृषि सखियों को मृदा परीक्षण के सम्बन्ध में प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। प्राकृतिक खेती हमारा एक पुरातन ज्ञान है जिसके साथ हम आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर एक रसायन मुक्त खेती करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
डीएपी के स्थान पर अन्य विकल्पों का प्रयोग
इसके सम्बन्ध में मोनिका एस गर्ग ने कहा किसानों को चाहिए कि वह संतुलित खादों का प्रयोग करें। वर्तमान में किसान डीएपी के प्रयोग पर अधिक ध्यान देते हैं, जबकि डीएपी में केवल अमोनिया एवं फॉस्फोरस घटक होते हैं। इसके लिए हम अभियान चलाएंगे कि किसान डीएपी के ऊपर निर्भरता को कम करके एनपीके और टीएसपी का प्रयोग करने पर अधिक ध्यान दें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।