हिमालय की जलधाराओं में व्याप्त रोजगार की असीम सम्भावनाएं      Publish Date : 13/12/2024

हिमालय की जलधाराओं में व्याप्त रोजगार की असीम सम्भावनाएं

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

‘‘नए भारत के लोग शुद्व जल को महंगी कीमतो पर खरीदने के लिए तैयार हैं। ऐसे में हम जल का आयात करने के स्थान पर अपने देश में ही उच्च क्वालिटी का जल उपलब्ध करा सकते हैं।’’

                                                         

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिमालय पर्वत श्रृंखला केवल पर्यावरण के संरक्षक ही नही, अपितु यह जंगल और जल का अपार भंड़ार भी अपने आप में समेटे हुए है। करीब 15 हजार से अधिक छोटे-बड़े ग्लेशियर इस व्यापक जल भंड़ार के पोषक हैं। इन ग्लेशियरों से ही अनेक नदियां निकलती हैं।

हिमालय के क्षेत्र में व्याप्त लाखों जलस्त्रोत खनिज (मिनिरल) से भरपूर जल की आपूर्ति करते हैं। आज यह पानी धरती की कोख से निकलकर आता है जो कि प्रदूषण रहित जल होता है। इस पानी को बिना छाने या बिना किसी मशीन से स्वच्छ करके सेवन किया जा सकता है। इस जल की सीधे पैकेजिंग करने से देश की बड़ी आबादी को रोजगार प्राप्त हो सकता है।

हिमालय उच्च वर्षा, भूमिगत जल स्त्रोतों की प्रचुरता में योगदान प्रदान करने के साथ ही प्रमुख जीवनदायिनी नदियों जैसे- गंगा, यमुना, कोसी, शारदा, सिंधु और ब्रह्यपुत्र आदि का उद्गम स्थल भी है। हिमालय के क्षेत्र में जलसंपदा की कोई कमी नही ऐसे में यदि आवश्यकता है तो केवल इसके उचित प्रबन्धन करने की। जल-जीवन मिशन की रिपोर्ट के अनुसार, होने वाली प्रति एक लाख मौतों में से 36 लागों की मौत असुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की अनदेखी चलते होती है।

                                                    

हिमालय की प्राकृतिक जलधाराओं का जल स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होता है, विशेष रूप से ‘‘जंगल की वनस्पतियों का राजा’’ कहा जाने वाले बांज (ओक) के जंगलों का पानी। देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के शोध से ज्ञात होता है कि बांज के जंगलों से निष्काशित होने वाले नदी/स्रोत का पानी गुणवत्ता के मामले में उच्चतम है। हिमालय से निकलने वाली तमाम नदियों का जल उच्च कोटि का है, परन्तु सवाल यह है कि क्या हम उपलब्ध इस जल का पूरा लाभ ले पा रहे हैं?

जापान, जर्मनी, अमेरिका, नार्वे, ब्राजील और अन्य विभिन्न देशों ने प्रीमियम जल के बाजार का पहले से ही एक महत्वपूर्ण ब्रांड का अधिग्रहण किया हुआ है, जो समझदार कहे जाने वाले ग्राहकों को 200 रूपये प्रति लीटर की दरों पर उपलब्ध करया जा रहा था। वर्तमान में भी प्रीमियम प्राकृतिक जल स्त्रोतों से प्राप्त शुद्व जल के प्रति वैश्विक आकर्षण बना हुआ है और यह निरंतर बढ़ता जा रहा है। आज लोग स्वच्छ पानी के लिए अधिक पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं।

एक चर्चा का विषय रहता है कि कुछ प्रसिद्व भारतीय जैसे विराट कोहली 4,000 रूपये प्रति लीटर की कीमत वाला एवियन वाटर का सेवन करते हैं तो मलाइका अरोरा 3,200 रूपये प्रति लीटर की कीमत वाले एवॉक्स ब्रोड को अपनी प्राथमिकता में रखती हैं। उक्त चौंकाने वाली कीमतें न केवल जल की गुणवत्ता एवं उसकी शुद्वता को दर्शाती हैं, अपितु यह स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और प्रीमियम प्राकृतिक पानी की बढ़ती मांग को भी स्पष्ट करती हैं।

                                                               

वर्तमान में, एक बड़ी मात्रा में महंगा जल विदेशों से आयात किया जाता है, जबकि इसके विपरीत हम अपने देश में ही इसी गुण्वत्ता वाले पानी की व्यवस्था कर सकते हैं। हमारे अपने शुद्व जल स्त्रोतों का प्रमाणीकरण और व्यवसायीकरण करने से न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी सिद्व होगा, बल्कि हमारी स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ करते हुए आत्मनिर्भर बनाने का एक महत्वपूर्ण काम भी करेगा।

उत्तराखण्ड़ के ग्रामीण विकास और प्रवासन आयोग के अनुसार, पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार के कम अवसर लगभग (50.16 प्रतिशत) युवाओं के पलायन का एक महत्वपूर्ण कारण है। इन पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक जल स्त्रोत रोगार का एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं। हिमालयी राज्यों की सरकारें यदि चाहें तो इस काम लिए अपने-अपने प्रदेशों में किसी गांव में स्थानीय युवाओं की कम्पनी अथवा सहकारी समिति आदि को बनाकर मिनिरल वाटर प्रोजेक्ट आरम्भ कर सकती हैं। इससे हमें एक अन्य लाभ, यह प्राप्त होगा जब लोग इन प्राकृतिक जल स्त्रोतों में अपनी आजीविका को तलाश करेंगे तो वह सूखते जा रहे जल स्त्रोतों को बचाने का भी जी-तोड़ प्रयास करेंगे। इसी प्रयास से जल, जंगल तो बचेंगे ही साथ ही यह आमदनी का एक साधन भी बनेंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।