असफलता के बाद सफलता के एक कदम और करीब आ सकते है      Publish Date : 19/11/2024

    असफलता के बाद सफलता के एक कदम और करीब आ सकते है

                                                                                                                                                                प्रोफसर आर. एस. सेंगरं

आज लगभग प्रत्येक व्यक्ति कल्पना लोक में जी रहा है, उसके मन में उथल-पुथल चलती रहती है कि ऐसा होगा तो क्या होगा और अगर ऐसा ना हुआ तो क्या होगा। ऐसे प्रश्नों के जाल में अक्सर हम स्वयं को उलझते रहते हैं। वास्तव में हम अपनी असफलता से डरते हैं संभवत ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं होगा जो यह दावा कर सके कि उसने कभी भी कोई असफलता नहीं देखी।

                                                        

बचपन में जब शिशु अपने दोनों हाथों और घुटनों के बाल परिश्रम करके चलने की कोशिश करता है, तब क्या होता है क्या वह पहले प्रयास में ही चलने में सफल हो जाता है। ना जाने कितनी बार बालक रोते-रोते गिरता है, किंतु उसके बावजूद वह फिर से चलने की ठान कर उठ खड़ा होता है।

जब बचपन में असफल होते-होते हुए भी हम सफलता की सीढ़ियां चढ़ना सीख जाते हैं तो फिर व्यस्त होने के बाद ऐसी सीख को क्यों विस्मृति कर देते हैं। जबकि हमारे पास प्रेरणा के लिए ऐसे कई प्रेरक व्यक्तियों के उदाहरण भी उपलब्ध होते हैं, जिन्होंने असफलता के हर कदम को सफलता की सीढ़ी बनाकर इसी भाव के साथ सफलता हासिल की और वह हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए।

                                                                   

उन्होंने असफलता को व्यक्तिगत रूप से न लेते हुए एक प्रतिक्रिया के रूप में देखा और अपनी रणनीति का पुनः मूल्यांकन कर इच्छित परिणामों को प्राप्त किया। अतः हमें भी असफलता की स्थिति में स्वयं को ही समझ कर हार मानकर नहीं बैठ जाना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक असफलता के साथ ही हम सफलता के एक कदम और करीब आ जाते हैं। ध्यान रखें कि आप जितना परिश्रम करते जाते हैं, मुश्किलें उतनी ही आपके समक्ष झुकती चली जाती हैं।

अपने वास्तविक रूप से असफलता केवल यही सिद्ध करती है कि हमने सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया। हमें सफलता चाहिए तो आज से ही प्रत्येक असफलता के साथ कुछ न कुछ नई सीख लें और उसे प्राप्त बहुमूल्य अनुभवों से अपने जीवन को समृद्ध करे। क्योंकि जो अपनी राह स्वयं बनाते हैं वही सफलता के शिखर पर चढ़ते है। इसके विपरीत जो लोग दूसरों की दिखाई गई राह पर चलता है तो सफलता भी उसका मुंह दूर से ही ताकती रहती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।