करियर चुनने से पहले काउंसलिंग जरूरी      Publish Date : 05/11/2024

                    करियर चुनने से पहले काउंसलिंग जरूरी

                                                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

करियर की प्लानिंग में काउंसलिंग अहम भूमिका निभाती है। इससे छात्र का लक्ष्य स्पष्ट होताहै और उसकी मंजिल आसान हो जाती है। काउंसलर छात्रों के दिमाग को फिल्टर करते हुए उनके अंदर चल रहे भटकाव को दूर करने का काम करते हैं। इससे छात्रों का लक्ष्य स्पष्ट होता है और वे गलत करियर चुनने से बच जाते हैं। काउंसलिंग क्यों जरूरी है और इसके क्या-क्या फायदे हैं। आज हम आपको बता रहे हैं।

                                                        

दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्र पढ़ाई के साथ-साथ अपने करियर को लेकर भी चिंता की स्थिति में रहते हैं। इन सब के बीच उन्हें रिजल्ट को लेकर भी मैनेज करना होता है कि कम अंक आने पर वोकेशनल कोर्स कहां तक उचित है। इन स्थितियों में बच्चों को सबसे अच्छा गाइड कर सकते हैं काउंसलर्स। काउंसलिंग को लेकर छात्रों के मन में कई तरह का भ्रम होता है।

उन्हें लगता है कि इस प्रक्रिया के दौरान उनका टेस्ट लिया जाएगा और उत्तर न बता पाने की स्थिति में उनकी खिंचाई होगी। या बेइज्जती होगी, जबकि हकीकत में होता कुछ और है। इसमें सबसे पहले छात्र से उसके मन की बात जानने की कोशिश की जाती है कि उसकी रुचि किस विषय में है, वह आगे क्या करना चाहता है, उसकी सोच किस तरह की है, उसकी विश्लेषणात्मक क्षमता कैसी है और वह कितनी फीस पर पाने में सक्षम है।

कई बार बातचीत से काउंसलर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचपाते तो वे चच्चे का एप्टिट्यूड टेस्ट लेते हैं। काउंसलर उसकी बातों और रुचि की गंभीरता से आकलन करते है और उसके बाद ही किसी निष्कर्ष तक पहुंचते है। करियर काउंसलर्स बच्चों के दोस्त बनकर उनकी प्रतिभा का आकलन करते हैं और फिर उन्हें गाइड करते हैं। इसलिए जब भी आप अपने करियर के बारे में सोचें तो उससे पहले एक बार करियर काउंसलर से जरूर बात कर लें।

रोड मैप बनाने में मदद करते हैं काउंसलर्स

तेजी से सामने आती संभावनाओं के बीच छात्र अपने लिए विकल्प चुनने में स्वयं को असहज समझने लगते हैं। उन्हें यह डर सालता रहता है कि कोर्स या कॉलेज चुनने के लिए उठाया गया उनका कदम कहीं आगे चलकर गलत न साबित हो जाए। किसी हद तक उनकी यह परेशानी उचित भी रहती है, क्योंकि अनुमानित तौर पर 17-18 साल की उम्र तक बच्चे इतने परिपक्व नहीं होते कि वे यह तय कर सकें कि उनके लिए कौन-सा प्लेटफॉर्म उपयुक्त होगा।

पेरेन्ट्स यदि सक्रिय हैं तो उनकी इस परेशानी का हल निकल आता है, अन्यथा चह इस भंवरजाल में उलझते ही चले जाते हैं। छात्रों के सामने यह परेशानी न आए, इसके लिए यह जरूरी हो जाता है कि छात्र बोर्ड की परीक्षाएं समाप्त होते ही निश्चिंत न हो जाएं, बल्कि उन्हें जब भी खाली समय मिलता है, उसमें अपने लिए सही कोर्स, कोचिंग सेंटर अथवा कॉलेज का चयन करने में उस समय का उपयोग करें। अपने इस काम को वे काउंसलर्स, टीचर्स, इंटरनेट एवं पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आसान बना सकते हैं। खुलकर उनसे अपने मन की बात करें और जिस भी क्षेत्र में आपकी दिलचस्पी हो उसके बारे में उन्हें स्पष्ट रूप से बताएं।

भविष्य आपका है, आपके दोस्त का नहीं

                                                                

छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा का दौर भी खूब चलता है। यदि कोई मित्र बारहवीं में मैथ्स के बाद आगे चलकर अपने लिए मैकेनिकल इंजीनियरिंग में संभावनाएं देखता है तो उसका दूसरा साथी भी उसी नाव पर सवार होना चाहता है, यह जानते हुए भी कि वह सिविल इंजीनियरिंग में बेहतर कर सकता है। कई बार दोस्तों के बहकावे में आकर भी छात्र अपनी अभिरुचि को खूंटी पर टांग देते हैं।

इसके पीछे उनकी भावनात्मक कमजोरी होती है। वे भावनात्मक रूप से फैसला ले लेते हैं। आपके दोस्त का मजबूत पक्ष मैकेनिकल हो सकता है, पर आप भी उसमें पारंगत हों, यह कतई भी जरूरी नहीं होता। अतः आपको सलाह है कि आप उसी सब्जेक्ट को आधार बनाकर आगे बढ़ें, जिसमें आपकी पकड़ हो। ऐसा करके आप सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य तक पहुंच सकेंगे। किसी भी क्षेत्र में करियर बनाने के फैसला लेने से पहले स्वयं अपना आकलन करें और सोचें कि आप किस क्षेत्र में अधिक बेहतर कर सकते हैं।

ऐसे करें दुविधा कम

अमूमन लोगों को लगता है कि काउंसलर्स, काउंसलिंग की प्रक्रिया के दौरान बहुत अधिक पैसे लेते होंगे, जबकि वर्तमान समय में अधिक खर्च से बचने के लिए कुछ आसान रास्ते भी मौजूद हैं। इसके लिए यदि छात्र चाहे तो इंटरनेट के माध्यम से अपनी ऑनलाइन काउंसलिंग भी करा सकते हैं। यदि छात्र फोन अथवा इंटरनेट के जरिए काउंसलिंग करा रहा है तो उसका खर्चा इंटरनेट या फोन के खर्च तक ही सीमित होता है।

इसी के साथ विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में काउंसलिंग से जुड़े कॉलम आते रहते हैं, वह चाहें तो वहां पत्र या ई-मेल भेजकर अपनी दुविधा को कम खर्च में भी दूर कर सकते हैं। कई ऐसी वेबसाइट्स भी हैं, जहां आप ऑन-लाइन पेमेंट करके चैट के द्वारा अपनी काउंसलिंग करा सकते हैं।

अभिभावकों की भी होती है काउंसलिंग

अधिकतर मां-बाप अपने बच्चों को उनकी मर्जी के बिना उन्हें अपनी मनमर्जी से ही कोर्स करने के लिए बाध्य करते हैं। ऐसे में काउंसलर उन्हें भी उचित सलाह देते हैं और उन्हें उनके बच्चे के सम्बन्ध में अच्छे-बुरे को अच्छी तरह से समझाते हैं।

बच्चे भी करते हैं काउंसलिंग

परीक्षा के बाद छात्र की जो भी इच्छाएं होती हैं, उनसे छात्रों पेरेन्ट्स को भली-भांति अवगत होना बहुत जरूरी है। अब यह छात्र पर निर्भर करता है कि वह अपने पेरेन्ट्स को भरोसे में लेने के लिए किस तरह उनकी काउंसलिंग करता है। यदि किसी कोर्स अथवा कॉलेज पर आप और आपके पिता में मतभेद है तो उनके साथ बैठकर उस पर अपनी सोच व मजबूत विन्दुओं से उन्हें अवगत कराएं। हो सकता है उन्हें आपकी बात सही लगे और वे आपके फैसले का समर्थन करें।

अक्सर पेरेन्ट्स की यह कमजोरी होती है कि जो कुछ वह अपने समय में स्वयं हासिल नहीं कर पाए होते, वह उसे अपने बच्चे के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं। इसी प्रकार के मनोभावों को लेकर वे बच्चे पर अपनी पसंद को थोपते हैं। आप उनका भरोसा बनाए रखते हुए उन्हें इस मनोस्थिति से बाहर ला सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।