सेरीकल्चर इंडस्ट्री में हैं रोजगार की असीम संभावनाएं Publish Date : 04/11/2024
सेरीकल्चर इंडस्ट्री में हैं रोजगार की असीम संभावनाएं
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
रेशम के कीटों को पालकर इन कीटों से रेशम बनाने के उद्योग को सेरीकल्चर या रेशम उत्पादन कहलाता है। सेरीकल्चर मूलतः ग्रीक भाषा के शब्द सीरिकस से लिया गया है जिसका अंग्रेजी में अर्थ सिल्क तथा हिंदी में रेशम होता है, वहीं कल्चर का अंग्रेजी में अर्थ रिअरिंग यानी कि पालन पोषण करना होता है। वैसे सेरीकल्चर एक कृषि आधारित कुटीर उद्योग है, जिसका क्षेत्र बहुत बड़ा है।
यह उद्योग केवल रेशम के कीट पालन और रेशम उत्पादन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि शहतूत की खेती, शहतूत के पेड़ों पर रेशम के कीट पालन, रेशम फिलोमेट निकालने के लिए कोकून की रीलिंग, डाई करना, बुनना, प्रिटिंग और तैयार करने संबंधित तमाम गतिविधियं भी इसी उद्योग का हिस्सा है। रेशम तैयार करने से लेकर रेशम के कपड़ों की फिनिशिंग तक के सभी कार्य सेरीकल्चर के अन्तर्गत आते हैं।
सेरीकल्चर उद्योग को कम लागत लगाकर आरम्भ किया जा सकता है। श्रम जनित होने के कारण इस उद्योग में विभिन्न स्तरों पर रोजगार सृजन की भरपूर संभावनाएं मौजूद होती है, देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह एक अति उत्तम कुटीर उद्योग है, जो ग्रामीण पुरुषों के साथ ही साथ ग्रामीण महिलाओं को भी रोजगार प्रदान करता है।
सेरीकल्चर के लिए तकनीकी और विशेषज्ञ के रूप से दक्ष होना बेहद जरूरी है। उन्नत और प्रगतिशील शोधकर्ता सेरीकल्चर को अब एक इंडस्ट्री में परिवर्तन कर चुके हैं। सेरीकल्चर कृषि क्षेत्र की एक नकदी फसल है, जो बहुत जल्द आमदनी देने लगती है। इस उद्योग की एक नहीं बल्कि कई विशेषताएं हैं।
यह एक पर्यावरण के अनुकूल उद्योग है। सेरीकल्चर कृषि एवं अन्य घरेलू कामों के साथ-साथ भी किया जा सकता है। भारत, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली, डेनमार्क, स्वीडन, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, जापान, आस्ट्रिया और आस्ट्रेलिया आदि ऐसे देश हैं जहां रेशम की सर्वाधिक खपत होती है।
भारत में लगभग हर प्रकार के रेशम का उत्पादन किया जाता है। रेशम के व्यावसायिक व्यवसाय में पांच सर्वाधिक डिमांड वाली किस्में शहतूत, टसर, ओकटसर, इरी और मूंगा बड़ी मात्रा में भारत में उत्पादित की जाती हैं। टसर और इरी सिल्क के उत्पादन में तो भारत दुनिया में सबसे अग्रणी देश है। यही नहीं रेशम आयात में भी भारत का नंबर सबसे आगे है।
पिछले एक दशक में सिल्क इंडस्ट्री में जबर्दस्त उछाल देखा गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, भविष्य में यह कारोबार और फलेगा और फूलेगा।
सेरीकल्चर के विस्तार को देखते हुए इस क्षेत्र में रोजगार की भी अपार संभावनाएं उपलब्ध हैं। सेरीकल्चर के योग्यता धारक उम्मीदवार विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में लेक्चरर, प्रोफेसर एवं लैब-असिस्टेंट आदि के जैसे पदों पर कार्य कर सकते हैं।
केंद्र सरकार की एजेंसियों जैसे सिल्क-बोर्ड, कृषि विज्ञान केंद्र में आदि संस्थानों में भी इनके लिए पद होते हैं। सेरीकल्चरिस्ट निजी और सरकारी बैंकों के एग्रीकल्चर लोन सेक्टर में बतौर अधिकारी और मैनेजर कार्य कर सकते हैं। इसके अलावा यह सेरी कल्चर फर्म, सिल्करी लिंग, सिल्क वीविंग, डाइंग प्रिटिंग और स्पीनिंग मिलों में भी मैनेजर बन सकते हैं।
कई गैर-सरकारी संगठनों में भी इनके लिए पर्याप्त अवसर मौजूद होते हैं। यह केंद्र सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं का प्रचार प्रसार करने वाले एनजीओ में भी मैनेजर के पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसके अलावा वह अपना स्वयं का रेशम व्यवसाय भी र्स्टाट कर सकते हैं। इस उद्योग की स्थापना में नाबार्ड और कई सरकारी बैंक ऋण सहायता भी उपलब्ध कराती रही हैं।
रेश्म उद्योग के विभिन्न शिक्षण संस्थान
- सेन्ट्रल सेरी कल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, मैसूर
- कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, बैंगलूरु
- शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर
- शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ जम्मू
- दिल्ली यूनिवर्सिटी, बीएससी एग्रीकल्चर
- शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ जम्मू फैकल्टी ऑफ एग्रीकल्चर जम्मू (तवी)
- यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस यूएएस, बेंगलूरु
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।