कौशल विकास की दिशा सही रोजगार स्वरोजगार की बढ़ेगी असीम संभावनाएं

  कौशल विकास की दिशा सही रोजगार स्वरोजगार की बढ़ेगी असीम संभावनाएं

                                                                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

                                                                            

आर्थिक सर्वेक्षण में श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 के हवाले से बताया गया है कि 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के मात्र 4.4 प्रतिशत युवाओं ने ही औपचारिक रूप से व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जबकि अन्न 16.6 प्रतिशत युवाओं ने अनौपचारिक माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त किया है। रोजगार और कौशल विकास को प्राथमिकता पर रखते हुए सरकार ने इशारा किया है कि मोदी सरकार के 3.00 कार्यकाल में सरकार इस क्षेत्र के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलने जा रही है। सर्वेक्षण में सरकार की ओर से दावा किया गया है कि वर्ष 2017-18 से वर्ष 2022-23 की अवधि में ग्रामीण शहरों और महिला पुरुष यानी लिंग वर्गीकरण सहित सामाजिक आर्थिक वर्गीकरण में कुशल श्रमबल के अनुपात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

मसलन 2017-18 में 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के 2.5 प्रतिशत युवा कुशल श्रेणी में थे, जबकि वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 4.4 प्रतिशत हो गया। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में इसी समाधि में यह आंकड़ा 1.7 से बढ़कर 3.4 प्रतिशत, शहरों में 4.4 से 7.2 प्रतिशत हो गया। जबकि कुशल महिलाओं के आंकड़े में लगभग दुगनी वृद्धि हुई है। यह 2.2 से बढ़कर 42 प्रतिशत पर पहुंच गया है। सरकार ने यह भी बताया है कि पिछले बजट में 30 स्किल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर स्थापित करने की घोषणा की गई थी।

वाराणसी और भुवनेश्वर में केंद्र शुरू कर दिए गए हैं, बाकी के लिए स्थान का चयन हो चुका है और पहले चरण में जल्द ही साथ नए केंद्र स्थापित किए जाएंगे।

स्किल गैप को कम करने में इंटर्नशिप महत्वपूर्ण

                                                                    

सर्वेक्षण में सरकार ने संभावनाओं के साथ चुनौतियों की ओर भी इंगित किया है जैसे कि स्किल गैप को कम करने में शिक्षिण, प्रशिक्षण कार्यक्रमों यानी इंटर्नशिप को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन शिक्षा जगत और उद्योग के बीच समन्वय की कमी है। बुनियादी ढांचा पर्याप्त नहीं है इसके अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण को एकेडमिक शिक्षा से कमतर मानने की नकारात्मक धारणा है वह सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। सबसे ज्यादा नियोक्ता कुशल कार्यबल से ही लाभान्वित होते हैं। वह कौशल विकास के लिए सुविधाओं का विकास कर सकते हैं बशर्तें कि राज्य सरकारें उनका सहयोग करें।

  • आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 51.3 प्रतिशत नौजवान नौकरी पर रखने के योग्य ही नहीं।

सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि देश में 51.3 प्रतिशत नौजवान नौकरी पर रखने के योग्य ही नहीं है। 63 प्रतिशत कंपनियों ने बताया कि आईटी, इंजीनियरिंग सर्विसेज और सेल्स में योग्य श्रमिकों का अभाव है। अकादमी की मदद से श्रमिकों को कुशल बनाया जा सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि विभिन्न राज्यों में कई ऐसे काम हैं, जिन्हें महिलाओं को करने की अनमति नहीं दी जाती है। अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 18 प्रकार के उत्पादन कार्यों में महिलाएं शामिल नहीं हो सकती हैं। अतः इस प्रकार के नियमों को समूल समाप्त करने की जरूरत है।

आर्थिक सर्वेक्षण में चालू वित्त वर्ष 2024-25 में विकास दर का 6.5 से 7 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है, हालांकि आरबीआई से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी कई वैशविक एजेंसियां चालू वित्त वर्ष में विकास दर 7 प्रतिशत या उससे अधिक रहने का अनुमान पहले ही जाहिर कर चुकी है। इस बारे में आर्थिक सर्वेक्षण तैयार करने वाले देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार श्री अनंत नागेश्वर ने बताया कि वह देश की जीडीपी विकास को लेकर नकारात्मक नहीं है। हालांकि वित्तीय बाजार में जोखिम बढ़ रहा है। असम का भू-राजनीतिक संघर्ष में होने वाले वृद्धि और मानसून की प्रगति को देखते हुए विकास दर अनुमान को थोड़ा संकुचित ही रखा गया है।

                                                                          

ऐसे में यदि मानसून बेहतर नहीं रहता है तो   कृषि उत्पादों की सप्लाई और कीमत प्रभावित हो सकती है। वैश्विक वित्तीय बाजार में गिरावट से भारतीय कॉर्पाेरेट एवं रिटेल निवेश प्रभावित हो सकता है। इसके साक ही भू-राजनीतिक संघर्ष के चलते भी विकास दर प्रभावित हो सकती है। श्री नागेश्वर ने बताया कि पिछले तीन सालों में घरेलू स्तर पर हमारी औसत विकास दर 8 प्रतिशत रही है और सभी स्तर पर हमारे आर्थिक पैमाने मजबूत दिख रहे हैं। वस्तु और सेवा दोनों के ही निर्यात बढ़ रहे हैं और इस वजह से चालू वित्त वर्ष में घाटा 0.7 प्रतिशत हो गया है और कर्ज में कमी आ रही है तथा कर संग्रह बढ़ रहा है।

भारत में पूंजीगत खर्च से लेकर निजी खर्च दोनों में बढ़ोतरी हो रही है। हमने पहले भी आर्थिक विकास किया है और यही वजह है कि वर्ष 1991 से लेकर वित्त वर्ष 2024 के बीच प्रति व्यक्ति आय में 35 गुना बढ़ोतरी हुई है और वर्ष 2047 तक प्रति व्यक्ति आय 14.9 लाख होने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2023 में प्रति व्यक्ति सालाना आय ₹200000 रही थी।

भारत के आर्थिक विकास की गति को कायम रखने के लिए इंडस्ट्री, अकादमी और सरकार को साथ मिलकर काम करना होगा। कृषि को ग्रोथ इंजन बनाने के लिए किसानों के अनुकूल नीति बनाने की जरूरत है। भारत में प्रति किसान जमीन का रकबा लगातार कम होता जा रहा है, यह बात सी ई ए बी आनंद नागेश्वरण ने कही है।

                                                                       

आर्थिक सलाहकार श्री आनंद नागेश्वर ने कहा है कि भारत को अब बड़े पैमाने पर सुधारो की आवश्यकता नहीं है। हालांकि वृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए छोटे और आधारभूत सुधारो की जरूरत है। उन्होंने आर्थिक सर्वेक्षण में कहा है कि पिछले दशक के दौरान सरकार द्वारा किए गए संरचनात्मक सुधारो ने अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है और भारत शीघ्र ही अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है।

कृषि  विकास दर निराशाजनक

कृषि क्षेत्र से 42.3 प्रतिशत आबादी को आजीविका मिलती है और मौजूदा कीमतों पर देश की जीडीपी में इसकी 18.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। कृषि क्षेत्र हमेशा उछाल पर ही रहा है और पिछले 5 वर्षों के दौरान 4.5 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर रही है, किंतु वर्ष 2023-24 के लिए लगाए गए अनुमानों के अनुसार कृषि क्षेत्र की विकास दर 1.4 प्रतिशत रही है।

केंद्र सरकार ने महसूस किया है कि देश के विकास में कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका के बावजूद भी इसे आधारभूत संरचनाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। खाद्य पदार्थों की महंगाई व किसानों की कम आय के साथ अन्य कई तरह की चुनौतियां हैं। बजट से एक दिन पहले आर्थिक समीक्षा में किसानों की आय बढ़ाने एवं आधुनिकीकरण के लिए निजी निवेश की जरूरत बताई गई थी। दशक भर के नीतिगत सुधारो का जिक्र करते हुए कहा गया है कि  कृषि में पिछले एक दशक में उच्च वृद्धि का आधार तैयार हो चुका है। अब विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीचे से ऊपर तक बड़े सुधारों की जरूरत है।

प्रौद्योगिकी में विकास, खेती में नवाचार, बाजार की व्यवस्था, उर्वरक, जल एवं अन्य सुविधाओं में वृद्धि के साथ ही कृषि और उद्योग के आपसी संबंधों के विस्तार तथा खाद्य वस्तुओं के मूल्यों को नियंत्रण में रखना भी जरूरी है। संकेत स्पष्ट है कि सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर सुरक्षा की दिशा में बढ़ाना चाहती है। समीक्षा में किसानों के कल्याण के लिए केवल सब्सिडी को पर्याप्त नहीं बताया गया है। कहा गया है कि खाद्य और ऊर्जा में सबसे ज्यादा अनुदान दिया जा रहा है आंकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र में 42.3 प्रतिशत आबादी को आजीविका मिलती है, लेकिन इसके बावजूद वर्ष 2023-24 में 1.4 प्रतिशत कृषि क्षेत्र की विकास दर रही है।

कृषि  ऋण का आंकड़ा 23 लाख करोड़ के पार पहुंचा

सरकार की प्राथमिकता किसानों को सस्ती दरों पर पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराना है इसके लिए तमाम उपाय भी किए जा रहे हैं, जिसका परिणाम है कि वर्ष 1950 में कृषि क्षेत्र में गैर संस्थागत ऋण की जिम्मेदारी जहां 90 प्रतिशत थी जो आज घटकर मात्र 23.50 प्रतिशत ही रह गई है। सरकार ने कृषि क्षेत्र में संस्थागत ऋण के मामले में उल्लेखनीय वृद्धि की है। आर्थिक समीक्षा के ब्यौरे के अनुसार 31 जनवरी 2024 तक कृषि के लिए 22.84 लाख करोड रुपए का रेट दिया गया। इसमें 13.67 लाख करोड रुपए अल्पकालिक ऋण और 9.5 लाख करोड़ समावती ऋण है। किसानों को क्रेडिट कार्ड के तहत प्रतिवर्ष 7 प्रतिशत की ब्याज दर पर ₹300000 तक ऋण दिया जाता है। इसमें तीन प्रतिशत की ब्याज छूट भी शामिल है।

किसान क्रेडिट कार्ड ने कृषि ऋण को सहज बना दिया है। इस वर्ष 31 जनवरी तक बैंकों ने 9.4 लाख करोड रुपए की सीमा के साथ 7.5 करोड़ के सीसी जारी किए हैं और इसके साथ ही मत्स्य पालन एवं पशुपालन जैसी गतिविधियों की कार्यशील पूंजी की जरूरत को पूरा करने के लिए के सीसी का दायरा बढ़ा दिया गया है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।