मकर सक्राँति पर विशेष : पग पग पर संक्रांति      Publish Date : 15/01/2024

                              मकर सक्राँति पर विशेष : पग पग पर संक्रांति

                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                               

संक्रांति का आशय है भगवान सूर्य का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाना होता है, अर्थात जब भगवान सूर्य का संचार धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में होता है जा इसे ही मकर सक्राँति कहा जाता है। वैसे तो भगवान भास्कर सभी 12 राशियों में  परागमन करते हैं, किंतु धर्म ग्रंथो में सर्वाधिक महत्व मकर संक्रांति का ही होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मकर राशि में गमन करने के पर भगवान भास्कर की तेजस्विता बढ़ने लगती है और भगवान सूर्य के उत्तरायण होने के चलते दिन बड़ा होने लगता है और रातें छोटी होने लगती है।

खगोलीय घटना के महत्व वाले इस पर्व को यदि जीवन के साथ जोड़कर भी देखा जाए तो अनेक स्तरों पर संक्रांति के पर्व दिखाई पड़ते हैं। मां के गर्भ से जन्म लेकर सांसारिक अस्तित्व को धारण करना जन्म संक्रांति है। जन्म के बाद शिशु, बालक, किशोर, युवा तथा वृद्ध अवस्था की ओर बढ़ते जाना भी जीवन की बहु-आयामी संक्रांति होती है। अवस्था की इन समस्त संक्रांतियों में मकर संक्रांति के स्तर की सुख, शांति और युवावस्था की सक्राँति होती है। क्योंकि संपूर्ण जीवन में सर्वाधिक ऊर्जा इसी अवस्था में प्राकृतिक रूप से प्राप्त होती है।

अतः मकर संक्रांति पर उत्तरायण होते सूर्य की तरह जीवन इके सारे प्रश्नों का उत्तर देने की क्षमता विद्यमान होती है। फिर वह चाहे खुद के प्रश्न हो या घर, परिवार व समाज के। भगवान श्री राम ने भी वन जाने में रुचि इसलिए ही दिखाई क्योंकि मकर जैसी धोखेबाज प्रवृत्तियों को परास्त करने का युवावस्था सही पड़ाव होता है। समाज का युवा नकारात्मक प्रवृत्तियों जैसे मकर अर्थात मगरमच्छ से सावधान रहे तो फिर विशालकाय गजेंद्र की रक्षा योगेश्वर श्रीकृष्ण की तरह की जा सकती है।

हालांकि वृद्वों की भी संक्रांति होती है और माता-पिता अपनी संतान को पारिवारिक उत्तरदायित्व का सोते समय अनुभवों का प्रकाश भी देते हैं। ऐसे में जिन परिवारों में सकारात्मक सोच की संक्रांति होती है वहां शांती का वास होता है। इसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘‘जहां सुमति, तह संपत्ति नाना, जहां कुमति विपत्ति निदाना’’ चौपाई के माध्यम से प्रकट किया है, ठीक इसी तरह मकर संक्रांति के प्रति हमें इस पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।

मकर संक्रांति और मोक्ष

                                                                      

एक समय राजा सगर अपने परोपकार और पूर्ण कर्मों से तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गए थे। उनके इस प्रभाव से देवताओं के राजा इंद्र को चिंता होने लगी कि कहीं वह स्वर्ग का राजा न बन जाए। इसलिए उन्होंने राजा सागर के अश्वभेघ यज्ञ का घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के समीप बांध दिया। राजा ने अपने सभी 60,000 पुत्रों को इस घोड़े को आवश्यक रूप ढूंढने का आदेश दिया।

जब यह सभी इस घोड़े को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो वहां पर घोड़ा बंधा हुआ देखा, तो उन्होंने मुनि पर चोरी का आरोप लगा दिया। जिससे क्रोधित होकर मुनि ने सभी को श्राप देकर भस्म कर दिया। जब राजा को यह बात पता चली तो वह कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और अपने पुत्रों को क्षमा करने की याचना की।

तब मुनि ने उन्हें पुत्रों के मोक्ष हेतु गंगा को धरती पर लाने की सलाह दी। राजा सागर के बाद उनके पोते राजकुमार आशु मान ने प्रण लिया कि जब तक मां गंगा को पृथ्वी पर नहीं लाते तब तक उनके वंश का कोई भी राजा चैन से नहीं बैठेगा।

उनके बाद राजा भगीरथ ने कठिन तप करके मां गंगा को प्रसन्न किया और मां गंगा पृथ्वी पर अवतरण हुआ और उन्होंने राजा सागर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया। इस दिन मकर संक्रांति थी, मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ती होती है और सारे पाप कट जाते हैं।

मकर संक्रांति का त्यौहार हमें प्रकृति से भी जोड़ता है

                                                                        

भारत कृषि प्रधान देश है और यहां के पर्व एवं त्यौहार भी खेती व फसलों से जुड़े हुए होते हैं। लोहड़ी और मकर संक्रांति की धूमधाम से मनाना का कारण यह है कि इन दिनों में वातावरण में ठंड की धमा चौकड़ी जरा कम होने लगती है और धूप में तेजी नजर आने लगती हैं। लोग भोजन में शामिल होते हैं तो कुछ नए व्यंजन तो साथ ही त्योहारों का शुभ कार्यों का शुरू हो जाता है।

इस मौसम में उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब, उड़ीसा, असम और तमिलनाडु तक इन दो-तीन दिनों को भारतीय अलग-अलग नाम व तरीके से मनाते हैं। मगर सभी में सेहत और मौसम की जुड़ी होती है कोई ना कोई कहानी और इस कहानी के पीछे होता है प्रकृति के बीच मस्ती की शुरुआत के दिन।

बोनफायर में चमकते चेहरे

                                                                       

पंजाब में यह समय लोहड़ी के मनाने का होता है, जब रात को लकड़ी के व्यवस्थित ढ़ेर में लगी आग के किनारे सभी स्वजन व दोस्त बैठते हैं और पवित्र अग्नि के फेरे लेकर अग्निदेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और भुना हुआ मक्का, तिल की रेवड़ी, और मुरमुरा एवं गुड से बनी मिठाइयां मिल बाटकर खाते हैं। जाहिर है जाती हुई सर्दी में आग का तापना फायदेमंद तो होता ही है और दोस्तों एवं स्वजनाों के साथ हम तमाम पकवानों का आनंद उठाते हैं और सभी लोग आनंदित हो जाते हैं।

धूम मचाओ खिली हुई धूप में

                                                                              

आसमान में ठुमकती पतंग को देखकर हर मन हर्षित हो उठता है। मकर संक्रांति पर गुजरात, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में पतंग उड़ाने की परंपरा भी है। इसे देखते हुए ही वर्ष 1989 में 14 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय पतंग दिवस भी मनाया जाता है। यह सिर्फ उत्साह नहीं बल्कि सेहत का भी उत्सव होता है।

                                                                                      

पूष की ठंड में सूर्य के दर्शन तो कम ही हो पाते हैं और रही सही कसर हम ठंड में बाहर ना निकल कर पूरी कर देते हैं। इस दौरान बहुत ज्यादा हुआ तो इतने सारे कपड़े पहने रहते हैं कि हमारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी प्राप्त नहीं हो पाती। ऐसे में पतंग उड़ाने के बहाने ही सही हम कुछ समय खुले आसमान के नीचे बिताते हैं, जिसमें मस्ती के साथ ही सेहत को मिलता है इसका दुगना फायदा।

नई फसल की खुशबू

                                                                                  

अपने देश में त्योहार कोई भी हो उनसे जुड़े व्यंजनों का कोई जोड़ नहीं, उत्तर प्रदेश गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र में मकर संक्रांति को खिचड़ी के उत्सव के तौर पर ही जाना जाता है। जब नई फसल के चावल और दालों से खिचड़ी बनाई जाती है और इसका भावपूर्वक दान किया जाता है ताकि हम हल्का सुपाच्य भोजन करें और तिल, गुड़ की सूखी मिठाइयों का आनंद लें।

असम में यह पर्व बिहू के नाम से जाना जाता है, जिसमें चावल के आटे में गुड़ मिलाकर भरवा तिल पित्ता बनया जाता है तो उड़ीसा में इस दिन को नौकरी कहते हैं। जिसमें कच्चे केले से बना कांडली मजा बनता है और तमिलनाडु में इस दिन पोंगल पर्व मनाया जाता हैं। पापेंगल में चावल और गुड़ का निवेश व मूंग की दाल से बना पग पोगल होता है। सकराई पोगल बनते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।