उदास होना भी कोई गलत बात नही      Publish Date : 06/09/2023

                                                                      उदास होना भी कोई गलत बात नही

                                                                    

    हमारे जीवन का संचालन परमपिता परमेश्वर के द्वारा किया जाता है और समय का ऊँट कब किस करवट से बैठ जाए इसके बारे में कोई बड़े से बड़ा ज्ञानी भी कुछ नही जानता है और इसी के फेर में हम आज खुश हैं तो फिर कल उदास, यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहता है। जिस समय हम खुश रहते हैं तो लगता है कि सब कुछ कितना सुन्दर है और इसके विपरीत जब हम उदास होते हैं तो हमें स्वयं अपने आप से भी भय लगने लगता है।

    एक ख्याति प्राप्त लेखक एंड्रू सोलोमन के द्वारा लिखि गई उनकी प्रसिद्व पुस्तक ‘‘द नूनू डे डेमन’’ में उन्होने मानव की उदासियों के सम्बन्ध में बहुत-सी सकारात्मकता का जिक्र किया है। हालांकि आप इसमें यह पूछ सकते हैं कि उदासियाँ और सकारात्मकता के बीच क्या सम्बन्ध है? क्योंकि जब आप खुशियों के बारे में बाते कर सकते हैं तो उदासियों के बारे में बाते क्यो नही कर सकते हैं, क्योंकि यह दोनों ही भावनाएं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

                                                      

    एंड्रू लिखते हैं कि यदि आप दुःखी हैं तो यह आवश्यक है कि आप अपने इस भाव को स्वीकार करें और फिर अपने आपसे कहें कि हम उदास हैं और इसके साथ ही स्वयं को इसका कारण भी बताएं। जब आप अपने उदास होने के कारणों को गिनाने लगेंगे तो इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि आप अपने उदासी के दौर से उबरने की प्रक्रिया में हैं।

    आजकल उदासी के सम्बन्ध में हर कहीं बातें की जा रही है और सोशल मीडिया पर तो इसकी भरमार है। परन्तु जो यह कह रहें है कि वे उदास हैं या उनका मन कहीं भी नही लग रहा है। वे लोग दुःखी तो हैं परन्तु वे अपने दुःख का ठोस कारण ही नही बता पा रहे हैं। इसके सम्बन्ध में एंड्रू कहते हैं कि यदि आप बिना किसी ठोस कारण के ही उदस हैं तो आपको अपनी उदासी के लिए किसी अन्य को दोषी ठहराने के कतई आवश्यकता नही है।

    मनोविश्लेषक डॉक्टर रोजवुड मानती हैं कि उदासी मानव जीवन का एक महत्वूपर्ण भाव होता है। इसके अन्तर्गत किसी अप्रिया घटना के घटने के कारण, किसाी मनचाहे कार्य के पूर्ण नही हो पाने के कारण अथवा जब आपको लगता है कि लोग समझ नही पा रहें हैं, तो ऐसे में मन उदास होना भी स्वाभाविक ही है।

                                                           

    हालांकि वह इससे बाहर निकलने के लिए सबसे अधिक कारगर उपाय बताती हैं कि सबसे पहले तो आप यह स्वीकार करें कि आप उदास हैं और फिर इसके बाद अपने किसी विश्वास पात्र मित्र अथवा किसी सम्बन्धी से इसके बारें में बाते करे और यदि किसी कारणवश ऐसा नही कर पाएं तो इसे लिख लें। जब आप अपने मन को खोलकर इसके बारे में लिखने लगेंगे तो आप स्वयं ही इससे बाहर निकलने के रास्ते की तलाश भी कर पाएंगे।

    जब आप अपने मन की बात किसी नही कर पाते हैं और अपने अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं अथवा आप यह मानने को तैयार ही नही होते हैं कि आपकों कोई परेशानी है, तो कालांतर में तनाव और डिप्रेशन के जैसी परेशानियों की शुरूआत हो जाती है। रोजवुड यह भी बताती हैं कि उदासी के समय को अपना एक अच्छा मित्र बनाएं और इस समय के दौरान वह सब काम करें जो कि आपको प्रसन्नता प्रदान करते हैं।

    इसके लिए आप कोई चित्र बना सकते हैं, अकेले ही घूम-फिर सकते हैं, अपनी पंसद का संगीत सुने, अपनी पसंद का खाना खाएं अथवा नही खाएं। इसके साथ ही आप अपने आप को यह भी बताते रहें कि यह समय भी अधिक लम्बा चलने वाला नही हैं। उदासी के दौरान आप अपने उस समय को भी याद करें जब आप प्रसन्न रहा करते थे। ऐसे में सोच-विचार करें कि आप अपने उस समय को किस प्रकार से वापस पा सकते हैं।

    हालांकि कुछ दुःख ऐसे भी होते हैं कि उनसे ऊपर उठ पाना कोई आसान काम नही होता है, परन्तु समय का मरहम ऐसा होता है कि वह बड़े से बड़े घाव को भी भर देता है।

दुःख तो अपना साथी है-

                                                                 

    ओशो अपने एक लेख में लिखते हैं कि दुःख मेरा सबसे अच्छा साथी है और जब भी मै दुःखी होता हूँ तो स्वयं के अधिक करीब होता हूँ और मैं स्वयं को अधिक अच्छे से समझ पाने में सक्षम होता हूँ।

    ओशो लिखते हैं कि दुःख के साथ सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि यह अपने साथ गुस्सा, निराशा, कुँठा, पीड़ा एवं दुर्दशा आदि को भी लेकर आता है, जो कि अपने आप में एक अवरोध है। वैसे भी आपको इसाथ ही जीवन को जीने का तरीका सीखना होगा, क्योंकि आप इससे बच नही सकते। यह तो ऐसी स्थितियाँ होती हैं जिनसे जीवन के दौरान गुजरना और इन स्थितियों के साथ सामजस्य बनाना ही पड़ता है।

    यह जीवन की ऐसी चुनौतियाँ हैं जिन्हें स्वीकार किए बिना आप अपने जीवन में आगे बढ़ ही नही सकते। यह एक प्रकार से दुःख के वेश में सुख ही होते हैं अर्थात कहा जा सकता है ब्लेसिंग इन डिंसगाईज। उदासी के क्षण अपने आप में कोई शाप अथवा जीवन का अंत नही है, इससे आज तक न तो कोई बच पाया है और न ही कोई आगे बच पाएगा। इसमें तमाम सुन्दरता आपकी वह खूबी है जिसका उपयोग आप दुःख से पार पाने के लिए करते हैं।