
समन्वय से चलते हैं रिश्ते Publish Date : 14/06/2025
समन्वय से चलते हैं रिश्ते
सरिता सेंगर एवं शीतल शर्मा
परवरिश, शिक्षा और संस्कारों से हमारा व्यक्तित्व आकार लेता है। प्रत्येक व्यक्ति के मूल्य और सोच अलग होता है। दांपत्य में पारिवारिक दायित्वों और निजी मूल्यों के मध्य समन्वय कैसे स्थापित करें, सुझाव दे रही हैं श्रीमति सरिता सेंगर-
अक्सर जब दो लोग शादी के बंधन में बंधते हैं तो वे दोनों ही अलग परिवेश, शिक्षा, माहौल, समाज और संस्कारों से जुड़े होते हैं। इसके कारण उनके निजी मूल्यों में ज्यादा समानता नहीं दिखती है। वैसे ही हर एक के परिवारिक मूल्यों में काफी अंतर दिखाई देता है। कई बार यह खाई आपसी समझ, समन्वय और सहयोग से पट जाती है, लेकिन हर बार ऐसा संभव नहीं होता, इसके परिणामस्वरूप आपके वैवाहिक जीवन में मनमुटाव दिखने लगता है।
पारिवारिक दायित्व बनाम निजी महत्वाकांक्षाएः
विवाह के बाद दोनों को एक नया परिवार और परिवेश मिलता है, हालांकि, उनकी जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं। शादी के बाद पारिवारिक दायित्वों में पति-पत्नी की एक-दूसरे के प्रति, माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी, सामाजिक और आर्थिक दायित्त्व शामिल होते हैं। इन्हें ठीक से निभाने से ही दांपत्य खुशहाल और समृद्ध बनता है, लेकिन समस्या तब आती है जब दोनों में से कोई एक इन दायित्वों को नजरअंदाज करने लगता है, परिवार के दायित्व उसे बोझ लगने लगते हैं। उनकी महत्वाकांक्षाएं परिवार से बड़ी होने लगती हैं, ऐसे में शुरू होती है रिश्तों में बहस। इससे निपटने के लिए आपसी सहयोग, समझदारी, बातचीत और एक दूसरे के समर्थन की आवश्यकता होती है।
खुला संवादः शादी के बाद समय की कमी होने के चलते पति-पत्नी कई समस्याओं पर खुलकर बात नहीं करते। नतीजतन उनके बीच गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं। नई जिम्मेदारियों के बीच दोनों के सपने दब जाते हैं और उसकी बलि चढ़ता है उनका आपसी रिश्ता। इसलिए जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे को समझें और पारिवारिक मामलों पर समय-समय पर चर्चा करते रहें।
निश्चित है बदलावः घर में नए सदस्य के आने पर हम सभी की जिंदगी में एक बदलाव आता है। शुरुआती दौर में सभी सदस्यों को सामजस्य स्थापित करने में थोड़ी मुश्किलें आती ही हैं, लेकिन धैर्य और संयम से काम लें सबकुछ सम्भव है। परिवार के सदस्यों के प्रति प्रेम, समन्वय, सहयोग और परंपराओं का सम्मान करने से न केवल पति-पत्नी के आपसी सम्बन्ध, बल्कि पारिवारिक संबंधों में भी मजबूती आती है। उदाहरण के लिए शादी से पहले लड़का देर शाम तक दोस्तों के साथ घूमता फिरता है, लेकिन शादी के बाद पत्नी और परिवार के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए वह अपने शौक थोड़े बदलने लगता है, लेकिन लड़कियों के मामले में नया घर, अलग खानपान, नया रहन-सहन होने के कारण उन्हें नए वातावरण में स्वयं को ढलने में थोड़ा सा अधिे समय लगता है।
रिश्ते में ईमानदारी है जरूरीः तमाम मतभेदों के बाद भी अगर रिश्ते में ईमानदारी है तो रिश्ता कभी नहीं बिखरता। जहां प्यार, त्याग और समर्पण होता है वहां छोटी-छोटी बातें कोई मायने नहीं रखतीं। रिश्तों के बीच अहंकार आने से मन में खटास और बढ़ती है। इसलिए जरूरी है कि आप विवादों को सुलझाने में यकीन रखें, ना कि उन्हें बढ़ावा देने में।
लेखकः श्रीमति सरिता सेंगर एक प्रसिद्व समाजसेवी महिला हैं।