
शारीरिक श्रम का महत्व Publish Date : 27/03/2025
शारीरिक श्रम का महत्व
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
किसी भी मशीन से यदि काम न लिया जाए और उसको यदि बेकाम पड़ा रहने दिया जाये; तो उसके कलपुर्जों को जंग लग जाती है, मैल जमा हो जाता है और यदि उसे बहुत अधिक चलाया जाये, तो पुर्जे आदि घिसकर वह बहुत जल्द बेकार हो जाती है। ठीक यही स्थिति हमारे शरीर की भी होती है। आलस्य में पड़े रहना, अमीरी की शान में मेहनत से जी चुराना, शरीर की क्रियाशीलता को नष्ट करना है।
मांस, नस, नाड़ी और त्वचा आदि की कार्यशक्ति कायम रखने के लिए इनसे परिश्रम का काम अवश्य लेना चाहिए। ‘स्वस्थ’ रहने के लिए शारीरिक परिश्रम करना बहुत ही जरूरी है, किंतु साथ-साथ यह ध्यान रखना भी अति आवश्यक है कि परिश्रम इतना अधिक भी न हो कि शरीर की जीवनी शक्ति का खजाना ही खाली हो जाए। सामर्थ्य से अधिक काम करने से शरीर में उष्णता बढ़ती है और उस गर्मी से शरीर के जीवनदायक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, ऐसे आदमी अधिक नहीं जी पाते हैं।
जिसका खर्च आमदनी से अधिक होगा, उसे तो दिवालिया बनना ही पड़ेगा। मेहनत करना, हर अंग को काम देना, डट कर उत्साहपूर्वक काम करना, परंतु शक्ति की मर्यादा के अंदर रहकर काम करना ही उचित परिश्रम है और यही लाभदायक भी है।
बहुत से लोग दिमागी परिश्रम से पैसा कमाते हैं और ऐसे लोग सोचते हैं कि शरीर को क्यों कष्ट दिया जाय, जो काम शरीर द्वारा किये जाते हैं, उनको तो नौकर के द्वारा पूरा करा सकते हैं, यह उनकी भूल होती है। पेट की रोटी पचाने का काम नौकर का पेट नहीं कर सकता, जब प्यास, भूख, मल-मूत्र त्यागने की इच्छा हो, तो ऐसे जरूरी कार्यों को भी किसी नौकर के द्वारा नहीं कराया जा सकता।
शरीर के अंग-प्रत्यंगों को उचित परिश्रम देकर, उन्हें क्रियाशील बनाये रखना है, यह कार्य भी हमें स्वयं अपने आप ही करना पड़ेगा, यह कार्य नौकर के द्वारा नहीं नहीं किय जा सकता।
संसार के बड़े लोग जिनके पास बहुत अधिक कार्य भार रहता है, वह भी स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ न कुछ काम अवश्य करते हैं। बगीचे में पौधों के लिए मिट्टी खोदना, छोटा-मोटा बढ़ईगिरी का काम, कपड़े धोना, घर की साफ सफाई या ऐसे ही किन्हीं अन्य कामों को दैनिक जीवन में स्थान अवश्य प्रदान करना चाहिए। टेनिस, फुटबाल, क्रिकेट, कबड्डी या ऐसे ही कई खेल तलाश किये जा सकते हैं।
वायु सेवन के लिए नित्य कई मील टहलना जरूरी है। दंड-बैठक, डंम्बल, मुग्दर, आसन, प्राणायाम आदि भी अच्छे व्यायाम हैं। शरीर के हर एक अंग को इतना परिश्रम मिलना चाहिए कि वह अनुभव करे कि मुझसे पूरा काम लिया जा रहा है। इसके बिना अंग जकड़ने लगते हैं, उनमें चर्बी की मात्रा बढ़ने लगती है, कब्ज, बवासीर आदि जैसे रोगों का आक्रमण भी होने लगता है।
दिमागी काम करने वालों या अमीरों को भी शारीरिक श्रम की उतनी ही आवश्यकता होती है जितनी कि अशिक्षित और गरीबों को। उचित परिश्रम मनुष्य मात्र के लिए बहुत आवश्यक है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।