
होली की अनन्त ऊर्जा Publish Date : 15/03/2025
होली की अनन्त ऊर्जा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
जन्म से मृत्यु तक आंतरिक और बाहर ऊर्जा के चलते केवल जीवन का ही स्पष्ट काम नहीं रहता, बल्कि प्रकृति भी ऊर्जा के सहारे अपने उपयोगिता बनाए रखती है। पांच भौतिक पदार्थों से क्षितिज, जल, पावक, गगन और समीर सभी में ऊर्जा तत्व विद्यमान होता है। क्षितिज की ऊर्जा ज्वालामुखी के रूप में तो जल में ऊर्जा के कारण से जल विद्युत परियोजनाएं आदि संचालित होती हैं।
पवन तो अपने आप में ऊर्जा ही है, जबकि गगन में बिजली चमकती है तो दूर तक ऊर्जा दिखती है और वायु की ऊर्जा से तमाम संयंत्र संचालित होते हैं। होली पर ऊर्जा के रूप में अग्नि की पूजा का जो विधान किया गया है, उसके माध्यम से ऋषियों ने जीवन में ऊर्जावान बने रहने का संदेश दिया जाता है। होली के पर्व में छिपे अन्य भावों को यदि देखा जाए तो बीते हुए कल और आने वाले कल में समन्वय का संदेश भी इसमें निहीत है।
प्राकृतिक दृश्य से बसंत के आगमन की खुशी में पेड़ और पौधे पुराने परिधान के रूप में पत्ते त्याग देते हैं तथा नए परिवेश के स्वागत के लिए नए पत्तों का नव सृजन करते हैं। ऐसे यही है कि बीते हुए समय के ऐसे कार्य जिसकी वजह से असफलता मिली हो या दुख और कष्ट मिले हो उन्हें वृक्ष के पत्तों की तरह त्याग दिया जाए।
ध्यान देने की बात है कि वृक्ष पुराने पत्तों को ही त्यागते हैं न कि अपनी जड़ों और टहनियों को बायो जगत का यह दृष्टांत अंतर जगत के धरातल पर भी लागू करना चाहिए।
समय अत्यंत प्रतापी है संभव है वक्त ने काम क्रोध देश स्वतंत्रता असफलता निराशा तनाव या देवता दी हो और उसे जीवन बजरंग हो गया हो तथा अहद रूपी प्रहाहीनता की होलिका की गोद में चला गया हो। फिर भी पूजा के नारायण का स्मरण करते हुए आत्म बल एवं आंतरिक शक्ति से जीवन में खुशियों को रंग की खुद ही तलाश करनी चाहिए। क्योंकि रस भरने के लिए कोई दूसरा नहीं आएगा इसके लिए अपनी बुद्धि और विवेक की पिचकारी का ही प्रयोग करना पड़ेगा।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।