
सहयोग से बढ़ाएं बच्चों का हौसला Publish Date : 06/03/2025
सहयोग से बढ़ाएं बच्चों का हौसला
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
बोर्ड परीक्षा के शुरू होने से पहले अक्सर सभी माता-पिता परेशान हो जाते हैं और कई बार माता-पिता कथनी और करनी में बहुत अंतर करते खिाई देते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों को किस्से सुन कर या कोई असंभव सा लक्ष्य सामने रखकर बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालते हैं, जबकि बच्चों को इसम आपके संवादों से अधिक आपके साथ की जरूरत होती है जो उनका हौसला बढ़ाए और परीक्षा की तैयारी का असर रिश्तों पर ना पड़े भारी।
इस बात का सबको ध्यान रखना है कि यदि इन बातों का ध्यान रखकर आप अपने बच्चों का हौसला बढ़ाएंगे तो निश्चित रूप से आपके बच्चे काफी सफल हो सकेंगे। बोर्ड की परीक्षा को लेकर भारत सरकार की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने कमान संभाल ली है और परीक्षा पर चर्चा के नए-नए एपिसोड्स के माध्यम से लगातार सुझावों और समाधानों पर बल दिया जा रहा है। जिससे केवल विद्यार्थी ही नहीं अपितु उनके अभिभावक भी लाभान्वित हो सके और वह बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
स्थापित करें एक सकारात्मक संवाद का रवैया
ऐसे तो अक्सर यह सलाह दी जाती है कि पढ़ाई के बीच कुछ वक्त आराम या अपने पसंद के काम में बिताएं, परन्तु माता-पिता की बेचैनी तब बढ़ जाती है जब वह यह देखते हैं कि उनका बच्चा शाम को खेलने गया है या वह टेलीविजन पर कोई कार्यक्रम देख रहा है या अपना कोई मनपसंद कार्य कर रहा है। ऐसे में अक्सर माता-पिता का एक रटा-रटाया संवाद होता है कि तुम अपना समय बर्बाद कर रहे हो, तुम्हें और अधिक समय अपनी पढ़ाई को देना चाहिए। तुम पड़ोसी के बच्चे से कम अंक लाओगे, तुम फेल हो जाओगे या तुम हमारी नाक कटा दोगे, जबकि यह समय बच्चों के साथ सकारात्मक संवाद स्थापित एवं सहयोग करने का होता है।
इस प्रकार से अगर अभिभावक अपने बच्चों की उन्नति और अच्छे अंकों की अपेक्षा रखते हैं तो उन्हें चाहिए कि वह बच्चों को उनकी समय सारणी बनाने में उनकी मदद करें, जिससे बच्चे पढ़ाई के साथ मनोरंजन और आराम करने का समय भी निर्धारित कर सके और अच्छी सफलता से आगे बढ़े।
महसूस कराएं सुरक्षा का भाव अपने बच्चों को
अमुमन यह होता है कि अभिभावक शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ में ही बच्चों को ट्यूशन या ऑनलाइन क्लासेस शुरू कराकर यह मान लेते हैं कि वह अपने कर्तव्य से मुक्त हुए और अब उनके बच्चे अच्छे अंक हासिल कर सकेंगे, जबकि देखा जाए तो माता-पिता की जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होती। सभी अभिभावकों को चाहिए कि वह बच्चों के साथ बराबर की भागीदारी सुनिश्चित करें और लगातार उनकी तैयारी में सहभागिता करते रहें जिससे बच्चों में एक सुरक्षात्मक भाव उत्पन्न होगा। इससे बच्चे समझ जाएंगे कि माता-पिता हमारी परीक्षा के विषय में की गई तैयारी से पूरी तरह से अवगत है।
परीक्षा का यह समय तनाव से परिपूर्ण रहता है। जब भी बच्चे किसी विषय को पढ़ेंगे तो उन्हें कुछ ऐसे अनसुलझे पहलू मिलेंगे, जिनके उचित उत्तर उनके पास नहीं होंगे। आज के तकनीकी युग में इंटरनेट और अन्य माध्यमों से समस्या का हल तो खोजा जा सकता है लेकिन यह भी सत्य है कि शिक्षक का स्थान कोई नहीं ले सकता। अतः प्रत्येक अभिभावक को सदैव ही शिक्षकों के सर्म्पक में रहना चाहिए। यदि बच्चों को कोई ऐसी समस्या आ रही है, जहां शिक्षक के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो अभिभावकों को बच्चों से सम्पर्क कर उस समस्या का समाधान कराने में उनकी मदद करनी चाहिए।
अभिभावाको को चाहिए कि वह परीक्षा के दौरान अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को अपने घर बुलाने से बचें। ऐसा करने से बच्चों का ध्यान आप लोगों की बातों और मनोरंजन पर अधिक रहता है अथवा बच्चे स्वयं को जनरंदाज हुआ मानते हैं। इसी प्रकार यह प्रयास भी करें कि रीक्षा के दौरान आप स्वयं भी किसी विवाह या अन्य समारोह में न जाएं और यदि जाना आवश्यक हो तो वहां से शीघ्र ही लौटने का प्रयास करें, जिससे बच्चे घर में अकेलापन अनुभव न कर सकें।
बच्चों को लक्ष्य के प्रति करें अग्रसर
यह ऐसा समय है जब बच्चे कितना भी पढ़ाई कर ले उन्हें हमेशा ऐसा अनुभव होता है कि कुछ छूट गया है। ऐसे समय में अभिभावक बच्चों को प्रोत्साहित करें जिससे कि उनका आत्मविश्वास बना रहे और वह निरंतर अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर बने रहें। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वह धैर्य रखें और बच्चों को यह विश्वास दिलाएं की यह परीक्षा सिर्फ ज्ञान को जांचने का माध्यम मात्र ही है। इससे उनके जीवन की सफलता एवं असफलता का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।