मकर सक्रांति पर्व पर विशेष      Publish Date : 10/01/2025

                          मकर सक्रांति पर्व पर विशेष

                                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

14 जनवरीः प्रकृति, भारतीय सभ्यता - संस्कृति एवं लोक परंपराओं की एक झलक है मकर संक्रांति-

संगीत में आत्मा को सुकून देने की क्षमता निहीत होती है। शायद इसी कारण से लोगों को संगीत के प्रति जागरूक रखने के लिए हिन्दू धर्म में संगीत महोत्सवों का आयोजन निरंतर ही किया जाता रहा है। पूरे माह भर चलने वाले और देश के सबसे बड़े वार्षिक सांस्कृतिक संगीत उत्सव “मद्रास संगीत महोत्सव” का समापन 15 जनवरी को होगा। इस महोत्सव में पारंपरिक नृत्य, दक्षिण भारतीय गीत और संगीत से जुड़ी गोष्ठियां, प्रदर्शन और चर्चाएं की जाती हैं। इन सभी गतिविधियों की संख्या 1000 से अधिक होती है। 3 से 9 जनवरी तक चेन्नई में 18 वें नृत्य महोत्सव का आयोजन होना है। इसी क्रम में 6 जनवरी को सिख धर्म के दशम गुरू गोविंद सिंह जी का जन्मोत्सव दुनिया भर के गुरुद्वारों में मनाया जायेगा।

वहीं मकर संक्रांति के अवसर पर विशेष रूप से गंगा सागर मेला, बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में गंगा सागर के तट पर मनाया जाता है, जहां गंगा मैया सागर में विलीन होती हैं। यहां मकर संक्रांति पर गंगा मैया में पवित्र डुबकी लगाने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु गंगा सागर तक पहुंचते हैं।

                                                                                                                 

12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयंती को राष्ट्रीय युवा महोत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है। तो 11 से 14 जनवरी तक साबरमती रिवरफ्रंट अहमदाबाद में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव में शामिल होने देश-दुनिया के पतंगबाज आते हैं। मकर संक्रांति पर देश भर में पतंगें उड़ाई जाती हैं। अमृतसर में छोटी पतंग को गुट्टी कहते हैं और बड़ी पतंग को गुड्डा कहते हैं। पंजाब प्रान्त के लोहड़ी पर्व पर पतंगबाजी देखने लायक होती है।

इसी क्रम में लोहड़ी की अग्नि उत्साह और हर्ष की अग्नि बनकर सभी को ढोल की थाप पर नाचने के लिए आमंत्रित करती है। रात को सरसों का साग और गन्ने के रस की खीर जरूर बनाई जाती हैं, जिसे अगले दिन मकर संक्रांति पर खाया जाता है। इसके लिए कहते हैं ‘पोह रिद्दी माघ खादी’ अर्थात् पौष के महीने में बनाई और माघ के महीने में खाई। इस तरह लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। कड़ाके की सर्दी में आग के पास ढोलक की थाप पर उत्सव के अवसरों पर गाये जाने वाले आंचलिक और लोकगीत हमारी नई पीढ़ी को भारत की जीवंतता से परिचित कराते हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक परम्परा से सुरक्षित है।

अगले दिन मकर संक्राति पर निर्धन एवं वंचित वर्ग को खिचड़ी, तिल और आवश्यक वस्तुओं का दान किया जाता है। सहारनपुर के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर में माँ शाकंभरी देवी उत्सव आयोजित किया जाता है। इस दिन दूर-दूर से लाखों भक्त यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

                                                          

वर्ष 2025 में तो विश्व का सबसे बडा धार्मिक आयोजन महाकुंभ महापर्व मेला तीर्थराज प्रयागराज में 13 जनवरी से आयोजित होने जा रहा है। जहां शैव, शाक्त, वैष्णव सहित सनातन धर्म के सभी पंचों-मतों के साधु-संन्यासी और 13 अखाड़े सम्मिलित होते हैं। कुम्भ में नये संन्यासियों को दीक्षा दी जाती है। देश-दुनिया के करोड़ों लोग कुम्भ स्नान के साथ वहां साधनारत साधु-संतों और महात्माओं के दर्शन कर इनके चरणस्पर्श कर शुभाशीष लेना अपना सौभाग्य समझते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर ही महाकुम्भ का प्रथम शाही स्नान होगा।

मकर संक्रांति पर ही पूर्वोत्तर भारत में भोगाली बिहू मनाते हैं। यह उत्सव एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस अवसर पर स्थानीय लोग एक दूसरे को गमुछा (गमछा) भेंट करके प्रणाम करते हैं साथ ही चिड़वा, दही और गुड़ खाया जाता है। हुरुम (परमल), नारियल, तिल के लड्डू बनते हैं। भोगाली बिहू यानि माघ बिहू में अलाव जलाने, भोज खाने और खिलाने की परंपरा है।

                                                               

एक सप्ताह तक चलने वाला ‘पोंगल पर्व’ भारत के दक्षिण में नवान्न और सम्पन्नता लाने वाला महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार का इतिहास कम से कम 1000 वर्ष पुराना है। भारत के दक्षिणवासी जन देश-विदेश में जहां भी रहते हैं बड़े उत्साह से पोंगल पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर सूर्यदेव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता हैं वह पोंगल कहलाता है। चार दिनों तक चलने वाले पोंगल में वर्षा, धूप, खेतिहर मवेशियों की आराधना की जाती है।

जनवरी में चलने वाले पहली पोंगल को भोगी पोंगल कहते हैं जो विलासितापूर्ण देवराज इन्द्र को समर्पित है। दूसरा पोंगल सूर्य देवता को निवेदित सूर्य पोंगल है। मिट्टी के बर्तन में नये धान, मूंग की दाल और गुड़ से बनी खीर और गन्ने के साथ सूर्य देव की पूजा की जाती है। तीसरा मडू पोंगल है, तमिल मान्यताओं के अनुसार मडू भगवान शंकर का नंदी हैं जिसे उन्होंने पृथ्वी पर हमारे लिए अन्न पैदा करने को भेजा है।

इस दिन बैल, गाय और बछड़ों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। कहीं-कहीं इसे कनु पोंगल भी कहते हैं। बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं। भाई उन्हें उपहार देते हैं। चौथे दिन कानुम पोंगल मनाया जाता है। इस दिन दरवाजे पर तोरण बनाए जाते हैं। महिलाएं मुख्य द्वार पर रंगोली बनाती हैं। लोग नये कपड़े पहनते हैं। रात को सामुदायिक भोज होता है।

तमिल तन्दनान रामायण के अनुसार भगवान राम ने मकर संक्रांति को पतंग उड़ाई थी और उनकी पतंग इन्द्रलोक में चली गई थी। उसकी स्मृति में अब लोग सागर तट पर पतंग उड़ाते हैं और सूर्यदेव का आशीष ग्रहण करते हैं।

                                                               

त्यौहारों की श्रृंखला में टुसू महोत्सव झारखंड के वनवासियों और जनजातियों का महत्वपूर्ण पर्व है। इसे एक महीने तक नृत्य और आंचलिक गीतों व कर्मकांडों के साथ मनाया जाता है। पर्व के अंतिम दिन मकर संक्रांति को इस लोक उत्सव में सुबह नदी में स्नान कर उगते सूर्यदेव की प्रार्थना की जाती है और कुंवारी कन्याओं द्वारा बनाई टुसू देवी की मूर्ति एक माह तक प्रतिदिन सायंकाल पूजने के बाद विसर्जित कर दी जाती है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के प्रसिद्ध तमिल कवि एवं दार्शनिक तिरूवल्लुर के सम्मान में 15 जनवरी को तिरूवल्लूर दिवस के रूप में मनाया जाता है।

जयदेव केंडुली 15 जनवरी को कवि जयदेव की जयंती पर, पश्चिम बंगाल के केंडुली गांव में संगीत मेला आयोजित किया जाता है। जो घूमंतू गायकों द्वारा बाउल संगीत के लिए प्रसिद्ध है। इसी तरह मोढ़ेरो नृत्य महोत्सव गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित प्राचीन मोढ़ेरा सूर्य मंदिर में मनाया जाने वाला शास्त्रीय नृत्य उत्सव है। यह संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देने वाला उत्सव पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। इसके अलावा प्रसिद्ध योगी तैलंग स्वामी जयंती और 23 जनवरी को महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती श्पराक्रम दिवसश् के रूप में पूरा देश मनाता है।

26 जनवरी को भारतीय जनमानस अपने सम्प्रभुत्व सम्पन्न गणतंत्र के राष्ट्रीय पर्व को मनाता है। इसी दिन तमिलनाडु के मदुरै में भक्ति और संस्कृति को दर्शाता फ्लोट उत्सव मनाया जाता है। भगवान सुन्दरेश्वर और देवी मीनाक्षी की मूर्तियों को विशेष श्रृंगार करके फूलों और प्रकाश से सज्जित फ्लोट पर रख कर मरियम्मन तेष्पाकुल्लम तालाब में चारों ओर घुमाया जाता है। इसका दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मकर संक्रांति पर ही पंडालम राजमहल से भगवान अयप्पा के आभूषणों को संदूक में रख कर एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है जो 90 किलोमीटर की दूरी तय कर तीन दिन में सबरीमाला धाम पहुंचती है।

प्रत्येक वर्ष होने वाला नागौर महोत्सव राजस्थान की धरती पर रंग बिखेरता है जहां पशुओं के साथ-साथ हस्तशिल्प और आभूषणों की जमकर खरीदारी की जाती है। तीन महीने का रण उत्सव भी इस समय चल ही रहा है।

मौनी अमावस्या के दिन माँ गंगा स्नान या अपने आस-पास की पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के साथ भगवान विष्णु की पूजा कर दान देने की परम्परा है। इस अमावस्या को मौन व्रत रखा जाता है इसलिए इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस प्रकार मकर संक्रांति के माध्यम से पवित्र भारत भूमि के कोने-कोने में भारतीय सभ्यता-संस्कृति एवं लोक परम्पराओं की झलक हमें विविध रुपों में दिखाई देती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।