सच्चा ज्ञान क्या है      Publish Date : 07/01/2025

                                 सच्चा ज्ञान क्या है

                                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें न तो किसी प्रकार के उपदेशों की आवश्यकता होती है और न ही ग्रन्थों का अध्ययन करने की। वास्तव में ज्ञान ऐसा होना चाहिए कि जिसे ग्रहण करने के बाद हम अपने व्यवहार उवं कर्मों में उतार सकें। जो ज्ञान हमारे कर्म और व्यवहार में दिखाई न दे उस प्रकार का ज्ञान हमारे स्वयं के लिए कभी भी लाभकारी सिद्व नही हो सकता। इस प्रकार का ज्ञान व्यर्थ है और केवल समय की बर्बादी करने वाला होता है।

जिस प्रकार से आपने विभिन्न लोागों को यह कहते अवश्य ही सुना होगा कि हम सत्संग करने जा रहें हैं अथवा सत्संग करके आ रहें हैं। सबसे पहले हमें सत्संग का अर्थ समझना होगा सत्संग का अर्थ है सत्य का साथ, जबकि सत्यता तो यह है कि सत्संग करने के लिए न तो कहीं जाना होता है और नही उसे कहीं से करके आना होता है।

अपितु सत्य तो यह है कि सत्य को तो हमें सदैव साथ लेकर चलना होता है। अतः सत्संग करने का अर्थ है कि जीवनभर सत्य के साथ को निभाना। ऐसे ही जो कोई व्यक्ति सत्संग करने के बाद भी सत्य के मार्ग पर स्थिर नही रह सका तो फिस उसके किसी सत्संग में जाने या न जाने का क्या अर्थ रहा।

ठीक इसी प्रकार से ज्ञानोपदेश का अर्थ है एक ऐसा ज्ञान जिसे हम आत्मसात कर सकें, जिस ज्ञान को हम आत्सात ही न कर सके ऐसे ज्ञान का क्या अर्थ। मान लिया हमने अहिंसा का पाठ पढ लिया ‘‘जियो और जीने दो’’ ऐसे में इस का सही अर्थ उस समय ही हमारे व्यवहार में दिखाई देगा जब हम हिंसा करना वास्तव में बंद कर दें।

हम अपने व्यवहार से तो हिंसा में प्रयुक्त रहें लेकिन करते रहें कि हमने तो अहिंसा का पाठ पढ़ लिया है तो ऐसे में हमारी स्थिति ‘‘मुँह में राम, बगल में छुरी’’ वाली ही रहेगी। ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य को अपने जीवन और व्यक्तित्व में लाना होता है कि वह उसके कर्मों में स्पष्ट रूप से दिखाई दे। जब हम ‘‘तमसो मा ज्योलिर्गमय’’ कहते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर चलो। यहाँ प्रकाश का अर्थ ज्ञान से है।

अंधकार में कुछ भी दिखाई नही देता है, जबकि प्रकाश में सबकुछ बिलकुल स्पष्ट दिखाई देता है। अतः हमें ऐसा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए कि जिससे हम स्वयं प्रकाशमान हो जाएं। क्योंकि यदि ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी हम अंधकार में ही रहे तो इस प्रकार के ज्ञान का कोई अर्थ नही होता है औरर ऐसे ज्ञानी अभी भी अज्ञानी ही हैं। किसी अज्ञानी के जीवन में कोई उत्साह-तरंग है, न ही कोई जिज्ञासा और न ही कोई रहस्य होता है।

सत्य तो यह है कि जो ज्ञान हम अपनी प्रकृति से प्राप्त कर सकते हैं, वैसा ज्ञान हम कहीं ओर से प्राप्त नही कर सकते। जैसे कि पर्वत हमें ऊँचा उठने की सीख देता है तो धरती हमें सभी को अपने में समाहित करने की क्षमता को विकसित करने की प्रेरणा देती है। नदियां हमें अविरल और निर्मल बहने की तो पेड़-पौधों से हमें अपना शरीर दूसरों की भलाई के लिए समर्पित करने की सीख देते हैं। इसी प्रकार से हमें प्रकृति के कण-कण से हमें कुछ न कुछ ज्ञान अवश्य ही प्राप्त होता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।