खेती में भरपूर काम करने के उपरांत भी सम्मान नही      Publish Date : 30/12/2024

खेती में भरपूर काम करने के उपरांत भी सम्मान नही

प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

हमारे देश में जब भी कभी खेती किसानी के काम की बात की जाती है, तो किसान के रूप में तो हमारे जेहन में या तो मूंछों पर ताव दिए पगड़ी वाले रोबदार किसी किसान की छवि उभर कर सामने आती है या फिर फटे पुराने कपड़ों पहने में खेत बैठा हुआ चिंतित किसान का चेहरा सामने आता है। कहने का अर्थ यह है कि भारतीय कृषि में किसान के रूप में जो मान्यता मिली है, वह केवल पुरुषों को ही प्राप्त है, महिला किसान के लिए कहीं कोई स्थान नही है।

सदियों से ही हमारे खेती किसानी के काम को केवल पुरुषों का ही काम माना जाता रहा है, जबकि खेतों में काम करते हुए लोगों को अगर देखा जाए, तो उनमें सब से अधिक महिलाओं की संख्या ही होती है। खरीफ सीजन में खेतों में काम करने वाले किसानों की संख्या में महिलाओं संख्या तो और भी बढ़ जाती है। क्योंकि खरीफ के सीजन में धान रोपाई से ले कर कटाई, हार्वेस्टिंग और उसके भंडारण तक में महिलाएं ही प्रमुख भूमिका निभाती हुई नजर आती हैं।

बावजूद इसके फिर भी घर की इन महिलाओं को किसान होने का दर्जा केवल इसलिए नहीं मिल पाता है, क्योंकि जमीन का मालिकाना हक घर के पुरुष सदस्य के पास ही रहता है।

हम किसानों के लिए संबोधन किए जाने वाले सरकारी या गैर सरकारी लेवल पर भाषाई स्तर पर नजर डालें, तो किसान के रूप में अन्नदाताओं के लिए सिर्फ ‘‘किसान भाई’’ शब्द का प्रयोग बहुधा किया जाता है, जबकि खेती में अहम भूमिका निभाने वाली महिलाओं को आज तक किसी को भी ‘‘किसान बहनों’’ के नाम से संबोधित करते नहीं देखा गया है। महिला किसानों के लिए यह असमानता मीडिया के लेवल पर भी स्पष्ट रूप से समय समय पर दिखाई देता रहा है।

खेती के करती हैं सभी काम, फिर भी नहीं मिलता कोई दाम

                                                   

महिलाएं घर परिवार की देखभाल के साथ ही साथ पशु-पालन, दूध निकालना, रोपाई, निराई, गुड़ाई, हार्वेस्टिंग और भंडारण तक के सारे काम संभालती हैं, लेकिन जब कृषि उपज को बेचने की बात आती है, तो उस समय उसका निर्णय किसान कहलाने वाला घर का पुरुष सदस्य ही प्रमुखता से लेता है और उपज को बेच कर की हुई कमाई को भी वह अपने पास ही रख लेता है।

                                                         

महिला किसानों के हक पर काम करने वाली माधुरी का कहना है कि जब महिलाएं दिनभर धान के पानी से भरे खेत में खड़ी हो कर पुरुषों की तरह ही निराई गुड़ाई आदि काम कर सकती हैं, तो फिर मंडी में उसी फसल को बेचने के लिए उन्हें जाने क्यों नहीं दिया जाता है? बीज खरीदने, फसल बेचने, उस फसल से प्राप्त रकम के उपयोग में उस की भूमिका कहां चली जाती है, जबकि वह घर में सब से पहले उठने और सब से बाद में सोने वाली इकाई होती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।