हमारे आस-पास उगने वाले उपयोगी खरपतवार      Publish Date : 08/12/2024

                 हमारे आस-पास उगने वाले उपयोगी खरपतवार

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

प्रचलित नाम पुर्ननवा, वैज्ञानिक नाम बोहरविया डिफ्यूजा परिवार निकटेगेसी, पुर्ननवा/चिरचिटा को अंग्रेजी भाषा में हॉगविड कहते हैं, यह खरपवार आम तौर पर अलग से कम ही दिखाई देता है, क्योंकि यह जमीन में फैलकर चलता है और अन्य खरपतवारों के समूह में खोया रहता है। फूलों के रंग के अनुसार इसकी दो प्रजातियां होती है।

                                                                     

सफेद फूलों वाली किस्म (श्वेत पुर्ननवा) एवं लाल फूलों वाली किस्म (रक्त पुर्ननवा)। औषधीय गुणों के दृष्टि कोण से श्वेत पुर्ननवा, रक्त पुर्ननवा की अपेक्षा अधिक गुण सम्पन्न होता है।

यह आमतौर पर बेकार, बंजर और जमीन में बहुतायत से पाया जाता है, इसको जड़े लम्बी होती है, जबकि तने फैलने वाले होते हैं। पत्तियाँ प्रत्येक पर्व पर असमान जोड़ों में होती है। पत्तियों की लम्बाई दो से.मी. तक होती है। इसकी गोल पत्तियां ऊपर से हरी होती है जबकि इसका निचला हिस्सा सफेदी लिए हुए होता है। पत्तियों के किनारे लहरदार होते हैं जिनका रंग गुलाबीपन लिए हुए होता है फूल छोटे होते हैं जो नवम्बर माह में आते हैं।

यह पूरे भारत वर्ष में खरपतवार की तरह उगता है। भारत के अलावा यह एशिया, अफ्रीका, अमेरिका में भी पाया जाता है। औषधि के रूप में इसकी जड़ें पत्तियाँ व बीजों का उपयोग किया जाता है। इस खरपतवार के विषय में हम भारतीयों का पारम्परिक ज्ञान बहुत अधिक है। आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों में इसको सम्माननीय स्थान प्राप्त है।

                                                                

आयुर्वेदिक मतानुसार यह कड़वा शीतक व शामक होता है और रक्त की अशुद्धि, स्त्री रोगों, रक्ताल्पता, प्रदाह, हृदय रोगों और श्वांस रोगों की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियाँ अपच, तिल्ली के बढ़ने और पेट दर्द में विशेष उपयोगी होती है।

यूनानी मतानुसार इसकी पत्तियाँ भूख बढ़ाती है और नेत्र रोगों तथा जोड़ों के दर्द में बाद काम आती है। इसकी जड़ीं का प्रयोग पीलिया, कुकरबिट माइट (वरूथी)ः वरूथी सहित विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार के काम में आती है। इसका प्रयोग रेचक व कृमिनाशक के रूप में भी होता है। हाल ही में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि इस खरपतवार में बहुत अधिक मात्रा में पोटेशियम नाइट्रेट पाया जाता है। इसमें पुर्ननथान नामक प्राकृतिक रसायन भी पाया जाता है जो कि इसके औषधीय गुणों के लिए उत्तरदायी होता है।

                                                                     

इसका प्रयोग होमियोपैथी दवाई के निर्माण के दौरान भी किया जाता है। आयुर्वेद में इससे पुर्ननवा तेल और पुर्ननवा अवलेह तैयार किया जाता है। इस खरपतवार के रोग व कीटनाशक गुणों पर विस्तृत अनुसंधान अभी किए जा रहे है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।