भारतीय राजनीतिक जीवन के मर्यादा पुरुष ‘‘अटल बिहारी वाजपेयी जी’’ Publish Date : 24/08/2024
भारतीय राजनीतिक जीवन के मर्यादा पुरुष ‘‘अटल बिहारी वाजपेयी जी’’
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे भारत रत्न से सम्मानित बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं है। 16 अगस्त 2018 को 93 वर्ष की आयु में उन्होंने दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। हालांकि, देहाँत से पूर्व वे कई वर्षों से अस्वस्थ रहे थे। 27 मार्च 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वयं उनके आवास पर जाकर प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए, उन्हें देश के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान ‘‘भारत रत्न’’ से सम्मानित किया था। अटल जी तीन बार प्रधानमंत्री, दो बार राज्यसभा सदस्य और दस बार लोक सभा सदस्य रहे। अटल जी भले ही भाजपा के शीर्ष नेता रहे, लेकिन वह देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक थे।
सही मायने में अटल जी भारतीय राजनीति के आकाश का ध्रुवतारा थे। उनकी शख्सियत ऐसी थी कि जिसे हर राजनीतिक दल में उनकी स्वीकार्यता रही। वर्ष 2005 में जब वाजपेयी जी ने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह ने ही उनको वर्तमान राजनीति का भीष्म पितामह की संज्ञा दी थी। अटल जी एक ऐसी महान शख्सियत थे, जिन्होंने अपने जीवन का हर पल राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। भारतीय राजनीति की एक महान विभूति रहे अटल जी का विराट व स्नेहिल व्यक्तित्व, विलक्षण नेतृत्व, दूरदर्शिता एवं अद्भुत भाषण देने का सामर्थ्य उन्हें एक विशाल व्यक्तितत्व प्रदान करते थे।
सही मायने में अटल जी का अपमान ‘‘अटल युग का अवमान है। बतौर प्रधानमंत्री उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से था 1 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में किया गया परमाणु बम परीक्षण, जिससे देश सामूची दुनिया में एक प्रमुख परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के रूप में उभरा। उन्होंने अपनी कुशल भाषण कलाशैली से अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों में ही ऐसा रंग जमा दिया था कि हर कोई उनके भाषणों का कायल हो जाता था। कहा जाता है कि उनके भाषण इतने प्रभावशाली हआ करते थे कि उन्हें सुनने के लिए विरोधी भी चुपके से उनकी सभाओं में जाया करते थे।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने एक बार कहा था कि हिन्दी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है। कहा जो यह भी जाता रहा है कि स्वयं नेहरू जी भी वाजपेयी द्वारा उठाए गए मुद्दों को बहुत ध्यान से सुना करते थेे। बात वर्ष 1957 की है. जब वह पहली बार सांसद चुने गए थे। अटल जी उस समय 34 वर्ष के युवा थे और उन्हें संसद में बोलने का ज्यादा समय नहीं मिलता था, लेकिन वाजपेयी जी की हिन्दी पर इतनी अच्छी पकड़ थी कि उन्होंने संसद में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी।
पन्डित नेहरू उस समय देश के प्रधानमंत्री थे और वह भी वाजपेयी जी की हिन्दी से बहुत अधिक प्रभावित थे और यही कारण था कि नेहरू जी संसद में उनके सवालों का जवाब हिन्दी में ही दिया करते थे। ऐसी ही संसद में जारी एक बहस के दौरान एक बार नेहरू जी ने जनसंघ को कटु आलोचना की तो वाजपेयी जी ने अपनी हाजिरजवाबी का परिचय देते हुए जी ने तपाक से कहा कि मैं जानता हूं कि पंडित जी रोज शीर्षासन करते हैं, वे शीर्षासन करें, उस पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन वह शीर्षासन करते हुए मेरी पार्टी की उल्टी तस्वीर न देखें। वाजपेयी जी के इस जवाब को सुनकर पन्ड़ित नेहरू भी ठहाका लगाकर हंस पड़े थे।
25 दिसम्बर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक स्कूल अध्यापक के घर जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से कवि और शिक्षक थे। कॉलेज में शिक्षण के दौरान ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थी। वर्ष 1943 में वह कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष बने। वह बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में भी कार्य किया। देश के लिए कुछ करने के जज्बे के साथ उन्होंने पत्रकारिता का रास्ता चुना और एक पत्रकार बन गए। राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के बाद उन्होंने पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया था।
अपनी पत्रकारिता के दौरान वाजपेयी जी ने राष्ट्रधर्म, पंचजन्य, वीर अर्जुन और स्वदेशनामक पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
वर्ष 1951 में जब जनसंघ की स्थापना की गई थी, तब अटल जी ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया था। हालांकि लखनऊ में लोकसभा के उपचुनाव में अटल जी हार गए थे किन्तु वह चुनाव में मिली इस हार से निराश नहीं हुए।
अटल जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और जनसंघ ने वर्ष 1957 में अटल जी को एक साथ तीन लोक सभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से मैदान में उतारा किंतु मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लखनऊ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन बलरामपुर से वे चुनाव जीत गए और जीतकर वे पहली बार द्वितीय लोक सभा में पहुंचे।
वर्ष 1960 से 1973 तक अटल जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे और 1975-77 के आपातकाल के दौरान उन्हें भी जेल भेजा गया। वर्ष 1977 में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार में वह विदेश मंत्री बने और उस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अटल जी ने हिन्दी में ऐसा ओजस्वी भाषण दिया, जिसकी दुनियाभर में व्यापक सराहना हुई और जिसे स्वयं अटल जी अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताया करते थे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।