व्याभिचार और द्विविवाह है लिव-इन रिलेशनशिप हाई कोर्ट      Publish Date : 09/08/2024

              व्याभिचार और द्विविवाह है लिव-इन रिलेशनशिप हाई कोर्ट

                                                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्वजन से खतरे की आशंका के चलते लिव-इन में रह रहे पहले से विवाहित जोड़ों को सुरक्षा देने से इन्कार कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा- जो विवाहित जोड़े घर से भागकर लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, वे अपने माता-पिता का नाम खराब तो कर ही रहे हैं और सम्मान के साथ जीने के उनके अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे होते हैं। कोर्ट ने कहा कि भारत लिव-इन रिलेशनशिप की पश्चिमी संस्कृति को अपना रहा है। यदि वह यह मानता है कि याचिकाकर्ताओं के बीच संबंध विवाह की प्रकृति का संबंध है, तो यह उस पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय होगा, जिन्होंने उस संबंध का विरोध किया था।

                                                                       

  • लिव-इन में रह रहे विवाहित जोड़ों को सुरक्षा देने से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का इन्कार
  • कहा, माता-पिता के जीने के अधिकार का उल्लंघन कर रहे घर से भागकर

विवाह का उत्सव नैतिक और कानूनी दायित्व को जन्म देता है, विशेष रूप से पति-पत्नी पर समर्थन का पारस्परिक कर्तव्य और विवाह से पैदा हुए बच्चों का समर्थन और पालन-पोषण करने की उनकी संयुक्त जिम्मेदारी को बढ़ाता है। हाई कोर्ट की टिप्पणी हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप मौदगिल की पीठ ने लिव इन में रह रहे पंजाब एवं हरियाणा के तीन जोड़ों की सुरक्षा याचिकाओं को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणियां कीं याचिकाकर्ता जोड़ों को सुरक्षा देने से इन्कार करते हुए पीठ ने कहा कि विवाहित पुरुष और महिला या तो बिगड़ जाएगा सामाजिक ताना-बाना हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है।

हमारा देश अपनी गहरी  सांस्कृतिक जड़ों के साथ नैतिकता और नैतिक तर्क पर महत्वपूर्ण जोर देता आया है। हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमने पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया, जो भारतीय संस्कृति से बहुत अलग हैं। भारत के एक हिस्से ने आधुनिक जीवनशैली को अपना लिया है, यानी लिव-इन रिलेशनशिप। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा दी गई तो समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना ही बिगड़ जाएगा।

                                                                   

विवाहित महिला और पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशनशिप विवाह के समान नहीं है, क्योंकि यह व्यभिचार और द्विविवाह के बराबर है, जो कि गैरकानूनी है। इसलिए ऐसी महिलाएं अधिनियम के तहत किसी भी सुरक्षा की हकदार नहीं हैं। याचिकाकर्ता इस तथ्य से पूरी तरह अवगत हैं कि वे दोनों पहले से विवाहित हैं, इसलिए वे लिव-इन में नहीं आ सकते। सभी लिव-इन विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं होते। इसलिए याचिकाकर्ताओं के संबंध विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि यदि कोर्ट यह मानता है कि याचिकाकर्ता एक और याचिकाकर्ता दो के बीच संबंध विवाह की प्रकृति का संबंध है, तो हम उस संबंध का विरोध करने वाली पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय करेंगे। विवाह में प्रवेश करना एक ऐसे रिश्ते में प्रवेश करना है जिसका सार्वजनिक महत्व भी है। विवाह और परिवार की संस्थाएं महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं जो सुरक्षा प्रदान करती हैं और बच्चों के पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

                                                                              

जस्टिस मौदगिल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को शांति, सम्मान और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, इसलिए इस तरह की याचिकाओं को अनुमति देकर हम गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और कहीं न कहीं द्विविवाह की प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।