गंगा दशहरा पर्व की महिमा और उसकी महत्वता

                 गंगा दशहरा पर्व की महिमा और उसकी महत्वता

                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                 

वैसे तो भारत में प्रतिदिन पर्व ही पर्व और त्योहार आते रहते हैं, किंतु गंगा का महत्व ऐसा है कि गंगा में स्नान अपने आप में ही एक पर्व बन जाता है। इसलिए प्रत्येक शुभ तिथि में गंगा स्नान अति शुभ माना गया है। आजकल ज्येष्ठ माह चल रहा है और इसी माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर, भागीरथ के पितरों की सहस्त्रों आत्माओं को शुद्ध करने के लिए मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी। कथा के अनुसार अयोध्या के राजा महाराज सगर स्वर्ग का राज्य प्राप्त करने के उद्देश्य से अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, उन्होंने अश्वमेध यज्ञ के लिए जो घोड़े छोड़े थे उसकी रक्षा के लिए उन्होंने अपने 10000 पुत्रों को भेजा।

यज्ञ पूरा होते देख इंद्र को भय हुआ कि यदि यज्ञ यज्ञ पूरा हुआ तो सागर को स्वर्ग का राज्य मिल जाएगा। ऐसे में इंद्र ने यज्ञ के घोड़े को चुराकर पाताल में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। इधर सागर के पुत्र घोड़े की तलाश करते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचते हैं और वहां घोड़ा बना देख कपिल मुनि पर क्रोधित होते हैं और उन्हें काफी अपशब्द कहते हैं।

                                                                   

तपस्या में आई बाधा से नाराज होकर मुनी अपनी आंखें खोलते हैं और सगर के पुत्रों को देखते हैं कि देखते और इससे राजा सगर के सभी पुत्र जलकर भस्म हो जाते हैं। महाराज सगर को जब यह घटना पता चलती है तो वह भागे भागे वहां पहुंचते हैं और अपने पुत्रों को जीवित करने की प्रार्थना मुनी जी से करते हैं, मगर मुनि कहते हैं कि अब यह तभी जीवित होंगे जब उनकी भस्म को मां गंगा पृथ्वी पर आकर स्पर्श करेंगी। यह कार्य करना कठिन था, क्योंकि उस समय गंगा जी ब्रह्मा जी के कमंडल में थी।

राजा सागर ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए बड़ी तपस्या करते हैं, लेकिन असफल रहते हैं। बाद में राजा भागीरथ  के भागीरथी प्रयासों से गंगा मां पृथ्वी पर आती हैं तथा उनके स्पर्श से राजा सगर के सभी पुत्र जीवित हो उठते हैं तभी से गंगा का नाम भागीरथी पड़ा और जहां 10, 000 पुत्र जलकर राख हुए थे वह स्थान गंगा सागर के नाम से जाना गया। तब से गंगा पृथ्वी पर निरंतर बहती आ रही है और उनके अवतरण दिवस को ही गंगा दशहरा को एक पर्व रूप में मनाया जाता है। प्रयाग में एक गीत गया जाता है जो के इस प्रकार से है-

गंगा तेरी लहर सबाही के मन भाई

ब्रह्मा जी कमंडल  पर ले शिवजी घर ले कर परवा

गंगा उत्तरी इंद्रपुरी से देवता के महलवा।

लहर लहर उच्चार सभी के मन भाई

हरिद्वार से गंगा सागर तीर्थ काशी धाम

जय मिली  प्रयागराज वाले के हरि का नाम।

हर हर गंगे पार सभी के मन भाई

गंगा दशहरा पर दान में छिपी है महिमा।

                                                          

हर हर गंगे, हर हर गंगे एक ऐसा महामंत्र है जो गंगा में स्नान करता हुआ हर श्रद्धालु जब्त जाता है और करता ही जाता है। ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य को 10 प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। दशहरा ऐसा शुभ शब्द है जो मन कर्म और वाणी से जुड़े 10 तरह के पापों को हरने या नष्ट करने की क्षमता को अभिव्यक्ति करता है। हमारे यहां हर पर दान की परंपरा स्वरूप ही रही है। 

अतः गंगा दशहरा का पर भी दान का संदेश देता है और हमें याद है कि बचपन में गर्मी के दिनों में जब आम और खरबूजे आते थे तो मायें दान के लिए निकलती तो दादी कहती थी कि गंगा दशहरा पर जो दान करो 10 करो ना काम ना ज्यादा दीन और वंचित को। गंगा दशहरे पर 10 की संख्या में दान करें- जैसे 10 फल, 10 मिठाई आदि। गंगा दशहरा पर शीतलता प्रदान करने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के दान का विशेष महत्व है। इसमें आप पंखा, मटका जैसी वस्तु दान कर सकते हैं।

ऐसे में यही सही है कि इस भीषण गर्मी में आपके द्वारा दिए गए दान से किसी को आराम मिले। गंगा दशहरा की सुभिता इसी से मानी जा सकती है कि नए घर खरीदने, गृह प्रवेश करने और नया वाहन खरीदने आदि के लिए यह दिन अनुकूल माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन गंगाजल में खड़े होकर गंगा स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

गंगा दशहरा के पर्व में छिपी है प्रेरणा

                                                              

गंगा दशहरा पर्व की कथा सुनने और पर्व का स्वरूप देखने के बाद यह समझ में आता है कि यह पर्व आज भी कितना प्रासंगिक है कि जैसे भागीरथ ने अपने कठोर परिश्रम से पर्वतों को काटकर गंगा को समतल स्थानों पर प्रवाहित होने के लिए मार्ग बनाया और अपने पूर्वजों को जीवनदान दिया। ठीक वही प्रेरणा आज के मानव के लिए है अर्थात कठिन परिश्रम से हम कुछ भी अर्जित कर सकते हैं। 10, 000 पुत्र का अर्थ राजा सागर की प्रज्ञा है, उन्हें जब गंगा का जल मिला तो सूखी धरती पर खेत लहला उठे और जीवन आनंद से भर गया और हजारों  प्राणियों में नवजीवन का संचार हो उठा, यही उनका पुनः जीवन है।

                                                                        

इसलिए गंगा दशहरा का महत्व सभी लोग पर्वों में अलग और अधुनातन है। अतः इस बार गंगा दशहरा के पर्व में स्नान करें, दान करें, अपने पितरों को प्रणाम करें और सभी को गंगा जैसी शीतलता प्रदान करने का प्रयास भी करते रहें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।