किसान के लिए लाभदायक है बांस की खेती      Publish Date : 01/05/2025

             किसान के लिए लाभदायक है बांस की खेती

                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

बांस से बनने वाली बांसुरी से तो हम सब अच्छी तरह से परिचित हैं। अधिकांश लोग बांस को एक लकड़ी के रूप में जानते है, जबकि वास्तव में यह एक विशेष प्रकार की घास होती है, जो कि मानव के लिए बहुम उपयोगी होती है। बांस इस धरती पर सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाला पौधा है जो कि 24 घंटे में 7.6 इंच तक बढ़ सकता है। जब कि बांस की कुछ प्रजातियां अनुकूल परिस्थितियों में प्रतिदिन एक मीटर से अधिक की बढ़त प्राप्त कर सकती हैं। बांस का नया पौधा एक वर्ष से भी कम समय में अपनी पूरी ऊँचाई प्राप्त कर लेता है।

वहीं एक तथ्य यह भी है कि बांस का एक पेड़ किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में 35 प्रतिशत तक अधिक ऑक्सीजन मुक्त करता है और इसके साथ ही यह इतने ही समय में 17 टन प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बन डाई-ऑक्साईड का अवशोषण भी करता है। विशेष बात तो यह है कि बांस की खेती करने के लिए इसमें कोई उर्वरक प्रयोग करने की आवश्कयता नहीं होती है, क्योंकि बांस, अपने पत्तों को गिराकर उनसे प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों का उपयोग कर अपना विकास करता है। इसके अतिरिक्त बांस एक ऐसी फसल है कि जिस पर सूखा और अधिक वर्षा का भी कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।

                                        

बांस का सूखा सहिष्णु पौधा रेगिस्तान में भी विकास प्राप्त कर सकता है। सर्वाधिक सॉफ्टवुड वृक्षों के समय 20-30 वर्षों की अपेक्षा बांस की कटाई 3-5 वर्ष में भी की जा सकती है। बांस की खेती कर किसान शीघ्रता से लखपति बन सकता है। बांस को खेत में लगाने के पांच वर्ष बाद उपज देना आरम्भ कर देता है। अन्य फसलों पर सूखा, बाढ़, कीट एवं व्याधियों का प्रकोप हो सकता है, जिसके चलते किसान को काफी हानि का सामना करना पड़ता है। बांस की छोटी-छोटी टहनियों और इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर, बच्चा पैदा होने के बाद जानवरों को उनके पेट की सफाई करने के उद्देश्य से दिया जाता है।

जहां बांस के चिकित्सीय उपकरण उपलब्ध नही हो पाते हैं, वहां बांस के तनों एवं पत्तियों को काट-छांट उनकी सफाई कर इनका खपच्चियों के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही बांस की खपच्चियों का उपयोग विभिन्न प्रकार की चटाई, कुर्सी, मेज, चारपाई के साथ ही अन्य बहुउपयोगी वस्तुओं को बनाने में भी किया जाता है। मछली पकड़ने के लिए प्रयुक्त होने वाला कांटा, डलिया आदि सामाना भी बांस से ही बनाए जाते हैं। साथ ही बांस का उपयोग मकान बनाने और पुल बनाने के काम में भी प्रचुरता से किया जाता है।

                                         

पुराने समय में बांस की कांटेदार झाड़ियों की सहायता से किलों की रक्षा करने का काम लिया जाता था। पैनगिस नामक एक तेजधार युक्त छोटी सी वस्तु से शत्रु के प्राण भी लिए जा सकते हैं। बांस के उपयोग से विभिन्न प्रकार के वाद्य यन्त्र जैसे बांसुरी, वायलिन और नागा लोगों का ज्यूर्स हार्प एवं मलाया का औकलांग आदि बनाए जाते हैं। एशिया में भी बांस की लकड़ी बहुउपयोगी मानी जाती है, जो घर में प्रयोग होने वाली छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर भवन आदि के बनाने के काम में आती हैं। इसके अलावा बांस के तने का भक्षण भी किया जाता है, और इसका अचार और मुरब्बा आदि भी बनाया जाता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।