नाइट्रोजन की ओवर डोज के चलते मिट्टी की सेहत खराब Publish Date : 06/08/2023
नाइट्रोजन की ओवर डोज के चलते मिट्टी की सेहत खराब
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता
पिछले कुछ दशकों से किसान अच्छी फसल प्राप्त करने के चक्कर में एक बहुत बड़ी गलती करते चले आ रहे हैं, और वह है रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अविवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करना। आज की तारीख में सम्पूर्ण प्रदेश में विभिन्न रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का आवश्यकता से कहीं अधिक प्रयोग किया जा रहा है।
इस समय प्रदेश के 15 जनपद ऐसे हैं जहाँ आने वाले समय में नाइट्रोजन की ओवरडोज गम्भीर संकट खड़ा कर सकती है। नाइट्रोजन की यह अधिकता मृदा एवं मानव एवं पारिस्थितिकी तन्त्र तीनों के लिए अत्याधिक हानिकारक सिद्व हो रही है। प्रदेश के कृषि विभाग के द्वारा सर्वे करने के पश्चात् इन जिलां की रिपोर्ट शासन को प्रेषित कर दी है।
इस रिपोर्ट में आख्या दी गई है कि इसके सम्बन्ध में किसानों को जागरूक करना ही एकमात्र विकलप है जिससे कि आने वाली इस मुसीबत से बचा जा सकें।
वर्तमान समय में पूरे उत्तर प्रदेश में फसलों के रकबे और फसलोत्पादन दोनों को बढ़ाने की कवायद चल रही है। हालांकि सरकार के द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ाने के लिए भी अभियान चलाया जा रहा है, परन्तु किसान वर्ग अधिक उपज प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों पर ही अधिक भरोसा कर रहा है। जिसका प्रभाव अब यह है कि हमारी जमीन की उर्वरता निरन्तर कम होती जा रही है और भूमि में सूक्ष्म तत्वों की कमी के साथ ही अन्य तत्वों का संतुलन भी विकृत होता जा रहा है।
रासायनिक उर्वरकों को लेकर प्रदेश के कृषि विभाग के द्वारा प्रदेश के समस्त जिलों का सर्वे कराते हुए एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसके लिए सुयंक्त निदेशक उर्वरक डॉ0 अमित पाठक ने इसके लिए कृषि विभाग के आला अधिकारियों के समक्ष इसका प्रेजेंटेशन करते हुए इस रिपोर्ट को पेश किया।
कृषि विभाग के द्वारा अधिक रकबा कवर करने वाली मुख्य रूप से चार फसलों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। इसके लिए धान, गन्ना, आलू और गेंहूँ आदि इन चारों फसलों में विशेया रूप से नाइट्रोजन के स्तर की जाँच की है। डॉ0 पाठक के अनुसार, प्रदेश में धान की फसल में नाइट्रोजन का स्तर 150, गन्ना और आलू की फसल में नाइट्रोजन का स्तर 180, तथा गेंहूँ में नाइट्रोजन का स्तर 150 एन प्रति हेक्टेयर होना चाहिए। किसान इसकी पूर्ति करने के लिए एनपीके और विशुद्व यूरिया का प्रयोग करते हैं।
वहीं सर्वे में सामने आया है कि वर्तमान में प्रदेश के 15 जिलों में नाइट्रोजन का स्तर मानक से अधिक प्रयोग किया जा रहा है। जबकि इन 15 जिलों में से 7 जिलों शामली, संभल, फर्रूखाबाद, हापुड़, कन्नौज, प्रयागराज और मेरठ में तो यह आँकड़ा 200 के भी पार जा चुका है।
मानव स्वास्थ्य के लिए भी बहुत खतरनाक
इस सब में सच्चाई तो यह है कि किसान भले ही कितना भी उर्वरक प्रयोग करें परन्तु फसलीय पौधे उसमें से कवेल 30 प्रतिशत का ही उपयोग कर पाते हैं। इसलिए फसल की माँग से अधिक प्रयोग किया नाइट्रोजन वाष्पीकरण एवं लीचिंग के माध्ष्म से बेकार ही चला जाता है। नाइट्रोजन का अत्याधिक प्रयोग करने से जलवायु परिवर्तन एवं भूजल प्रदूषण में वृद्वि करता है।
फसलों में प्रयोग किये जाने के बाद यूरिया का रिसाव जमीन मे हो जाता है, जो नाइट्रोजन के साथ संयोग कर नाईट्रासोमाईन नामक यौगिक बनाता है और नाईट्रासोमाईन से दूषित जल का सेवन करने से मानव में कैंसर, रूधिर की लाल रक्त कणिकाओं का कम होना और रसौलियों के बनने के जैसी समस्याओं का समाना करना पड़ता है।
डॉ0 पाठक बताते हैं कि चूँकि डीएपी खाद, रॉक फॉस्फेट के रूप में आता है, जिसका शोधन करने के बाद फॉस्फोरस प्राप्त होता है। डीएपी का रॉक फॉस्फेट का शोधन करने के दौरान इसमें हैवी सब्सटेंट जैसे कोबाल्ट, कैडमियम एवं यूरेनियम आदि रह जाते हैं जिनके चलते ही मृदा एवं जल प्रदूषित होते हैं, और अंततः मृदा बेकार होने की स्थिति में पहुँच जाती है।
मृदा की जाँच भी है आवश्यक
सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में मृदा की जाँच के लिए तहसील, एवं विकासखण्ड़ स्तर पर उप-संभाग में प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। इन प्रयोगशालाओं में 12 बिन्दुओं की जाँच की जाती है जिनमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक और बोरान आदि के सम्बन्ध में मृदा की जाँच कराई जाती है। किसानों को अपने खेत की मृदा की जाँच कर यह पता लगाना चाहिए कि उनके खेती की मृदा में किस तत्व की कमी है और उसी के अनुसार अपने खेत में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। परन्तु अधिकतर किसान भाई इस कार्य को कराने से बचते हैं और उन्हें उसकी हानि भी उठानी पड़ती है।
डॉ0 पाठक के अनुसार, फसल की बुआई करने के 40 दिन के बाद फसल में नैनों यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि यह कम लगता है और इस पव्रभाव काफी समय तक बना रहता है।
अन्य फसलों का सर्वे भी किया जाना चाहिए-
एपीसी कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह ने प्रदेश के कृषि विभाग को निर्देश दिए हैं कि वह अन्य फसलां का सर्वे भी करें और सर्वे के आधार पर एक कार्ययोजना को तैयार कर किसनों में जागरूकता लाने का प्रयास करें। उन्हें इसके सम्बन्ध में बताया जाना चाहिए कि यदि उनके खेत में उर्वरक की कमी नही है तो इसका यह अर्थ कदापि नही है कि फसलों की माँग से अधिक इनका प्रयोग किया जाए, अन्यथा इसके अपने दुष्प्रभाव भी होते हैं।
अधिक उर्वरक और नाइट्रोजन की खपत करने वाले प्रदेश के जनपद
शामली - 234
संभल - 219
फर्रूखाबाद - 216
हापुड़ - 208
कन्नौज - 204
मेरठ - 203
प्रयागराज - 201
अमरोहा - 195
रायबरेली - 189
बाराबाँकी - 176
शाहजाँपुर - 176
मुरादाबाद - 171
कौशाम्बी - 169
एटा - 167
बिजनौर - 163
होंडा के टू व्हीलर्स ई-20 ईंधन के माध्यम से चलने में सक्षम
लखनऊ में होंडा मोटरसाइकिल एण्ड स्कूटर इंडिया लिमिटेड के वरिष्इ अधिकारी योगेश माथुर ने कहा कि कम्पनी के द्वारा लाँच किए जा रहे दुपहिया वाहन 20 प्रतिशत मिश्रित एथेनॉल ईंधन पर चलने में सक्षम हैं। कम्पनी के द्वारा अपने दुपहिया वाहनों में 20 प्रतिशत मिश्रित एथेनॉल ईंधन के लिए आवश्यक फेर बदल किया गया है। ‘‘द टाइम्स ऑफ इण्डिया’’ के अनुसार राज्य के दुपहिया वाहन मार्केट में अपनी पैठ बढाने के उद्देश्य से कम्पनी ने राज्य की राजधानी में अपनी 100-सीसी बाइक लाँच की है।
माथुर ने कहा कि बहुत से दुपहिया वाहन स्वामी ई-20 सम्मिश्रण कार्यक्रम के सम्बन्ध में आशांकित रहते हैं। कम्पनी के अध्यक्ष, सीईओ एवं प्रबन्ध निदेशक सुत्सुमु ओटानी ने कहा, उत्तर प्रदेश में शाइन-100 का लाँच करना कम्पनी के लिए एक मील का पत्थर है। नवाचार, उत्कृष्टता और ग्राहक संतुष्टि के लिए हमारी पूरी टीम प्रतिबद्व है। कम्पनी के बिक्री और विपणन निदेशक योगेश माथुर का कहना है कि गा्रहकों के द्वारा 100-सीसी वाली बाइक सर्वाधिक पसंद की जाने वाली बाइकों में से एक है। माथुर ने बताया कि वर्तमान में यूपी के दुपहिया वाहन बाजार में कम कम्पनी की हिस्सेदार लगभग 13 प्रतिशत है, और हमें पूरा विश्वास र्है कि हम अपने इस नए उत्पाद के साथ अपने ग्राहकों की अपेक्षाओं को पूर्ण करने जा रहे हैं।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।