
गन्ने के साथ फसल विविधीकरण Publish Date : 09/03/2025
गन्ने के साथ फसल विविधीकरण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु
विश्व का एक प्रमुख गन्ना उत्पादक देश
गन्ना, भारत की एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है। गन्ने की खेती में लगभग 50 लाख किसान और लाखों कृषि श्रमिक जुड़े हुए हैं। अधिकांश चीनी मिलें ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं, जो भारत की ग्रामीण आबादी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करती हैं। उष्णकटिबंधीय जलवायु गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त है। उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बीच गन्ना उत्पादकता में बड़ा अंतर (10-15 टन/ हैक्टर) होता था।
भाकृअनुप-गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, करनाल द्वारा विकसित एक अधिक उपज और अधिक चीनीयुक्त गन्ना किस्म ‘को.-0238’ को गन्ना किसानों द्वारा बड़े स्तर पर अपनाए जाने के कारण उपोष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय राज्यों के बीच उत्पादकता का अंतर वर्ष दर वर्ष कम हो गया है। आज भारत की औसत गन्ना उत्पादकता 80.5 टन प्रति हैक्टर हो गई है। यह विश्व के पांच प्रमुख गन्ना उत्पादक देशों में सर्वाधिक है।
भारत के सैकड़ों किसानों द्वारा 200 टन/हैक्टर उपज (राष्ट्रीय औसत से लगभग तीन गुना अधिक) प्राप्त करने में प्रजाति को.-0238 (उत्तर भारत) एवं को.-86032 (प्रायद्वीपीय क्षेत्र) की वैज्ञानिक खेती की सफलता ने गन्ना किसानों में जागरूकता पैदा की है। देश में उष्णकटिबंधीय (लगभग 40-45 प्रतिशत) और उपोष्णकटिबंधीय (लगभग 55-60 प्रतिशत) पर्यावरण की विभिन्न जलवायु स्थितियों के तहत लगभग 50-52 लाख हैक्टर क्षेत्रों में गन्ने की खेती की जा रही है।
आज के हमारे प्रस्तुत लेख में भाकृअनुप-गन्ना प्रजनन संस्थान द्वारा प्रशिक्षित और निर्देशित किसानों की सफलता को विस्तार से बताया गया है, जिन्होंने न केवल अपनी उत्पादकता और आय को दोगुना किया है, बल्कि अपने क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत तथा रोल मॉडल भी बन गए हैं।
किसानों की सफलता की कहानी
वर्तमान में बड़ी संखया में किसान चौड़ी पंक्ति गन्ना रोपण, तकनीक एकल आंख बीज टुकड़ों द्वारा अथवा नर्सरी ट्रे में तैयार पौध का प्रयोग करके अपना रहे हैं, जबकि कुछ किसान अंतर-फसल भी ले रहे हैं, जो न केवल दोगुनी गन्ना उपज प्राप्त करने में सक्षम रहे हैं, बल्कि क्षेत्र में बदलाव के प्रतिनिधि भी साबित हो रहे हैं। ऐसे चुनिंदा किसानों की सपफलता की कहानी प्रस्तुत है।
गन्ने के साथ फसल विविधीकरण की मिसाल
प्रगतिशील गन्ना किसान
श्री हरेन्द्र सिंह रियाड, गांव बामड़ी, गुरदासपुर पंजाब के एक युवा, कर्मठ एवं प्रगतिशील गन्ना किसान हैं, जो गन्ने की पौध नर्सरी विधि से लगभग 30 एकड़ क्षेत्र में आधुनिक गन्ना खेती करते हैं। वे करनाल केन्द्र के वैज्ञानिकों की सलाह से गन्ना उपज में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। किस्म को.-0238 व को.-0118 के आगमन से पूर्व उनके खेतों में गन्ने की पैदावार 30-40 टन प्रति एकड़ होती थी, लेकिन अब वे अपने खेतों से गन्ने की पैदावार 70-80 टन प्रति एकड़ प्राप्त कर रहे हैं। श्री रियाड़ गन्ने की पौध नर्सरी तैयार करके 5×2 फीट के अंतराल पर रोपाई करते हैं, जिसमें प्रति एकड़ लगभग 4000-4500 पौधे ही लगाते हैं।
पौध नर्सरी विधि
पंजाब राज्य के अनेक युवा किसानों के वे प्रेरणास्रोत हैं एवं पंजाब में पौध नर्सरी विधि के विस्तार में काफी कामयाब रहे हैं। वे आशावान हैं कि भविष्य में पौध नर्सरी तकनीक से उन्हें प्रति एकड़ 100 टन (राज्य के औसत से 3 गुणा से भी अधिक) से भी ज्यादा उपज मिलेगी।
टपक सिंचाई प्रणाली
इन्होंने गन्ने के साथ अंतःफसल के रूप में राजमा, तोरिया, सरसों, चना, आलू एवं चुकन्दर की फसल भी ली और उसके साथ 400 क्विंटल प्रति एकड़ गन्ने की पैदावार ली। उन्होंने अपने खेत पर टपक सिंचाई प्रणाली लगा रखी है।
अंतःफसल
स्वयं के प्रयास से अंतःफसलों जैसे-पालक, धनिया एवं मसूर के व्यावसायीकरण पर काम किया। किसानों का एक वाट्सएप ग्रुप बनाकर बहुत सारे किसानों को उसमें जोड़ा। फसल की कटाई में श्रमिकों के अभाव को देखते हुए एवं भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर उन्होंने शुगरकेन हार्वेस्टर मशीन खरीद ली। ऐसा करने वाले वे न केवल उत्तर भारत के संभवतः भारत के भी पहले गन्ना किसान हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।