
मीठे बांस की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय Publish Date : 23/01/2025
मीठे बांस की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
गहन शोध करने के बाद शोधकर्ताओं ने प्रयोगशला में मीठे बांस की एक प्रजाति को तैयार करने में सफलता प्राप्त कर ली है। उक्त शोध बिहार के जिला भागलपुर में स्थित टीएनबी कॉलेज में स्थित प्लांट टिश्यू कल्चर लैब (पीटीसीएल) में किया गया है। इस शोध के बाद अब प्रयोगशाला में मीठे बांस के पौधे व्यवसायिक दृष्टि से वृहद स्तर तैयार किए जा रहे हैं। अब किसान इस व्यवसाय को अपनाकर निश्चित् रूप से अपनी आय को बढ़ा सकते हैं।
इस शोध के माध्यम से अब ग्रामीण आथिकी को समृद्व करने के लिए नई सम्भावनाओं का आगाज हुआ है। ऐसे में बिहार की अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने में बांस की खेती पूरी तरह से सक्षम हो सकती है, क्योंकि वर्तमान समय में मीठे बांस की माँग काफी अधिक बनी हुई है। वर्तमान में विश्व के कई देशों में मीठे बांस से विभिनन खाद्य उत्पादन भी बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही इस प्रजाति के बांसों का उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाओं को बनाने में भी बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
सभी प्रकार के मौसम और मृदाओं में की जा सकती खेतीः बांस की इस प्रजाति की खेती किसी प्रकारके मौसम और लगभग समस्त प्रकार की मृदाओं में आसानी के साथ की जा सकेगी। परीक्षण के दौरान एनटीपीसी से निकले राख के ढेर पर भी इस प्रजाति के पौधों का उगाने में भी सफलता प्राप्त हुई है।
दवा उद्योग और खाद्य उत्पादों के निर्माण में भी उपयोगीः खाद्य प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से बांस के इन पौधों से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं। मीठे बांस से बनाए गए खाद्य उत्पादों में चिप्स, अचार और कटलेट जैसे उत्पाद चीन, ताईवान, सिंगापुर और फिलीपींस जैसे देशों में बड़े स्तर पर तैयार किए जा रहे हैं। इसके साथ ही अब भारत में भी इसका उपयोग व्यवसायिक स्तर पर किया जा सकेगा। साथ ही इससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भी काफी बढ़ावा मिलेगा। इसके मीठे बांस के पौधों से एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर जैसे कठिन रोगों के उपचार के लिए दवाईयां भी बनाई जा सकेंगी।
बायो सीएनजी, गैस एवं एथेनॉल आदि भी बनाए जा सकेंगेः बांस के पौधें कार्बन डाई-ऑक्साइड को अच्छी तरह से अवशोषित कर कार्बनिक पदार्थ का निर्माण करते हैं। यह कार्बनिक पदार्थ मृदा में मिलकर मृदा की उर्वरा शक्ति में भी वृद्वि करने में सहायक होते हैं।
बांस के पौधों की सहायता से बायो एथेनॉल, बायो सीएनजी और बायोगैस आदि के उत्पादन के शोधकार्य भी प्रगति पर हैं। भारत में बांस की 135 से अधिक व्यवसायिक प्रजातियां पाई जाती है और इनका औद्योगिक उपयोग भी किया जा सकेगा। बांस की खेती से पेपर इंडस्ट्री और फर्नीचर इंडस्ट्र के अलावा अन्य विभिन्न उद्योगों की भी वृद्वि होती है। वर्तमान में बांस को भविष्य में प्लास्टिक का सबसे बड़ा और सबसे अच्छा विकल्प माना जा रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।