गेंहूँ की बुवाई करने से पूर्व      Publish Date : 26/10/2024

                              गेंहूँ की बुवाई करने से पूर्व

                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

धान की कटाई के पश्चात् रबी की फसलों की बुवाई

धान की कटाई के बाद अब रबी मौसम की फसलों की बुवाई का समय अब आ चुका है। इस समय अधिकांश किसान गेंहूँ बुवाई करने जा रहें हैं। गेंहूँ की बुवाई के सही तरीके, गेंहूँ के बीज की गुणवत्ता एवं उसकी उचित मात्रा पर ध्यान देने का समय है। विभिन्न कृषि एक्सपर्ट्स के अनुसार, यदि गेंहूँ के बीज की गुणवत्ता और उचित मात्रा का ध्यान रखा जाए तो गेंहूँ का अच्छा उत्पादन प्राप्त करना किसानों के लिए आसान हो जाता है। हालांकि, यह बात अलग है कि गेंहूँ के बीज की उचित मात्रा गेंहूँ के बीज की किस्म एवं बुवाई के समय पर निर्भर करती है।

भारत में गेंहूँ की खेती को तीन प्रमुख चरणों में विभाजित किया जा सकता है: गेंहूँ की अगेती बुवाई, मध्यर्म और पछेती बुवाई। इन तीनों चरणों का सही समय और उचित किस्म का चयन करने से किसान गेंहूँ का अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हमारे कृषि विशेषज्ञ गेंहूँ की कुछ अगेती, मध्यम और पछेती किस्मों की जानकारी प्रदान कर रहें है और यह किस्में भारतीय किसानों के बीच काफी लोकप्रिय भी हैं।

गेंहूँ की खेती के चरण

प्रथम चरण (गेंहूँ की अगेती बुवाई): 25 अक्टूबर से 10 नवंबर तक।

द्वितीय चरण (गेंहूँ की मध्यम बुवाई): 11 नवंबर से 25 नवंबर तक।

तृतीय चरण (गेंहूँ की पछेती बुवाई): 26 नवंबर से 25 दिसम्बर तक।

बीज की मात्रा एवं बुवाई का तरीका

गेंहूँ की खेती में इसके बीज की मात्रा और बुवाई के तरीके का काफी महत्व होता है। गेंहूँ की बुवाई कुछ किसान भाई परंपरागत तरीके यानी कि छिटकवां विधि से करते हैं, जबकि बहुत से किसान गेंहूँ की बुवाई आधुनिक कृषि यंत्रों के माध्यम से करते हैं। क्येंकि शीड ड्रिल जैसे आधुनिक यंत्रों के माध्यम से गेंहूँ की बवाई करने पर गेंहूँ का बीज समान दमरी एवं गहराई पर गिरता है, जिसके कारण गेंहूँ की फसल काफी अच्छी होती है। वहीं गेंहूँ की बुवाई के दौरान इसके अतिरिक्त हैप्पी सीडर और सुपर सीडर जैसे अन्य कृषि यंत्रों का उपयोग भी किया जा सकता है। यह गेंहूँ की बुवाई को अधिक सटीक और प्रभावी बनाते हैं।

गेंहूँ बुवाई आधुनिक तकनीकों से करे

नवंबर माह में गेंहूँ की बुवाई के दौरान सीड ड्रिल मशीन से 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज का उपयोग करना पर्याप्त रहता है। आधुनिक मशीनों की सहायता से गेंहूँ की बुवाई करने पर बीज एक समान दूरी एवं गहराई पर गिरने से गेंहूँ के बीज का अंकुरण बेहतर होता है और साथ ही फसल की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

छिटकवां विधि से बीज की मात्रा

                                                          

वर्तमान समय में भी कुछ किसान ऐसे हैं जो कि गेंहूँ की बुवाई छिटकवां विधि से ही करना पसंद करते हैं, इस विधि से गेंहूँ की बुवाई करने में लगभग 25 प्रतिशत अधिक बीज की खपत होती है। इस विधि से गेंहूँ की बुवाई करने पर 50 से 55 किलाग्राम गेंहूँ के बीज की आवश्यकता होती है। इस विधि के अन्तर्गत किसान खेत को तैयार कर बीज का खेत में छींटा लगाते हैं और फिर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेते हैं। हालांकि बीज की बुवाई करने से पूर्व बीजोपचार करना भी बहुत आवश्यक होता है उेसा करने से बीज स्वस्थ रहता है और फस्ल भी अच्छी होती है।

इस प्रकार किसान भाई आधुनिक तकनीकों का एवं सही तरीकों का उपयोग कर अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं और इसी के साथ ही वह बीज की मात्रा को भी नियंत्रित कर सकते हैं।

गेंहूँ की अगेती एवं पछेती किस्में

गेंहूँ की अगेती किस्में शीघ्र परिपक्व होने वाली किस्में होती हैं, इन किस्मों की बुवाई अधिकतर ठंड़े मौसम में ही की जाती है। यह किस्में ऐसे किसानों के लिए विशेष उपयोगी होती है जो गेंहूँ की फसल को शीघ्र तैयार कर उसके बाद दूसरी फसलें लेना चाहते हैं।

गेंहूँ की अगेती किस्में

                                                              

डब्ल्यूएच-1105, एचडी-2667 तथा पीबीडब्ल्यू-550 आदि कुछ ऐसी किस्में हैं जो शीघ्र ही पकने तथा अधिक उत्पादन देने वाली किस्में होती हैं। जैसे कि डब्ल्यूएच-1105 गेंहूँ की एक लोकप्रिय अगेती किस्म है, जो लगभग 157 दिन में पक जाती है और यह प्रति एकड 20-24 क्विंटल तक की पैदावार देती है। इसकी विशेषता यह है कि यह पीले रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है और इसके पौधों की लंबाई 97 सेमी. तक की होती है और फसल के गिरने से हाने वाले नुकसान में कमी आती हैं।

गेंहूँ की यह किस्म हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं बिहार आदि क्षेत्रों में प्रमुखता से उगाई जाने वाली किस्म है। वहीं दूसरी ओर, एचडी-2967 किस्म 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है जो प्रति एकड 22-23 क्विंटल तक का उत्पादन प्रदान करती है। गेंहूँ यह किस्म भी पीला रतुआ के साथ ही अन्य रोगों के प्रति भी प्रतिरोधी होती है। इस किस्म के पौधों की लंबाई 101 सेमी. तक की होती है और इस किस्म में भूसा अधिक निकलता है। गेंहूँ इस किस्म को पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है।

पीबीडब्ल्यू-550 अभी हाल ही में जारी की गई एक नवीनतम किस्म है जो केवल 145 दिनों में ही पककर तैयार हो जाती है और यह किस्म 22-23 क्विंटल प्रति एकड़ तक का उत्पादन देने में सक्षम हैं। गेंहूँ की यह किस्म भी रोगों के प्रति प्रतिरोधी है और इसके पकने समय अन्य अगेती किस्मों की अपेक्षाकृत कुछ कम होता है।

गेंहूँ की पछेती बुवाई दिसम्बर से जनवरी के महीने में की जाती है। गेंहूँ की यह किस्म ऐसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहाँ लम्बी ठंड होती है और गेंहूँ की बुवाई देर से की जाती है। गेंहूँ की पछेती किस्मों में यूपी-2338, एचडी-2888, नरेन्द्र गेंहूँ-1076, पूसा वाणी और पूसा अहिल्या आदि हैं जो अधिक उत्पादन देती हैं। इन किस्मों में सिंचाई 4 से 5 बार करनी होती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने की रणनीतियों में गेंहूँ की अगेती बुवाई करना एक प्रभावी विकल्प साबित हो सकता है। 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।