कृषि में न्यूट्रीसीरियल की महत्ता      Publish Date : 24/09/2024

                                                                    कृषि में न्यूट्रीसीरियल की महत्ता

                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

न्यूट्रीसीरियल का उत्पादन कम उर्वरता एवं कम गहरी भूमि के अलावा सूखे और अधिक तापमान वाली परिस्थितयों में भी होता है। ऐसे अनाज, क्षेत्र की विशेषताओं के अनुसार खुद को अनुकूल बना लेते हैं। ये कम बारिश वाले स्थान पर उगते हैं, जहां पर 50-70 सें.मी. तक बारिश होती है। इसलिए शुष्क क्षेत्रों के लिए ये फसलें वरदान हैं। 15-35 डिग्री सेल्सियस का तापमान इनकी प्रगति के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। ये क्षारीय मृदा या अम्लीय मृदा में भी उगाई जा सकती हैं। विपरीत परिस्थितियों के प्रति ये सहनशील होती हैं। ऐसे स्थानों पर भी उग सकती हैं, जहां पर अन्य फसलें जैसे-मक्का या गेहूं नहीं उगाई जा सकतीं

फसलें के व्यवसायीकरण से पूर्व  बुन्देलखंड में बड़े व छोटे न्यूट्रीसीरियल के अंतर्गत अच्छा-खासा क्षेत्रफल व उत्पादन था। वर्तमान में ज्वार व बाजरा की खेती सीमित रह गयी है, जबकि छोटे न्यूट्रीसीरियल का क्षेत्रफल बुन्देलखंड में न के बराबर है। फिर भी छोटे कदन्न अनाजों में सावां व कोदो का क्षेत्रफल बुन्देलखंड के कुछ जिलों में देखने को प्रायः मिलता है। खरीफ मौसम में उगाये जाने वाले कुल सीरियल अनाजों में क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से न्यूट्रीसीरियल का क्रमशः 56 प्रतिशत व 53 प्रतिशत हिस्सा है।

परंपरागत रूप से बुन्देलखंड में खरीफ के मौसम में ज्वार, बाजरा, मक्का तथा मंडुआ, सावां, कोदो, टांगुन व कुटकी काकुन फसलें उगाई जाती हैं। समय के साथ कृषि का व्यवसायीकरण हुआ, जिसके पीछे खेती मार्च 2022.7

विभिन्न प्रकार के कारकों का होना माना जाता है जैसे-परिवार में वृद्धि, परिवार को आवश्यकताओं का बढ़ना, कम समय में अधिक उपज देने वाली दूसरी फसलों को प्रजातियों का होना व बाजार की उपलब्धता आदि।

बदलते मौसम में जहां एक तरफ तापमान बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर भूमिगत जलस्तर लगातार घट रहा है। रसायनों के अधिकाधिक प्रयोग से स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रहा है। स्वास्थ्य व कुपोषण को ध्यान में रखते हुए आम जन ने न्यूट्रीसीरियल की तरफ अपना ध्यान आकर्षित किया है। बुन्देलखंड एक शुष्क क्षेत्र है, जहां पर कम वर्षा, फसल अवधि में लंबे सूखे का पड़ना, फसल अवधि के दौरान मृदा में नमी का कम समय के लिए होना, असमान वर्षा का होना, टोपोग्राफी का समतल न होना, तापमान का ज्यादा होना चुनौतियां कम नहीं हैं। यहां का मौसम व मृदा की परिस्थितियां न्यूट्रीसीरियल के लिए अनुकूल हैं। न्यूट्रीसीरियल पोषक तत्वों के लिहाज से अन्य अनाजों से बेहतर होते हैं। विपरीत मौसमी परिस्थितियों में इनकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। भारत सरकार ने भी न्यूट्रीसीरियल को फसल प्रणाली में सम्मलित करने की कवायद शुरू कर दी है। इसके अलावा बुन्देलखंड क्षेत्र में चारे की खासी कमी है। न्यूट्रीसीरियल हरे व सूखे चारे के अच्छे विकल्प हैं और न केवल मानव को पोषकों से भरपूर आहार बल्कि पशुओं के लिए अच्छी गुणवत्ता का चारा भी उपलब्ध करवाते हैं

   हरित क्रांति से पूर्व न्यूट्रीसीरियल स्थायी भोजन के स्रोत रहे हैं। उस समय अधिकांश लोग न्यूट्रीसीरियल पर ही निर्भर रहते थे। स्वतंत्रता के समय भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था बल्कि वर्ष 1966-67 तक आयात पर ही निर्भर था। इसके बाद हरित क्रांति के कारण खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि देखी गई। लेकिन हरित क्रांति का प्रभाव मुख्यतः गेहूं और धान के उत्पादन तक ही सीमित रहा। फलतः इससे भारतीय कृषि कुछ हद तक एकल खेती की ओर अग्रसर हुई, जिसके फलस्वरूप जैवविविधता में कमी आयी है। वर्ष 1967-68 के बाद के दशकों में कदन्न अनाजों के क्षेत्रफल में भी कमी देखी गई। हरित क्रांति के बाद न्यूट्रीसीरियल को गेहूं एवं अन्य अनाज द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसके फलस्वरूप न्यूट्रीसीरियल के अंतर्गत क्षेत्रफल में कमी आयी है। वर्ष 1967-68 के दौरान न्यूट्रीसीरियल के अंतर्गत क्षेत्रफल 38.30 मिलियन हैक्टर तथा उत्पादन 19.03 मिलियन टन था और यह वर्ष 2017-18 में घटकर 13.71 मिलियन हैक्टर तथा उत्पादन 16.44 मिलियन टन हो गया है

न्यूट्रीसीरियल दुनिया के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में प्रमुख खाद्य स्रोत हैं तथा लोगों के पारंपरिक व्यंजनों में शामिल हैं। न्यूट्रीसीरियल में मुख्य रूप से स्टार्च होता है तथा प्रोटीन की मात्रा गेहूं और मक्का के बराबर होती है। न्यूट्रीसीरियल के लिए यह अवधारणा है कि ये प्राथमिक अनाज हैं. जिनका उपयोग मानव के विकास के समय से किया जा रहा है। उत्तरी चीन से कुछ साक्ष्य मिलते हैं, जिनसे यह प्रतीत होता है कि नूडल्स खाद्य पदार्थों का निर्माण वहां चार हजार वर्ष पूर्व ज्वार से हुआ था। सम्पूर्ण विश्व में लगभग 90 प्रतिशत न्यूट्रौसीरियल का उपयोग विकासशील देशों में हो रहा है। कदन्न अनाज को मुख्यतः संपूर्ण अनाज के रूप में उपयोग किया जाता है।

न्यूट्रीसीरियल के स्वास्थ्य संबंधी गुण

कदन्न अनाजों की प्रोटीन में अच्छी तरह से संतुलित अमीनो अम्ल प्रोफाइल होता है। ये मेथियोनिन, सिस्टीन और लाइसिन के भी अच्छे स्रोत हैं। कदन्न अनाजों में कार्बोहाइड्रेट का उच्च अनुपात होता है, जो गैर स्टार्च पॉलीसैक्राइड और आहार फाइबर के रूप में शामिल हैं। ये रक्त में कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम रखते हैं। पाचन के दौरान रक्त प्रवाह में ग्लूकोज की गति को धीमा रखते हैं और कब्ज की रोकथाम में मदद करते हैं। मधुमेह की स्थिति में रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में ये सहायक हैं। कदन्न अनाजों में महत्वपूर्ण विटामिन जैसे-थाइमिन, राइबोफ्लेविन, फोलासिन और नियासिन समुचित मात्रा में पाये जाते हैं। इनके नियमित उपभोग करने वालों में हृदय रोग, अल्सर और हाइपरग्लाइसीमिया कम देखा गया है। ये अनाज पोषक तत्वों के मामले में पारंपरिक खाद्यान्न गेहूं और चावल से अधिक समृद्ध होते हैं। इससे ये सूक्ष्म पोषणता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकेंगे और पोषण के मुद्दों का कदन्न अनाज के उपयोग से समाधान किया जा सकेगा। इस तरह के अनाज उनकी अधिक भंडारण अवधि के कारण जाने जाते हैं। 10-12 प्रतिशत नमी के स्तर पर इन अनाजों का कई वर्षों तक भंडारण कर रखा जा सकता है। न्यूट्रीसीरियल के दानों में विशेष रूप से नियासिन, बी-6 और फोलिक एसिड अधिक होता है। इन अनाजों की भूसी, बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन का अच्छा स्रोत है। इनमें रेशे की अधिकता तथा पोषक तत्वों की कम पाचन क्षमता उपभोक्ता स्वीकार्यता को प्रभावित करती है। रागी में कैल्शियम अधिक होता है, लेकिन पाचकता कम है। इनमें ग्लूटीन नहीं होता है इसलिए उन लोगों के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थ है, जिन्हें गेहूं से एलर्जी है। ग्लूटीन नहीं होने के कारण केवल कदन्न अनाजों का प्रयोग रोटी के लिए उपयुक्त नहीं है। गेहूं के साथ मिलाकर रोटी के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। कच्चे कदन्न अनाजों को पूरी तरह से पचाया नहीं जा सकता। अतः मानव उपभोग के लिए उचित रूप में पकाया जाना चाहिए

न्यूट्रीसीरियल्स का क्षेत्रफल व उत्पादन कैसे बढ़ायें

  • सरकार द्वारा न्यूट्रीसीरियल के उत्पाद का उचित मूल्य निर्धारण करना।
  • न्यूट्रीसीरियल की विक्रय करने की उचित व्यवस्था करना, ताकि किसान दर-दर न भटकें।
  • न्यूट्रीसीरियल की पोषक गुणवत्ता का परीक्षण करना तथा लोगों को इसकी गुणवत्ता के बारे में जागरूक करना।
  • न्यूट्रीसीरियल की उन्नत तकनीकियों का विकास करना, ताकि किसान ज्यादा उत्पादन ले सकें।
  • न्यूट्रीसीरियल फसलों का परीक्षण कर अच्छी किस्मों का पता लगाना तथा किसानों के लिए उनको संस्तुत करना।
  • न्यूट्रीसीरियल फसलों को स्कूली शिक्षा में शामिल करना, ताकि इसकी गुणवत्ता के बारे में बच्चों को पता चल सके।
  • न्यूट्रीसीरियल की संरक्षित खेती को बढ़ावा देना।
  • फूड प्रोसेसिंग इकाई की समुचित स्थापना करवाना।

न्यूट्रीसीरियल का महत्व

आज न्यूट्रीसीरियल को विश्व के 6 प्रमुख अनाजों में इनकी उपयोगिता एवं गुणों के आधार पर रखा गया है। इनका उपयोग आज के समय में कई सम्मिश्रित खाद्य एवं पेय पदार्थों के रूप में किया जा रहा है, जो पोषक एवं औषधीय गुण से परिपूर्ण होते हैं। हमारे दैनिक जीवन में ज्यादातर लोग गेहूं और चावल या इससे बने पदार्थों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जबकि हमें सभी प्रकार के न्यूट्रीसीरियल जैसे-ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, चीना. टांगुन, कोदो तथा कुटकी से बने खाद्य उत्पादों को भी खाना चाहिये। भारत में रहने वाले ज्यादातर लोगों को इन न्यूट्रीसीरियल के बारे में या तो पता नहीं है या इनका इस्तेमाल भोजन के रूप में नहीं करते हैं। न्यूट्रीसीरियल भले ही गेहूं और चावल के गुण के समान न हों, लेकिन पोषण स्तर के मामले में उनसे ऊपर ही साबित होते हैं।