गन्ने की फसल में सितम्बर माह में किये जाने वाले कृषि कार्य Publish Date : 06/09/2024
गन्ने की फसल में सितम्बर माह में किये जाने वाले कृषि कार्य
डॉ0 आर. एस. सेंगर
1. गन्ने की बढ़ी फसल को गिरने से बचाने के लिये सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में गन्ने की दो पंक्तियों को आमने-सामने पिछले माह (अगस्त) में बांधे गये झुंडों को आपस में मिलाकर बांधना चाहिये।
2. जिन खेतों में हरी खाद हेतु सनई, ढाँचा बोकर पलट दिया गया था, उसकी जुताई करके खेत तैयार करना चाहिए।
3. यदि गन्ने की बुवाई नाली विधि द्वारा करनी है तो नालियों शीघ्र ही बना लें। समतल विधि द्वारा बुवाई के समय से दो पंख वाले हल से कूड खोलकर बुवाई की जाये। दोनों विधियों में गन्ने की पंक्ति पूर्व से पश्चिम ही रखे व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेमी) रखें। 4. गन्ने की शरदकालीन बुवाई का उपयुक्त समय वर्षां समाप्त होने व जाड़ा शुरू होने के मध्य सितम्बर से अक्टूबर तक ही सीमित रहता है। अतः इस बुवाई का लाभ उठाने की दृष्टि से समय से ही बुवाई करें।
5. बुवाई हेतु बीज का गन्ना क्षेत्र की प्रमाणित पौधशालाओं से ही लें। बुवाई हेतु देर से पकने वाली जातियों को ही चुनना चाहियें, जो कि पिछले वर्ष के शरदकालीन फसल की ही हो।
6. बुवाई के समय तीन आँख के टुकड़े ही काटना चाहिये । प्रति हेक्टेयर बुवाई हेतु गन्ने की मोटाई के अनुसार 50 से 60 कुन्टल बीज अथवा 37,000 से 40,000 तक तीन आंख वाले टुकड़े की आवश्यकता होती हैं।
7. गन्ने में अच्छा जमाव ही अच्छी उपज का सूचक होता हैं, अतः बुवाई से पूर्व तीन आंख के गन्ना बीज उपचार के लिए थायो फानेट मिथाइल 45 प्रतिशत पायराक्लोस्ट्रोबिन, 5 प्रतिशत ऐफ़. एस. की 2.5-3.0 ग्राम./ली. पानी के घोल में 15 मिनट तक शोधित करके बुआई का कार्य करना चाहिए। गन्ने के टुकड़ों का शोधन ट्राइकोडर्मा हार्जियनम की 25 ग्राम/ली. के घोल से करे तथा ट्राइकोडर्मा हार्डियनम कल्चर को सड़ी गोवर की खाद / प्रेसमड में तैयार कर 200 किलोग्राम/है. की दर से फरों में गन्नों के टुकड़ों के नीचे डालकर बुआई करें और कल्ले निकलते समय ट्राइकोडर्मा हाड़ियनम की 25-50 ग्राम/ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से लाल सड़न रोग को रोकने के साथ गन्ने की बढ़वार में मदद मिलती है।
8. बुआई के समय दीमक व अंकुरवेधक के नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 0.3 जी की 20-25 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर अथवा क्लोरान्त्रानीलीप्रोल 0.4ः जी. आर. 47.5 किग्रा./एकड़ की दर से प्रयोग करें।
9. उन कृषकों के लिये जो रबी की फसलों की कटाई कर देरी से गन्ना बोते हैं, उनको चाहिए कि शरदकालीन बुवाई के साथ मिश्रित खेती करना आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद सिद्ध हुआ है, इसलिये रबी की फसलें जिन क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है, लेना चाहिए मिश्रित खेती में प्रायः बौनी जातियों के गेहूं, मटर, प्याज, लहसुन, धनिया, आलू आदि सरलतापूर्वक ले सकते हैं।
10. गन्ने की बुवाई के समय पर्याप्त नमी की दशा में 25 से 50 किलोग्राम नत्रजन हेक्टेयर देना चाहिये। मिट्टी की जाँच के बाद सुझाव अनुसार फास्फेट या पोटाश देना उपयुक्त रहता है।
11. गन्ने की बड़ी फसल (पौधा व पेड़ो) में वर्षा के बाद वाली आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहियें ।
12. इस माह में काना, विवर्ण, लालपरी, गूढ़े की सड़न बामारियां दिखायी देती है। अतः फसल का निरीक्षण मुस्तैदी से करना चाहिये तथा नियंत्रण विधि अपनाना चाहिये ।
13. पायरिला, चोटी बेधक, काला चिकटा, सफेद मक्खी जैसे हानिकारक कीट भी दिखायी देते ही रोक-थाम के उपाय तत्परता से अपनाना चाहिये। प्रत्येक गन्ना कृषक को चाहिये कि गन्ने की प्रति हे) उपज बढ़ाने पर भरपूर ध्यान रखें। अतः ‘क्षेत्रफल कम उत्पादकता अधिक का सिद्धान्त अपनाकर गन्ने की कृषि करना श्रेयस्कर होगा।
14. पायरिला, ऊनी माहूँ व् प्लासी बोरर कीट दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. की मिली./ली. पानी या डायाफेनश्युरान 50% डब्लू. पी. 1 ग्राम/ली. पानी या वलोयन्त्रानीलीप्रोल 8.8% + लैम्डासाईहैलोथ्रिन 17.5% एस. सी. 1.0 मिली./2-3 ली. पानी या ल्युफेन्युरान 5.4% ई.सी. 1.2 मिली/ली पानी या नोवाल्युरान 10% ई.सी. 1 मिली/ ली. पानी या पलूवालीनेट 25% ई.सी. की मिली. 2.5-3.0 ली. पानी की दर से घोल बनाकर 2 छिड़काव 12-15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। यदि खेत में परजीवी हो तो रासायनिक कीटनाशी का छिड़काव कदापि न करें।
15. बसन्तकालीन व देर बसन्तकालीन गन्ने में यदि यूरिया की टाइपड्रेसिंग शेष रह गयी हो तो सिंचाई उपरान्त 50 किग्रा० नेत्रजन/हे० (110 किग्रा० यूरिया) की टाइपड्रेसिंग करें। ध्यान रखें की उर्वरक की पूर्ण मात्रा जून तक अवश्य डाल दें। इससे उर्वरक का पौधे भरपूर प्रयोग करते हैं व किल्ले कम मरते हैं। वर्षा काल में यूरिया का प्रयोग करने से उसका अधिकांश भाग नष्ट हो जाती हैं और अपेक्षित लाभ नही मिलता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।