सहफसली खेती के लाभ      Publish Date : 04/09/2024

                                सहफसली खेती के लाभ

                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

सहफसली खेती विधि से खेती कर पाएं बम्पर पैदावार

                                                            

वर्तमान समय में किसान ऐसी फसलों की खेती करने को प्राथमिकता देते हैं, जिसमें कम लागत में अधिक मुनाफा होता है और सब्जी की खेती इस श्रेणी में सबसे उपयुक्त होती है। सब्जी की खेती नगदी फसलों में आती है, जिससे किसान नियमित रूप से मुनाफा कमा सकते हैं और इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।

आमतौर पर एक फसल में हुए नुकसान की भरपाई के लिए अक्सर किसान सहफसली खेती करते हैं, जिसमें एक से अधिक फसलें साथ एक ही खेत में लगाई जाती हैं और इससे जोखिम कम हो जाता है। अतः सहफसली खेती किसानों के लिए कई तरीकों से फायदे का सौदा भी हो सकती है।

सब्जी की खेती करने के दौरान कुछ चीजों का ध्यान भी रखना पड़ता है। विशेष रूप से बारिश के मौसम में अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। यदि किसी कारणवश एक फसल खराब भी हो जाए तो उससे हुए नुकसान की भरपाई दूसरी फसल से हो सकती है।

                                                                      

बाराबंकी के किसान जवाहर यादव ने सहफसली खेती को अपनाकर करेला, लौकी, और भिंडी जैसी फसलों से प्रति एकड़ ढाई से 3 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया। उन्होंने बताया कि सहफसली खेती में ज्यादातर बैंगन, मिर्च, करेला, लौकी, भिंडी आदि फसल लगाते हैं।

इसकी खेती करने पर एक बीघे में 8 से 10 हजार रूपए तक का खर्च आता है। वहीं मुनाफे की बात करें तो एक फसल पर ढाई से तीन लाख रुपये तक का मुनाफा किसान आसानी से कमा सकते हैं।

किसान जवाहर यादव ने बताया कि, सब्जियों की खेती मचान विधि से करने पर फसलों में रोग का खतरा कम होता है, खासकर बारिश के मौसम में। इसके साथ ही पैदावार भी अच्छी मिलती है।

                                                                         

खेत की जुताई करने के बाद, पौधों की बुवाई कर बांस, तार और रस्सी से स्टेचर तैयार किया जाता है, जिस पर पौधे चढ़ाए जाते हैं, ऐसा करने से पैदावार में वृद्धि होती है। पौधों की बुवाई के डेढ़ से दो महीने बाद फलन शुरू हो जाता है और तुड़ाई के बाद सब्जियां बाजार में बेची जाती हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।