इस गांव की मिट्टी में है संस्कृत की महक      Publish Date : 16/03/2024

                           इस गांव की मिट्टी में है संस्कृत की महक

                                                                                                                                                        डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

‘‘कर्नाटक के शिवामोगा जिले में एक गांव है। वहां के लोग आज भी संस्कृत भाषा में बातचीत करते हैं। इसका गांव का इतिहास दिलचस्प है।’’

हमारे देश में अनेक ऐसे स्थान हैं, जहां के लोग आज भी हमारी सदियों पुरानी संस्कृति, सभ्यता और भाषा को संभाले हुए हैं। कर्नाटक राज्य के शिवामोगा जिले का मत्तूरु गांव इसका ताजा उदाहरण है।

यह एक छोटा-सा गांव है, जहां के स्थानीय निवासी केवल संस्कृत भाषा में ही एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। मत्तूरु गांव में मुख्य रूप से संकेती एवं ब्राह्मण समुदाय के लोग रहते हैं। कहते हैं कि यह लोग लगभग छह सौ साल पहले केरल से आकर इस गांव में बस थे।

                                                                           

आज से पचास साल पहले तक मत्तूरु के ग्रामीणों द्वारा भी कन्नड़ और तमिल भाषा ही बोली जाती थी। संस्कृत को केवल उच्च जाति के ब्राह्मणों की भाषा ही माना जाता था। तब स्थानीय धार्मिक केंद्र के पुजारी ने निवासियों को संस्कृत को अपनी मूल भाषा के रूप में अपनाने की सलाह दी थी। पूरे गांव ने इस बात पर ध्यान दिया और इस प्राचीन भाषा में बातचीत करना शुरू कर दिया।

तब से केवल संकेती समुदाय के सदस्य ही नहीं, बल्कि गांव में रहने वाले सभी समुदायों के सदस्यों (चाहे सामाजिक या आर्थिक स्थिति के बावजूद) ने संस्कृत में संवाद स्थापित करना शुरू कर दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि मत्तूरु इतना खास गांव क्यों है? हमें समझना होगा कि देश की आबादी के एक प्रतिशत से भी कम लोग संस्कृत भाषा में संवाद करते हैं।

इस गांव के ग्रामीण न केवल अपने दैनिक जीवन में इस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, बल्कि वे अन्य लोगों को भी संस्कृत सिखाने में दिलचस्पी रखते हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए भी हमेशा तैयार ही रहते हैं। अतः ऐसे में आशा तो यह की जानी चाहिए कि आने वाले वर्षों में उनका यह प्रशंसनीय प्रयास लंबे समय तक इस प्राचीन भाषा को जीवित बनाए रखेगा, अस्तु।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।