बे-मिशाल गुणों की खान है मखाना      Publish Date : 14/10/2023

                                                                          बे-मिशाल गुणों की खान है मखाना

                                                                       

मखाने को इसके बेहतरीन स्वाद और गुणों के लिए जाना जाता है। विश्व का 90 प्रतिशत मखाना मखाना भारत में ही होता है और अकेले बिहार में इसका उत्पादन 85 प्रतिशत से अधिक होता है। इसके अलावा देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जाती है। भारत के असम और मेघालय के अलावा ओडिशा में भी इसे छोटे पैमाने पर उगाया जाता है। मखाना एक पौष्टिकता से भरपूर फल होता है, और इसका उपयोग मिठाई, नमकीन और खीर आदि के बनाने में भी किया जाता है। मखाना में मैग्निशियम, पोटेशियम, फाइबर, आयरन, जिंक,  और विटामिन आदि भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।

मखाना की विशेषताएं

  • इसमें आवश्यक अमीनो अम्लों के साथ-साथ हिस्टीडीन एवं अजीनिन की अच्छी मात्रा पायी जाती है।
  • मखाना विटामिन बी, सी तथा कुछ प्रमुख अल्कलॉइड जैसे क्वेरसेटिन, केम्फेरोल एवं एपिजेनिन की मात्रा मे भी युक्त होता है।
  • मखाना जिंक एवं सेलेनियम आदि तत्वों के अवशोषण में सहायता करता है।
  • मखाना में थिओरेडोक्सिन नामक प्रोटीन उपलब्ध पाया जाता है।

हमारे देश में जिस तरह की जलवायु है, इसके अनुसार मखाने की खेती करना यहां आसान माना जाता है। तालाब और पोखर वाले इलाके में इसकी खेती खूब की जाती है।

                                                       

मखाना एक उष्ण जलवायु का पौधा है, अतः गर्म मौसम और पानी, मखाने की फसल को उगाने के लिए बहुत जरूरी हैं। मखाने की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। तालाबों और निचली जमीनों में रुके हुए पानी में इसकी अच्छी उपज प्राप्त होती है। ऐसे क्षेत्र, जहां धान की खेती की जाती है, वहां मखाने का उत्पादन भी अच्छा होता है।

    मखाना तालाब अथवा पोखर की मिट्टी में उगाया जाता है। इसकी खेती करने के लिए पहले चयनित तालाब या पोखर की पूरी तरह से सफाई की जाती है और फिर मखाने के बीज का छिड़काव किया जाता है। जिस तालाब या पोखर में एक बार मखाना उगाया जा चुका होता है, उसमें दोबारा से मखाने के बीज को डालने की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि पिछली फसल से ही मखाने के नए पौधे उग आते हैं।

मखाने की खेती शीत ऋतु में की जाती है और मखाने की खेती करने की अब तक कई विधियाँ उन्नत हो चुकी हैं जिनमे तालाब विधि, रोपाई विधि तथा रोपाई विधि आदि, परन्तु इन विधियों में से सबसे आसान, उपयुक्त और किफायती विधि, तालाब विधि को ही माना जाता है।

                                                        

    एक जलीय पौधा होने के कारण मखाने की खेती के लिए निरंतर जल की व्यवस्था करना बहुत आवश्यक होता है, और तालाब का पानी कभी भी सुखना नही चाहिए। इसके साथ ही मखाने की फसल में समय-समय पर उर्वरकों का छिड़काव करना भी आवश्यक होता है। मखाने की खेती के दौरान रोग एवं कीट आदि का प्रकोप न के बराबर ही हाता है। परन्तु इसकी खेती में खरपतवारों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

    मखाने की खेती के दौरान आरम्भिक अवस्था में कुछ अवाँछित पौधे उग आते हैं और इनके नियन्त्रण के लिए सिघाड़े की खेती और मछली पालन आदि करके इन पौधों से पार पाया जा सकता है और इससे किसानों को दोहरा लाभ भी प्राप्त होता है।

    मखाने की उत्तम उपज प्राप्ति के लिए इसके उन्नत बीज का उपयोग करना बहुत आवश्यक है, अतः इसके लिए प्रमाणित बीज का उपयोग करना ही उचित रहता है। देश में अभी तक मखाने के देशी बीज के माध्यम से ही इसकी खेती की जाती रही है। सबौर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित की गई किस्म सबौर-1 के साथ ही अब इसकी विभिन्न अन्य किस्में भी उपलब्ध हैं। जिनके विषय में इसकी खेती करने के इच्छुक किसान अपने जिला कृषि विज्ञान केन्द्र से जानकारी एवं सलाह आदि प्राप्त कर सकते हैं।

    मखाने की खेती करने में लागत बहुत ही कम आती है और यदि किसान भाई इसके बीज की प्रोसेसिंग स्वयं ही करते हैं तो इससे लागत तो थोड़ी अधिक अवश्य ही आयेगी, परन्तु इससे किसानों को लाभ भी अच्छा प्राप्त होगा।