खेती की कम होती जमीन का एक शानदार विकल्पः हाइड्रोपोनिक्स      Publish Date : 23/04/2025

खेती की कम होती जमीन का एक शानदार विकल्पः हाइड्रोपोनिक्स

                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

खेती करने की आधुनिक ‘‘हाइड्रोपोनिक्स’’ एक ऐसी तकनीक है, जिसमें फसलों को बिना खेत में लगाए केवल पानी और पोषक तत्वों के माध्यम से बिना जमीन के उगाया जाता है। वर्तमान समय में हाइड्रोपोनिक्स खेती दुनिया के कृषि उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। बढ़ती वैश्विक आबादी, खेती योग्य जमीन की निरंतर होती कमी, जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी और पानी की बिगड़ती गुणवत्ता सभी कारक मिलकर किसानों को बागवानी के वैकल्पिक तरीकों की ओर रुख करने के लिए बाधित कर रहे हैं। हाइड्रोपोनिक्स लोगों को लंबी अवधि से संग्रहित भोजन के स्थप पर ताजा भोजन प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। यह सिस्टम पौधों के बेहतर विकास को सुनिश्चित करता है, साथ ही मिट्टी आधारित बागवानी की तुलना में इसमें 95 प्रतिशत कम पानी का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा उच्च गुणवत्ता और उपज के पौधे बड़ी संख्या में उगाये जा सकते हैं। अतः इस तकनीक के द्वारा कोई भी फसल किसी भी मौसम में नियंत्रित वातावरण में उगाकर उसका अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

                                            

हाइड्रोपोनिक्स, लैटिन शब्द ‘‘हाइड्रो’’ जिसका अर्थ है पानी, और ‘‘पोनोस’’ जिसका अर्थ है श्रम से मिलकर बना है। मिट्टी के बिना पौधों को एक चयनित माध्यम में जहां प्रकाश, तापमान और पोषक तत्व बारीकी से विनियमित किए गए हों, में उगाने के विज्ञान को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। इसे ‘‘मिट्टी रहित खेती’’ के रूप में भी जाना जाता है। हाइड्रोपोनिक्स एक ऐसी तकनीक है, जिसमें फसलों को बिना खेत में लगाए केवल पानी और पोषक तत्वों से उगाया जाता है। मिट्टी में पौधों की वृद्धि के लिए जो प्राकृतिक तत्व आवश्यक होते हैं, उन्हीं पोषक तत्वों का उपयोग हाइड्रोपोनिक्स में भी किया जाता है। इसमें यह लाभ है कि पौधों का विकास खरपतवार या मृदा जनित कीट और रोगों के द्वारा बाधित नहीं होता है।

आधुनिक परिवेश में हाइड्रोपोनिक्स खेती की उपयोगिता

आज हाइड्रोपोनिक्स खेती दुनिया के कृषि उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। बढ़ती आबादी, खेती योग्य जमीन की कमी, जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी और पानी की बिगड़ती गुणवत्ता आदि सभी कारक मिलकर किसानों को बागवानी के वैकल्पिक तरीकोंकी ओर रुख करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। हाइड्रोपोनिक्स लोगों को लंबी अवधि से संग्रहित भोजन की के स्थान पर ताजा भोजन प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। नौसेना पनडुब्बियों में चालक दल को ताजा फल और सब्जियों की आपूर्ति हाइड्रोपोनिक्स से होने वाले लाभ का एक प्रमुख उदाहरण है। विकासशील देशों में हाइड्रोपोनिक्स के उपयोग के व्यापक लाभ हैं, जहां यह सीमित विकास क्षमता के क्षेत्रों में गहन खाद्य उत्पादन प्रदान करता है। एक व्यवहार्य हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली को केवल पानी और पोषक तत्वों की उपलब्धता ही सीमित कर सकती है। ऐसे क्षेत्रों में जहां शुद्ध ताजा पानी उपलब्ध नहीं है, वहां समुद्री जल को नमक रहित करके उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

                                                

वर्ष 1970 के दशक से जब से डा. अलान कूपर ने न्यूट्रियेन्ट फिल्म तकनीक (एन.एफ.टी.) विकसित की तथा बेहतर पोषक तत्व प्रतिपादित हुए, उसके बाद से इसको हाइड्रोपोनिक्स बागवानी व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि घरेलू उत्पादकों में हाल ही में यह अधिक लोकप्रिय बना है। बहुत से समुदायों में पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लिए बढ़ती हुई मांग भी हाइड्रोपोनिक्स के विकास में एक प्रमुख कारक है। उत्पादक जानते हैं कि हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली से उगाये गये पौधों द्वारा वास्तव में कौन-कौन से पोषक तत्व ग्रहण किए गए हैं और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कोई हानिकारक कीट तथा खरपतवारनाशक, जो लोगों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है. का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

इस तकनीक के काम करने की प्रणाली

हाइड्रोपोनिक्स, पौधों को उगाने की एक अत्यंत कारगर विधि है। मिट्टी में पोषक तत्वों और पानी को बेतरतीब ढंग से रखा जाता है और अक्सर पौधों की जड़ों को पानी और पोषक तत्वों को प्राप्त के लिए बहुत ज्यादा ऊर्जा व्यय करने की जरूरत होती है। इतनी ऊर्जा खर्च करने के कारण पौधों की वृद्धि उतनी तेजी से नहीं हो पाती है, जितनी कि होनी चाहिए। हाइड्रोपोनिक्स खेती में पोषक तत्वों और पानी को सीधे पौधों की जड़ों को उपलब्ध कराते हैं जिसके कारण पौधे तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही साथ उनकी कटाई भी जल्दी की जा सकती है, क्योंकि पौधों को अपनी ऊर्जा का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से जमीन के ऊपर बढ़ने में करना होता है न कि जमीन के नीचे ओर बढ़ने में।

इसके अलावा किसानों को हाइड्रोपोनिक्स के द्वारा प्रति वर्ग मीटर पौधों के विकास को बढ़ाने में भी मदद मिलती है। पौधों को मिट्टी की तरह एक दूसरे के साथ एवं खरपतवार से भोजन और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि भोजन और पानी उन्हें सीधे जड़ों में उपलब्ध कराया जाता है।

यहां यह भी ध्यान देने योग्य बहुत महत्वपूर्ण बात है कि हाइड्रोपोनिक्स में उगने वाले पौधों की कार्यिकी, मिट्टी में उगने वाले पौधों की कार्यिकी के समान ही होती है। हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली में उगने वाले पौधों को उन्हीं पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जो कि मिट्टी में उगाए जाने वाले पौधों के लिए आवश्यक होते हैं परन्तु उनकी मात्रा को हाइड्रोपोनिक्स में अधिक सही तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। खेती करने के इन दोनों तरीकों के बीच बुनियादी फर्क पोषक तत्वों और पानी को पौधों के लिए उपलब्ध कराने में ही निहित है।

                                                   

हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली में पोषक तत्व के लवण पहले से ही परिष्कृत रहते हैं और पौधों को पोषक तत्वों के अपने मूल रूप में टूटने के लिए प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, मिट्टी पर आधारित कृषि में, पौधों को खाद और कम्पोस्ट के माध्यम से पोषक तत्व उपलब्ध कराया जाता है, जिन्हें पौधे तभी उपयोग कर सकते हैं जब वे अपने मूल रूप (पोषक लवण) में टूट जाएं।

हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम में अक्सर कृत्रिम प्रकाश का उपयोग किया जाता है। यह प्रकाश प्रणाली प्रारंभिक लागत को अधिक महंगा बना देती है, लेकिन आमतौर पर यह बड़ी परेशानी नहीं है, क्योंकि यदि सूर्य के प्रकाश की पर्याप्त मात्रा आसानी से उपलब्ध है, तो कृत्रिम प्रकाश अनावश्यक हो जाता है।

तकनीक कार्यकुशलता के लिए प्रशिक्षण तथा इससे अर्जित लाभ

                                                  

हाइड्रोपोनिक्स खेती की ओर रुख करने के लिए किसानों को हाइड्रोपोनिक्स खेती के बारे में बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त करना जैसे- सिंचाई और उसके साथ खाद डालना, ग्रीनहाउस पर्यावरण और वृद्धि कारकों पर नियंत्रण और अन्य कारकों के अलावा पी-एच मान एवं विद्युत चालकता को संतुलित बनाये रखने की आवश्यकता होती है। हर राज्य में सरकार के द्वारा नियोजित बागवानी बोर्ड (एनएचबी एनएचएम) तथा हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र हैं जो प्रगतिशील किसानों के लिए परिचयात्मक प्रशिक्षण समय समय पर संचालित करते रहते हैं। इसका लाभ किसान बुनियादी प्रशिक्षण के लिए उठा सकते हैं। एक व्यवहार्य वाणिज्यिक हाइड्रोपोनिक्स इकाई के लिए लगभग 1000 वर्ग फुट जमीन और 3 लाख रुपये के आसपास निवेश की जरूरत होती है तथा इससे प्रति वर्ष लगभग 1 लाख रुपये की कमाई की उम्मीद की जा सकती है। इसके माध्यम से कोई भी फसल किसी भी मौसम में नियंत्रित वातावरण में उगाकर अधिकतम मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

भारत में हाइड्रोपोनिक्स खेती का भविष्य

भारत में अभी हाइड्रोपोनिक्स, पौधों को उगाने के अन्य तरीकों की तुलना में कम ही लोकप्रिय है, लेकिन इसके बावजूद यह एक कुशल और किफायती विकल्प है और निश्चित रूप से मिट्टी में पौधों को उगाने से अधिक मुश्किल नहीं है। शीर्ष हरित गृह हाइड्रोपोनिक्स का बहुतायत में प्रयोग करते हैं और ग्राहकों को विभिन्न परिस्थितियों में इसके उपयोग के द्वारा विभिन्न उत्पादों की उपलब्धता को सुनिश्चित करते हैं।

हाइड्रोपोनिक्स कृषि तीन तरीकों से की जा सकती हैः

  • प्रगतिशील कृषक द्वारा व्यवसायिक तौर पर
  • शौकिया तौर पर
  • मेट्रो शहरों में शहरी क्षेत्रों में कृषि के लिए।

हाइड्रोपोनिक्स प्रौद्योगिकी के द्वारा कुशलतापूर्वक रेगिस्तान, बंजर भूमि, पहाड़ी क्षेत्रों, शहरी छतों और बेकार जमीन पर भी फसल उत्पादन किया जा सकता है। अत्यधिक आबादी वाले क्षेत्रों में जहां जमीन की कीमतें आसमान छूने के कारण परंपरागत कृषि असंभव सी हो गयी है, वहां भी स्थानीय स्तर पर हाइड्रोपोनिक्स प्रौद्योगिकी के द्वारा उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे ताजा हरा सलाद, जड़ी-बूटियों और कटे तथा गुलदस्ता वाले फूलों को उगाया जा सकता है। यह तकनीक विभिन्न प्रकार के पौधों को उगाने के लिए आदर्श स्थिति उपलब्ध कराती है, विशेष रूप से फलदार पौधे जैसे टमाटर, खीरे, बैंगन, ब्रोकोली, भिन्डी, काली और सफेद मिर्च, पत्तेदार सब्जियां तथा मौसमी फूल इत्यादि। पर अधिकतम मुनाफे के लिए फसलों का चुनाव समय और बाजार को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

हालांकि भारत के प्रगतिशील कृषक समुदाय के लोग लगातार इस तकनीक और इस पद्धति के बारे में जानकारी जुटाने और अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं, परंतु हमारे पारंपरिक किसान अभी भी इस क्रांतिकारी तकनीक से अनजान है। अतः हाइड्रोपोनिक्स  कृषि के लाभ को देखते हुए किसानों के बीच व्यापक जागरूकता पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है। यह तकनीक विधुत ऊर्जा तथा पानी के उपयोग की दृष्टि से बहुत कार्यकुशल है, परंतु इसमें प्रारंभिक निवेश अधिक है। अतः नाबार्ड तथा भारत सरकार के कृषि मंत्रालय से इसकी स्थापना और सफलता हेतु अनुदान उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है।

हाइड्रोपोनिक्स के लाभ

हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम पौधों के बेहतर विकास को सुनिश्चित करता है, साथ ही मिट्टी आधारित बागवानी की तुलना में इसमें 95 प्रतिशत कम पानी का उपयोग होता है। इसके द्वारा उच्च गुणवत्ता और उपज के पौधे बड़ी संख्या में उगाये जा सकते हैं।

इस पद्वति के कुछ अन्य लाभ इस प्रकार हैंः

  • कम या अधिक रोपण, उपलब्ध स्थान की अधिक से अधिक उपयोग की अनुमति देता है।
  • उत्पाद बेहतर दिखता है और लंबे समय तक टिकता है।
  • गर्म परिस्थितियों में पानी के लिए तनाव कम होता है।
  • जानवरों के द्वारा नुकसान पहुंचने एवं प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, अत्यधिक गर्मी या ठंड से होने वाली समस्याओं से पूरी तरह से मुक्त होता है।
  • गैर कृषि योग्य भूमि वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होता है। पौधे बहुत कम समय में परिपक्वता तक पहुंच जाते हैं। मृदा कीट और रोगों में काफी कमी आती है।
  • हाइड्रोपोनिक्स उद्यान को कम रखरखाव तथा कम मजदूरों की आवश्यकता होती है। 2 से 3 मजदूर 4 से 5 एकड़ जमीन की हाइड्रोपोनिक्स खेती की देखभाल अच्छी तरह से कर सकते हैं क्योंकि इसमें पूरा तंत्र स्वचालित रहता है जो पी-एच मान, विद्युत चालकता, तापमान, पोषक तत्व की सांद्रता तथा आर्द्रता को संतुलित रखता है।

संक्षिप्त इतिहास

हाइड्रोपोनिक्स में नवीनतम तकनीकियों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि सदियों से इस पद्धति का उपयोग किया जाता रहा है। प्राचीन काल में सबसे पहले हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग बेबीलोन के हैंगिंग गार्डन में, कश्मीर के फ्लोटिंग गार्डन में और मेक्सिको के एज्टेक लोगों द्वारा उथली झीलों पर पौधों को उगाने के लिए किया जाता था। इसके अलावा मिस्र के रिकॉर्ड के अनुसार कई सौ साल पहले भी पानी में पौधों को उगाने का वर्णन है। सर्वप्रथम घेरिक ने संयुक्त राज्य अमेरिका में सन 1930 में पहली व्यावसायिक हाइड्रोपोनिक्स इकाई की स्थापना की थी। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मोबाइल हाइड्रोपोनिक्स खेती का उपयोग दक्षिणी प्रशांत महासागर में सैनिकों को आहार उपलब्ध कराने के लिए किया गया था।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।