
समस्या आपकी, समाधान विशेषज्ञ के Publish Date : 14/04/2025
समस्या आपकी, समाधान विशेषज्ञ के
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
सवाल-1: सर नमस्ते, सर मैं व्यवसायिक शिक्षा, हॉर्टिकल्चर का छात्र हूँ, सर मैं यह जानना चाहत हूँ कि क्या कोई ऐसा उद्योग है, जिसका पर्यावरण पर दुष्प्रभाव न हो और उसे गाँव में सफलतापूर्वक स्थापित कर उसका संचालन भी गाँव से ही अच्छे तरीके से किया जा सके?
- अरूण कुमार, ग्राम बिसोखर, मोदीनगर, गाजियाबाद।
जवाब- अरूण जी, जैसा कि आपने बताया कि आपने हॉर्टिकल्चर से सम्बन्धित शिक्षा ग्रहण की है, आपकी सोच, ऐसा उद्योग, जिससे पर्यावरण प्रदूषित न हो को जानबर हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है के आप पयवरण को लेकर कितने सचेत हैं। अरूण जी आपकी सोच के अनुसार ही बहुत से उद्योग ऐसे है, जिन्हें गाँवों में स्थापित कर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है। उद्योग चाहे कोई भी हो, लेकिन यदि उसके लए कच्चा माल उसके आसपास ही उपलब्ध होता है तो ऐसे उद्योग का संचालन और परिचालन करने में सफलता आसानी के साथ मिल जाती है।
इसके लिए आप अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए नींबू, अमरूद, आम और संतरें आदि से तैयार उपोत्पाद जैसे अचार, जैम, जैली और शरबत आदि को तैयार कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित बना रहेगा। इसके अतिरिक्त आप गाँव में ही गेंहूँ, मूँग की सिमई और पापाड़ आदि भी बनाकर इनका विपणन कर सकते हैं। इस काम के लिए सरकार के द्वारा ऋृण भी सहजता के साथ उपलब्ध हो जाता है। ऋृण प्राप्त करने के लिए आप किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक से सम्पर्क कर सकते हैं।
सवाल- 2: सर, मैं बी. टी. कॉटन के सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त करना चाहता हूँ, क्योंकि हमारे यहाँ बुकिंग करने वाले आ रहें हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप हमें इसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्रदान करने की कृपा करें?
- अमित चौधरी, ग्राम छबड़िया, मेरठ।
जवाब- बी. टी. शब्द बेसिलस थूरिन्जिएसिश का संक्षिप्त रूप है जो एक जीवाणु अथवा बैक्टीरिया होता है, यह जीवाणु की सूण्ड़ियाँ, कपास में रोग का फैलाने वाले रोगाणुओं के खिलाफ काम करता है। इसकी मारक क्षमता वर्ष 1901 में जापानी वैज्ञानिकों के द्वारा देखी गई थी। पहली बार इसे वर्ष 1975 में, सण्डोज कम्पनीं के द्वारा थूरिसाईड के नाम से बाजार में उतारा गया था। अनुसंधानों के माध्यम से ट्राँसजेनिक तकनीक के द्वारा बी. टी. कपास अस्तित्व में आया। पिछले वर्ष इसके कुछ पैकट्स प्रदेश में बांटे भी गए थे।
अब आपके पास जो यह बंकिंग वाले आ रहें है, उसकी विश्वसनीयता की जांच तो परीक्षण के बाद हो पाएगी। इसके सम्बन्ध में हम आपको सलाह देते हैं कि परीक्षण के उपरांत ही आप यह बीज खरीदें, क्या कपास के बीज की कालाबाजारी भी बहुत अधिक होती है।
सवाल-3: हमारा संतरे का बाग है, जिसकी आयु सात वर्ष है और इसकी एक फसल भी हम ले चुके हैं। पानी की कमी के चलते अब हम अपने बाग में टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली स्थापित करना चाहते हैं। कृपया आप हमें बताएं कि इस सिंचाई प्रणाली की स्थापना में कितना खर्च आएगा और इसके लिए क्या कोई ऋृण भी मिल सकता है?
- उदित कुमार राजपूत, हसानपुर कलां मेरठ।
जवाबः उदित जी, आपकी सोच बहुत प्रभावशाली है जल के परिप्रेक्ष्य में परिस्थितियाँ वैसे भ काफी गम्भीर होती जा रही है, क्योंकि अभी तक हम सभी ने जिा प्रकार से जल का दुरूपयोग किया है, उसका परिणाम तो हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतना ही होगा। ड्रिप सिंचाई प्रणाली को लगाने के लि आपको उप-संचालक कृषि के कार्यालय में सम्पर्क करना होगा और इसका प्रपोजल बनाकर किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक से आपको ऋृण भी उपलब्ध हो जाएगा। किसी भी प्रकार के ऋृण को प्राप्त करने के लिए अपने प्रोजल के अनुसार कुछ मार्जिन मनी भी जमा करनी होती है।
सवाल- 4: मास्टर जी, हम रतनजोत की खेती करना चाहते हैं, इसके पौधे हमें कहाँ से प्राप्त हो सकते हैं कृपया इसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्रदान करें?
- रविन्द्र कुमार, ग्राम पेपला, मेरठ।
जवाबः रतनजोत के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, इसकी खेती परती भूमि पर भी आसानी से की जा सकती है। लेकिन हम आपको बताना चाहेंगे कि अधिक बड़े क्षेत्र में एक औषधीय पौधे की खेती करना किसी भी दृष्टि से उचित नही होता है। पहले परीक्षण के आधार पर एक छोटे क्षेत्र में लगाकर इसका निरीक्षण करना चाहिए इसके बाद आप औषाधीय पौधों की खेती के क्षेत्र में वृद्वि कर सकते हैं।
किसी भी प्रकार के औषधीय पौधों की खेती करने में सबसे अधिक खर्च उसके बीज पर होता है। इसलिए औषधीय पौधों की खेती हमेशा एक छोटे क्षेत्र से ही आरम्भ करनी चाहिए, शेष क्षेत्र से अन्य पारंपरिक फसलें ली जा सकती हैं।
रतनजोत के अच्छे और गुणवत्तायुक्त बीज प्राप्त करने के लिए आप निम्न स्थानों पर सम्पर्क कर सकते हैं-
- तोमर सीड्स, 101, किसान मार्केट, नगलाताशी, सरधना रोड़ कंकर खेड़ा मेरठ।
- उत्तर प्रदेश एग्रो फॉरेस्ट्री कॉपोरेशन, लखनऊ।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।