60 प्रतिशत पानी की बचत के लिए किसान अपनाएं आधी खूड़ सिंचाई विधि      Publish Date : 12/03/2025

60 प्रतिशत पानी की बचत के लिए किसान अपनाएं आधी खूड़ सिंचाई विधि

                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

धान की फसल की तरह ही गन्ने की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता होती है। अनुमान लगाया जाता है कि गन्ने की 100 टन प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त करने के लिए 1,000 मिलीलीटर पानी की आवश्यकता होती है, और यह 1,200 मिलीलीटर तक भी हो सकता है। वर्तमान में गन्ने की बुवाई के लिए केवल 15 मार्च तक का समय ही शेष है। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि गन्ने की पैदावार को बढ़ाने के लिए उन्नत सिंचाई प्रणालियाँ अपनाकर पानी की बचत भी की जा सकती है और गन्ने की बेहतर उपज भी ली जा सकती है। अप्रैल, मई और जून के महीनों में क्यारी में बोई जाने वाली फसल और खूड़ों के माध्यम से की जाने वाली सिंचाई करने से पानी की बचत होती है।

इसी प्रकार से ट्रैंच विधि से बुवाई किए गए गन्ने की सिंचाई में साधारण विधि से बोए गए गन्ने की तुलना में पानी कम लगता है, जबकि चिकनी और दोमट मिट्टी की अपेक्षा रेतीली मिट्टी में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। गन्ने की पहली सिंचाई बुवाई करने के 5 से 6 सप्ताह के बाद और अगली सभी सिंचाईयाँ 10 दिन के अन्तराल पर मानसून के आने से पहले तक और मानसून के आने के बाद 25 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

आमतौर पर गन्ने की फसल में 08 सेंटीमीटर की 12 सिंचाईयाँ की जाती है। गेहूँ की कटाई के बाद गन्ने की बुवाई के लिए आधा खूड़ सिंचाई प्रणाली सबसे उत्तम रहती है, क्योंकि खेत की तैयारी सूखे में किए जाने के कारण 7 से 10 दिन पहले तक गन्ने की बुवाई की जा सकती है। अधिक गर्मी में भी पोरियों के आसपास नमी बनी रहती है। इसके साथ ही गन्ने के अंकुरण के समय नमी होने के चलते गन्ने में दीमक के प्रकोप की आशंका भी कम हाती है। हरियाणा के किसान खुले पानी से करते हैं जिसके कारण आवश्यकता से अधिक पानी व्यर्थ हो जाता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।