
इस बार गर्मियों में हीट वेव के लंबा चलने के कारण गर्मी तोड़ेगी पिछले सभी रिकॉर्ड Publish Date : 09/03/2025
इस बार गर्मियों में हीट वेव के लंबा चलने के कारण गर्मी तोड़ेगी पिछले सभी रिकॉर्ड
प्रोफेसर आर एस सेंगर
इस बार हीट वेव के लंबे समय तक चलने के कारण अप्रैल से मई तक, गर्मी पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। यह अनुमान भारत मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा लगाया जा रहा है। इस एजेंसी का मानना है कि इस वर्ष फरवरी 2025 पिछले 125 वर्षों में सबसे अधिक गर्म रही है। इस बात को ध्यान में रखते हुए और बढ़ते हुए प्रदूषणों के कारण वैज्ञानिकों का अनुमान है कि गर्मी में इस बार सभी रिकॉर्ड टूट जाएंगे। उमस और अलनीनो का सामना लोगों को करना पड़ सकता है। पिछले कुछ वर्षों का औसत तापमान देखा जाए तो इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। इसमें ग्लोबल वार्मिंग की भूमिका को इनकार नहीं किया जा सकता। ग्लोबल वार्मिंग के ही कारण भारत नहीं पूरे विश्व में सर्दियों में होने वाली वर्षा का भी पैटर्न प्रभावित हुआ है। ऐसे में गर्मियों के दिन तो बढ़ गए हैं और सर्दियों के दिन कम हो गए हैं।
ग्लोबल वार्मिंग दुनिया भर में मौसम और जल विज्ञान दोनों को चरम सीमाओं को प्रभावित कर रहा है, जिसके चलते लगातार मौसमी घटनाएं हो रही है। सभी महाद्वीपों में सामान्य से अधिक तापमान रिकॉर्ड किया जा रहा है, जो अपेक्षाकृत एक समान ग्लोबल वार्मिंग पैटर्न का संकेत देता है। हमें इस बात का ध्यान देना होगा कि इसको कैसे रोका जा सकता है। इसके लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से कटौती करनी होगी। यदि हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के रिकॉर्ड पर ध्यान नहीं देंगे तो मौसम के रिकॉर्ड लगातार टूटे रहेंगे। मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों को देखा जाए तो इसके अनुसार फरवरी 2025 में सामान्य की तुलना में आधे से भी कम वर्षा हुई है। भारत में साल की शुरुआत में ही हीट वेव का दौर शुरू हो गया है। खासतौर पर पश्चिमी तट तटीय महाराष्ट्र और गोवा के कुछ हिस्सों में गम्भीर हालात बन गए थे।
तटीय शहर मुंबई में 25 और 26 फरवरी को हीट वेव की चेतावनी जारी की गई थी तो 26 फरवरी को मुंबई में अधिकतम तापमान 38.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जो सामान्य औसत से 5.8 डिग्री अधिक था। इन क्षेत्रों में तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला गया है। इस बीच कर्नाटक और गुजरात के तटीय भागों में भी गर्म और उमस भरा मौसम रहा था। यहां तापमान दहलीज को छूने से बस कुछ ही दूर रहा और 35 डिग्री सेल्सियस से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच दर्ज किया गया था।
यदि हम क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स के आंकड़ों पर नजर डालें तो देखा गया कि गोवा में 25 से 27 फरवरी के तापमान में काम से कम 5 गुना अधिक वृद्धि हुई है। इसी तरह इसी अवधि में मुंबई के तापमान में काम से कम तीन गुना अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। शी एक ऐसी प्रणाली है जो दुनिया भर में स्थानीय दैनिक तापमान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मापती है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते गर्मी, सर्दी और बरसात सभी मौसम के पैटर्न में भारत में दीर्घकालिक बदलाव आ रहे हैं। जलवायु से जुड़ी आपदाएं लगातार बढ़ती जा रही है और वह धीरे-धीरे विकराल रूप भी देने लगी है।
जर्मन वॉच द्वारा जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 के अनुसार 1993 से 2022 के बीच भारत ने 400 से अधिक चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया, जिसके चलते 80,000 लोगों को मौत हुई और 180 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। यह दुनिया भर में ऐसी घटनाओं से होने वाली मौतों का 10 प्रतिशत और कुल आर्थिक क्षति का 4.3 प्रतिशतवां हिस्सा है।
हीट वेव के कारण भारत में अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में अधिक लोगों की मौत हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 और 2020 के बीच हीट वेव के कारण मृत्यु दर में 62.2 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2024 की गर्मियों के दौरान 536 गर्म दिवस देखे गए। यह वर्ष 2010 के बाद से सबसे अधिक है और अब देखना है कि इस साल ऐसे कितनी चरम गर्मी और उमस से भरे दिनों का सामना देश के लोगों को करना पड़ेगा।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 में गर्मी का कहर राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलगाना और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों साथ ही देश के अधिकांश हिस्सों पर टूटना शुरू होता दिखाई दे रहा है। हीट वेव की स्थिति आमतौर पर मार्च और जून के बीच पैदा होती है और कुछ दुर्लभ मामलों में यह जुलाई तक भी जारी रह सकती है। भारत में तटीय क्षेत्र के लिए हीट वेव तब घोषित की जाती है जब अधिकतम तापमान सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा हो।
वैसे वास्तविक अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो मौसम। वैज्ञानिकों के अनुसार मौजूदा गर्म मौसम बारिश की अत्यधिक कमी वाले सर्दियों के मौसम का परिणाम है, जो ग्लोबल वार्मिंग की देन बताया जा रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।