
स्वास्थ्य और जलवायु के अनुकूल हैं श्रीअन्न Publish Date : 13/02/2025
स्वास्थ्य और जलवायु के अनुकूल हैं श्रीअन्न
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
‘‘श्रीअन्न का नाम आते ही लोगों के मन में सबसें पहले बाजरे का ही नाम आता है, इसका कारण भी हैं क्योंकि सभी श्रीअन्न में बाजरा ही सबसे अधिक लोकप्रिय श्रीअन्न है। यदि देखा जाए तो वास्तव में मोटे दाने वाले अनाज की तुलना में छोटे दाने वाले अनाज यथा कंगनी, हरी एवं छोटी कंगनी, कुटकी, कोंदो, सांवां और चीना आदि में अधिक पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। यह भी अपने आप में सत्य है कि श्रीअन्न फसलें जलवायु के अनुकूल होती हैं। यह फसले किसी प्रकार की मृदा जैसे- रेतीली, शुष्क और अनुपजाऊ आदि और इसके साथ ही शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु में भी पनपने की क्षमता से युक्त होती हैं।’’
श्रीअन्न के महत्व को देखते हुए ही वष 2023 को ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष-2023’’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई थी। श्रीअन्न वर्ष घोषित करने का उद्देश्य इन अनाजों के स्वास्थ्य लाभों और बदलती जलवायु की परिस्थितियों में खेती के लिए इनकी उपयोगिता के सम्बन्ध में जागरूकता पैदा करना था। श्रीअन्न के उत्पादन में भारत विश्व में पहले पायदान पर आता है। जबकि श्रीअन्न के कुल उत्पादन का लगभग 36 प्रतिशत भाग अकेले राजस्थान से ही आता है।
पोषक तत्वों से भरपूर श्रीअन्न
श्रीअन्न न्यूट्रल ग्रेन्स (तटस्थ अनाज) और पॉजिटिव ग्रेन्स (सकारात्मक अनाज) के संयुक्त रूप को ही श्रीअन्न कहते हैं।
बाजरे की खेती राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में की जाती है। बाजरे को सूखाग्रस्त क्षेत्रों में उच्च तापमान की दशा में भी आसानी से उगाया जा सकता है। बाजरा प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, फाइबर, थायमिन और नियासिन का एक समृद्व स्रोत होता है।
बाजरे में कॉपर, मैग्नीशियम, सेलेनियम, जिंक, फोलिक एसिड और अमीनो अम्ल भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। बाजरे का सेवन करने से शरीर स्वस्थ होता है और हड्डियां भी सशक्त होती हैं। इसका सेवन करने से रक्ताल्पता की समस्या नही होती है। इससे कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी कम होता है, कैंसर की आशंका कम होती है और कब्ज की समस्या में भी राहत मिलती है। इसके अलावा अस्थमा में राहत देकर यह मधुमेह के स्तर को भी कम करता है।
ज्वार
ज्वार की विभिन्न प्रजातियों की खेती केवल पशुओं के चारे के लिए की जाती है। ज्वार को वजन को कम करने और मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए एक उत्तम अनाज के रूप में जाना जाता है। ज्वार पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ ही इसकी तासीर के ठंड़ा होने और फाइबर की प्रचुर मात्रा होने के चलते इसके बहुत से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। यह एक ग्लूटेनमुक्त अनाज है जो कि आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
रागी
रागी को महुआ और नाचनी के नामों से भी जाना जाता है। यह राई के दाने की तरह गोल, गहरा भूरा रंग और चिकना दिखाई देा है। रागी कैल्शियम का एक अच्छा स्रोत है। रागी के 100 ग्राम वजन में 344 मि.ग्रा. कैल्शियम उपलब्ध होता है। रागी को 6 से 8 घंटे तक भिगोने के बाद शिशु के लिए उत्तम आहार तैयार किया जाता है। विभिन्न खनिजों एवं फाइबर से भरपूर रागी, मधुमेह के लिए भी अत्यंत लाभकारी अनाज है जो कि हमारे लिवर और पेट को भी स्वस्थ बनाए रखता है।
गुणकारी कुटकी
लिटिल मिलेट (कुटकी) की खेती करने के लिए न अधिक गर्मी और न ही अधिक सर्दी की आवश्यकता होती है। कुटकी प्रोटीन, फाइबर और आयरन का एक समृद्व स्रोत होता है। इसके अतिरिक्त कुटकी में प्रोटीन, अमीनो अम्ल, एंटीऑक्सीडेंड्स और मिनिरल आदि पोषक तत्व भी होते हैं। उच्च फाइबर से भरपूर कुटकी मानव के पाचन तंत्र को बेहतर बनाने, वसा के स्तर को कम करने और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायता करता है।
इसके अलावा इसका सेवन करना मधुमेह के स्तर को नियंत्रित करने तथा हृदय के स्वास्थ्य को बेहतर करता है। कुटकी सेवन करने से माइग्रेन, एसीडिटी, अजीर्ण, खट्टी डकार के जैसी समस्याओं से छुटकार मिलता है। कुटकी सेवन करने से हॉर्मोनल असंतुलन की समस्या भी कम होती है।
सांवां
बार्नयार्ड को हिन्दी में सांवां कहते हैं जो कि एक कम समय में तैयार होने वाली फसल है। सांवां की फसल 45 से 60 दिनों में काटने के योग्य हो जाती है। सांवां में प्रोटीन और आयरन की मात्रा अन्य श्रीअन्न की अपेक्षा अधिक होती है। इसका सेवन करने से रक्त की कमी दूर होती है और शरीर भी मजबूत बनता है। इसके अलावा रागी अनाज मधुमेह, हृदय और कैंसर जैसे रोगों के लिए भी लाभकारी सिद्व होता है।
इसका सेवन करने से शरीर के अंदरूनी अंगों को भी ताकत मिलती है। इसके साथ ही यह गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए भी सुरक्षित अनाज माना जाता है। सांवां को भिगोर अम्बलि, खिचड़ी, डोसा, इड़ली और उपमा आदि भी बनाए जा सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।