
भारत के बायोटेक किसान Publish Date : 25/01/2025
भारत के बायोटेक किसान
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
वर्ष 2017 में आरम्भ की गई कृषि इनोवेशन साईंस एप्लीकेशन नेटवर्क (बायोटेक-किसान), एक वैज्ञानिक-किसान साझेदारी की एक योजना है, जिसका उद्देश्य खेती के स्तर पर आरम्भ की गई नवीन संसाधनों और प्रौद्योगिकियों का पता लगाने के लिए विज्ञान की प्रयोगशालाओं के साथ किसानों को जोड़ना है। उक्त योजना जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार और कार्यान्वयन हेतु कार्यान्वयन एजेंसी उत्तरदायी होती है। परियोजना के अन्तर्गत किसानों, विशेष रूप से महिला किसानों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से उद्यमशीलता तथा नवाचार को प्रोत्साहित किया जाता है, जिसका मूल है- स्वयंसिद्वा भारत के भविष्य के लिए भारत के किसान भारतीय और वैश्विक सर्वश्रेष्ठ विज्ञान के साथ साझीदार हैं। अब इस योजना के तहत, देश के समस्त 15 जलवायु क्षेत्रों और 110 आकांक्षी जिलों को कवर करते हुए अभी तक 146 बायोटेक किसान हब स्थापित किए जा चुके हैं, जिसके माध्यम से अभी तक दो लाख से अधिक किसानों को उनके कृषि उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ आय में वृद्वि होने का लाभ भी प्राप्त हुआ है। इसके प्रमुख उद्देश्य अग्रलिखित हैं-
- सबसे पहले स्थानीय किसानों की समस्या को समझकर उपलब्ध विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को खेत से जोड़ना व उनकी समस्या का समाधान करना है।
- वैज्ञानिक और किसानों के घनिष्ठ संयोजन तथा समन्वयन का एक साथ कार्य करना तथा छोटे एवं सीमांत किसानों की कार्य-शैलियों में व्यापक सुधार करना।
- वैज्ञानिक हस्तक्षेपों के माध्यम से बेहतर कृषि उत्पादकता के लिए महिला किसान और भारतीय सन्दर्भ में सर्वश्रेष्ठ कृषि प्रथाओं का विकास करना आदि।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) भी वर्ष 2016-17 से राष्ट्रीय कृषि नवाचार कोष (एनआईएफ) परियोजना के माध्यम से अपने दो घटकों नवाचार विधि (इनोवेशन फंड) एवं इनक्यूवेशन निधि और राष्ट्रीय समन्वयक इकाई (नेशनल कोआर्डिनेटिंग यूनिट) के माध्यम से एग्रीटेक स्टार्टअप सहित कृषि आधारित स्टार्टअप की सहायता कर रहा है, जहाँ से तकनीकी और वित्तीय सहायता आदि को प्राप्त किया जा सकता है। यह स्टार्टअप कृषि व्यवस्था से सम्बन्धित समस्याओं को हल कर किसानों को लाभान्वित कर रहे हैं जिससे कृषि क्षेत्र की दक्षता का विकास होता है। इस योजना के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं-
- कृषि उद्यमिता अभिविन्यास (ओरिएन्टेशन) के अन्तर्गत वित्तीय, तकनीकी तथा आईपी आदि में पथ प्रदर्शन करना अथवा सहायता के द्वारा दो महीने की अवधि के लिए रूपये 10,000 का वजीफा प्रदान करना है।
- कृषि व्यवसाय इन्क्यूवेशन के लिए रूपये 25 लाख तक का आरम्भिक अनुदान, जिसमें 85 प्रतिशत अनुदान एवं 15 प्रतिशत अंशदान इन्क्यूबेटर से प्राप्त करना शामिल है।
- कृषि उद्यमी के मुख्य विचार/पूर्ववर्ती चरण (प्री-सीड स्टेज) के लिए पाँच लाख रूपये तक का अनुदान, जिसमें 90 प्रतिशत अनुदान और 10 प्रतिशत योगदान इन्क्यूबेट से प्राप्त करना शामिल है।
- वित्तपोषित स्टार्टअप्स में मेंटरशिप के अतिरिक्त अंशदान के लिए आवेदकों को विभिन्न चरणों की चयन प्रक्रिया के माध्यम से दो महीने का तकनीकी, वित, बौद्विक सम्पदा, साविधिक अनुपालन आदि मुद्दों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
उद्यमिता के विकास के लिए किसान भाई बिना किसी लागत के खेतों में छायादार स्थानों पर नर्सरी, बायोमॉस को एकत्र कर जैविक खाद, भविष्य में सामान्य जैव-ईंधनों का विकास, खेतों से निकलने वाली पराली का उपयोग, स्टार्टअप के सहायोग से अथवा उद्योगों के साथ समन्वय कर नए-नए उत्पादों का निर्माण, वितरण एवं आय के नए स्रोत विकसित करने में सहायता कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं। वैकल्पिक स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए मदद कर ‘अन्नदाता से ऊर्जादाता’ तथा नई सामग्रियों, प्रौद्योगिकियों तथा उर्वरकों की जानकारी के साथ खेती में व्यवसयिक रूप से कल्पना कर विकास तथा नए उत्पाद के सृजन में भागीदार की भूमिका निभा सकते हैं।
एक सफल कृषि उद्यमीं में अपनी मेहनत, संस्थागत और राज्य की सहायता से अपने विचारों को व्यवसाय में बदलने, नवीन अवसरों को समझने, पारम्परिक उपायों से अलग नए क्षेत्र में उद्यम स्थापित करने, इस बदलते परिवेश में व्यवसायिक रणनीतियों को समझने, लोगों के साथ व्यवसायिक साझेदारी, सरकारी तन्त्र के साथ आर्थिक सहायता और सहयोग की क्षमता का होना आवश्यक हैं। उद्यमी अच्छे बीज, जैविक खाद, आधुनिक जानकारी के माध्यम से नए उत्पाद, नए बाजार, नए संयोजन, नए तरीके, नए संगठन, आपूर्ति के नए स्रोत, भण्ड़ारण एवं वितरण तथा सही मूल्यों का आंकलन आदि के साथ अपने उद्यम, सपने एवं महत्वकाँक्षा को सफलता प्रदान करते हैं तथा कठिन परिस्थितियों में भी बाजार के उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने के लिए आपूर्ति एवं माँग के बीच के असंतुलन को समाप्त करते हैं। अतः भविष्य मे कृषि को उद्यमिता से जोड़ना और समझने की दिशा में पहल एक मील का पत्थर साबित होगी।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।