फसलों को नीलगाय के प्रकोप से बचाने के टिप्स      Publish Date : 08/01/2025

             फसलों को नीलगाय के प्रकोप से बचाने के टिप्स

                                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

जावा सिट्रोनेला एवं पाल्मा रोजा का प्रयोगः

इन पौधो का प्रयोग फसल के चारों तरफ बाड़ के रूप में किया जाता हैं। नीलगाय इसकी सुगंध से दूर भागती हैं, क्योंकि उनको इसकी गंध अच्छी नहीं लगती है। गलती से अगर ये इनके पत्तों को खाने का प्रयास करे तो उसके मुँह में धारदार पत्तियों के कारण घाव बन जाते हैं, और वो दोबारा से इस फसल की ओर मुड़कर भी नहीं देखती हैं।

सड़े अण्डे के घोल का प्रयोगः

अनुभव में आया है कि वो अण्डे जो सड़ जाते हैं और जो खाने के योग्य नहीं रह जाते हैं, उन अण्डों का प्रयोग हम नीलगाय से फसलों को बचाने के लिए कर सकते हैं। इन अण्डों का प्रयोग एक घोल बनाकर खडी फसलों पर छिड़काव करें। एक छिड़काव से दूसरे छिड़काव के बीच 10-15 दिन का अन्तर अवश्य ही रखें। सड़े अण्डे के बदबू के कारण नीलगाय फसलों के पास भी आना पसंद नहीं करती हैं, और इस प्रकार से फसलें नीलगाय के प्रकोप से बच जाती है।

रसायन का उपयोग

नीलमणि नामक रसायन का उपयोग द्रव के रूप में किया जा सकता है। इसकी पैकिंग 50 मिली लीटर 100 मिली लीटर 200 मिली लीटर एवं 500 मिली लीटर की तौल में बाजार में उपलब्ध होती है। रफूचक्कर नामक रसायन का प्रयोग यह धूल के रूप में  किया जाता है, एक पैकेट 25 किग्रा की मात्रा होती है। इसका प्रयोग खड़ी फसल में करते है। इस रसायन का असर फसलों में 10 से 15 दिनों तक बना रहता हैं।

नीलगाय का खेती के कार्यों में उपयोग

                                                              

इतिहास गवाह है कि प्रशिक्षिण के माध्यम से विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों को मानव ने अपने बस में करके उनसे मनचाहा काम लिया है। इस कड़ी में नीलगाय अपवाद नहीं हो सकता हैं। हम नीलगायों को प्रशिक्षिण देकर उनकी ऊर्जा कृषि एवं अन्य उपयोग में ला सकते हैं। इनका प्रयोग हम खेतों की जुताई में एवं माल ढुलाई आदि में भी कर सकते हैं। यदि हम ऐसा करने में सफल रहे तो नीलगाय का हम सदुपयोग कर सकेगें। इसके लिए इस चौपाये की धैर्य पूर्वक प्रशिक्षण की नितांत आवश्यकता है।

इस चौपाये के प्रशिक्षण के मामले में मलेशिया में सफल प्रयोग हो चुका है। मलेशिया में इस जानवर का प्रयोग खेती के विभिन्न कार्यों में सफलता पूर्वक लिया जा रहा है और अब यह जानवर समस्या का कारण नहीं अपितु एक काम का प्राणी बनकर उभरा है।

नीलगाय की उपयोगिता

नीलगाय मे तमाम बुराइयां ही नही होती हैं, अपितु इनमें कुछ अच्छाइयां भी होती हैं। इसकी प्रमुख अच्छाई इसके द्वारा प्रदत उच्च गुणवतायुक्त मांस है, जिसके कारण चोरी चुपके इसका आखेट होता चला आ रहा है। भारतवर्ष के कुछ प्रान्तों के कुछ क्षे़त्रो में ये प्राणी विलुप्त प्रायः हो गया है। बांग्लादेश में तो अब ये जानवर मात्र चिड़ियाघरों में ही शोभा बढ़ा रहे हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।