बदलती जलवायु के परिवेश में मोटे अनाज की भूमिका Publish Date : 04/01/2025
बदलती जलवायु के परिवेश में मोटे अनाज की भूमिका
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
आमतौर पर गेंहूँ और चावल को छोड़कर अन्य प्रकार के अनजों को ही मोटे अनाजों के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। मोटे अनाजों की फसले अधिकतर वर्षा आधारित होती हैं, केवल मक्का और जौ, जिन्हे रबी के मौसम में उगाया जाता है और बाकी सभी को खरीफ के मौसम में उगाया जाता है।
गत शताब्दि के दौरान भारत में जलवायु परिवर्तनशीलता के समय एवं उसके क्षेत्र में लगातार वृद्वि हो रही है। इसके अन्तर्गत भाीरत के समस्त क्षेत्रों में होने वाली कुल मानसूनी वर्षा की मात्रा में गिरावट दर्ज की जा रही है, जबकि अत्याधिक वर्षा होने की घटनाओं में भी वृद्वि दर्ज की जा रही है और यहाँ वर्षा के वितरण में भारी असमानता व्याप्त हो गई है। यह सत्य है कि जनसंख्या की वृद्वि और भोजन की माँग सदैव से ही एक समानान्तर सम्बन्ध रहा है। भले ही मोटे अनाज बहुमूल्य सूक्ष्म एवं स्थूल पोषक तत्वों से परिपूर्ण होते हैं, लेकिन हमारे दैनिक आहार में इनके प्रयोग काफी कम है और भारत में मोटे अनाजों की प्रति व्यक्ति खपत में निरन्तर गिरावट दर्ज की जा रही है।
जबकि हमारे दैनिक आहार को उचित स्थान प्रदान करने से न केवल कुपोषण की समस्या को हल किया जा सकता है, अपितु खाद्य विविधिकरण से मुख्य अनाजों की उत्पादकता को बढ़ाने के दवाब में भी उल्लेखनीय कमी की जा सकती है।
निरन्तर बढ़ते तापमान, मानसून का बदलता चक्र और बढ़ती जलवायु की घटनाए भी हमारी खाद्य-सुरक्षा के एक खतरा बन चुकी हैं। भारत में उगायी जाने वाली सभी सभी अनाज की फसले इन परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील हैं। इस प्रकार हमारी वर्तमान फसल प्रणाली के अन्तर्गत मोटे अनाजों की फसल को सम्मिलत कर इस जलवायु परिवर्तन की जटिल परिस्थितियों में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य-आपूर्ति को पूरा करने में अपेक्षित सहायता प्राप्त हो सकती है।
विशलेषण के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि चावल की तुलना में अन्य वैकल्पिक अनाज जैसे बाजरा, मक्का, रागी और ज्वार आदि जलवायु परिवर्तनों के परिणामों के प्रति काफी कम संवेदनशील होते हैं, जो जलवायु की चरम सीमाओं के उपरांत भी पैदावार में काफी कम गिरवाट पदर्शित करते हैं।
जलवायु अनुकूलन और विभिन्न मोटे अनाज
सामान्य रूप से वैकल्पिक अनाजों की उपज गेंहूँ एवं चावल की अपेक्षा कम होती है। भारत के अधिकाँश हिस्सों में मोटे अनाजों की खेती वर्षा आधारित होती है, जो चावला की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, इसका एक सफल उदाहरण है, मध्य भारत में बाजरा तथा ज्वार एवं देश के कई भागों में की जाने वाली मक्का की खेती। इसका अर्थ यह है कि जलवायु अनुकूलन और अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए वैकल्पिक अनाजों के फसल क्षेत्र में वृद्वि करना वर्तमान समय की माँग है।
अतः आज के समय में चावल और गेंहूँ के अतिरिक्त अन्य वैकल्पिक अनाज भारतीय कृषि पर पड़ने वाले वैश्विक गर्माहट के प्रभाव एवं आपूर्ति की भिन्नता आदि का समाना बेहतर ढंग से किया जा सकता है और इसके साथ ही यह हमारी कुपोषण की समस्या को हल करने में भी हमार अपक्षित सहायता करने में सक्षम हैं।
विभिन्न मोटे अनाजों की विशोषताएं
रागीः- कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और रेशा आदि विभिन्न खनिजों का एक उत्कृष्ट स्रोत रागी का औषधीय उपयोग भी किया जाता है। रागी में आयरन 3.9 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम होती है, जो बाजरे को छोड़कर अन्य सभी अनाजों से अधिक होती है। रागी में कैल्शियम 344 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम उपलब्ध है, जो कि अन्य सभी अनाजों की अपेक्षा सर्वाधिक होती है। जबकि रागी, मधुमेह से पीड़ितों के लिए भी काफी लाभदायक सिद्व होती है।
बाजराः-
चित्रः बाजरा की खेती
बाजरे में 11 से 12 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 67 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट्स, 2.7 प्रतिशत खनिज लवण, 8 प्रतिशत आयरन तथा 1.32 माइक्रोग्र्राम कैरोटीन उपलब्ध होता है, जो मानव की आँखों की सुरक्षा के लिए एक आवश्यक तत्व होता है। इनके अलावा बाजरे में उपलब्ध कुछ अन्य तत्व जैसे- फाइटिक एसिड, पॉलीफिनॉल एवं एमाईलेज पानी में भिगौने के बाद, अंकुरण और पकाने आदि की प्रक्रियाएँ इनके होने वाले असर को कम कर देती हैं। भारत के कुछ भागों में बाजरे का उपयोग भोजन एवं चारे के लिए भी किया जाता है।
बाजरे में विद्यमान विटामिन ‘बी’ आहार खनिज, पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, ताम्बा और मग्नीज उच्च स्तर पर उपलब्ध होते हैं। पोषण क्षमता के अनुरूप बाजरे को चावल एवं गेंहूँ की अपेक्षा बेहतर पाया गया है। विभिन्न शोध के परिणाम बताते हैं कि आहार के रूप में बाजरे का सेवन करना गेंहूँ की अपेक्षा काफी अच्छा रहता है।
ज्वारः-
चित्रः बहु-कटाईवाली ज्वार की खेती
सम्पूर्ण विश्व में उगाये जाने वाला 5वें नम्बर का सबसे महत्पूर्ण अनाजों की श्रेणी में आता है। ज्वार का सेवन करने से कब्ज आदि विकार दूर होर वजन भी नियन्त्रित रहता है और मनुष्य की पाचन क्रिया भी दुरसत रहती है। ज्वार में उपलब्ध कैल्शियम हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है जबकि कॉपर और आयरन हमारे शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या को बढ़ाकर रक्ताल्पता के विरूद्व कारगर तरीके से काम करते हैं। ज्वार का सेवन गर्भवती महिलाओं तथा प्रसव के बाद करना महिलाओं के लिए काफी लाभप्रद रहता है।
मक्काः-
चित्रः मक्का की खेती
फोलिक एसिड एवं विटामिन ‘ए’ से भरूपर मक्का दिल के मरीजों के लिए एक बेहतर विकल्प है। मका में विभिन्न प्रकार के एंटी-ऑक्सीडेन्ट्स पाये जाते हैं, जो कैंसर के जैसी घातक बीमारी के विरूद्व लडकर हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। पके हुए मक्के में ऐंटी-ऑक्सीडेन्ट्स की मात्रा 50 प्रतिशत अधिक होती है, जो खराब किोलेस्ट्रॉल को नियन्त्रित करता है।
गर्भवती महिलाओं को विशेष रूप से अपने आहार में मक्का को नियमित रूप से शामिल करना चाहिए। मक्का गर्भवती महिलाओं में रक्त की कमी की पूर्ती कर उनके गर्भ में पल रहे शिशु को भी सेहतमंद रख्ता हैं। जबकि वजन कम करने की चाह रखने वाले लोगों को इसके सेवन से परहेज रखना चाहिए, क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है तो यह वजन बढाने का कार्य करता है।
सारणीः मोटे अनाजों का पोषक मूल्य (प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग में)
अनाज |
प्रोटीन (ग्राम) |
वसा (ग्राम) |
कार्बोहाइड्रेट (ग्राम) |
ऊर्जा (किलो. कैलोरी) |
कैल्शियम (ग्राम) |
आयरन (मि.ग्रा) |
बाजरा |
11.8 |
4.8 |
67.0 |
361.0 |
42.0 |
11.0 |
ज्वार |
10.4 |
3.1 |
70.7 |
349.0 |
25.0 |
5.4 |
मक्का |
9.2 |
4.6 |
73.0 |
342.0 |
26.0 |
2.7 |
रागी |
7.7 |
1.5 |
72.6 |
328.0 |
350.0 |
3.9 |
कोदो |
9.8 |
3.6 |
66.6 |
353.0 |
35.0 |
1.7 |
जौ |
12.5 |
2. |
73.5 |
354.0 |
33.0 |
3.0 |
कोदोः-
चित्रः सेहत के साथ कमाई का साधन कोदो
कोदो को प्रचीन अन्न कहकर भी पुकारा जाता है, जिसमें कुछ मात्रा प्रोटीन तथा वसा की उपललब्ध रहती है। इस अनाज का ग्लाईसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण मधुमेह के रोगियों को इसका सेवन चावल के स्थान पर करने की सलाह दी जाती है। भारत में कोदों की खेती मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में बहुलता से की जाती है।
जौः-
चित्रः जौ का खेत
बिहार के असिंचित क्षेत्रों में जौ की खेती मुख्य रूप से की जाती है। जै में अन्य सभी अनाजों की अपेक्षा सबसे अधिक अल्कोहल पाया जाता है, इसलिए इसका सेवन करना उच्च रक्तचॉप (हाई ब्लड प्रेशर) के पीड़ितों केलिए काफी लाभदायक होता है। जौ बढ़े हुए कोलेस्ट्रॅल के स्तर को कम करने में भी सहायता करता है। जौ में रेशा, एंटी-ऑक्सीडेन्ट्स तथा मैग्नीशियम भी भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।