जैविक खाद तैयार करने की विधियाँ      Publish Date : 03/01/2025

                         जैविक खाद तैयार करने की विधियाँ

                                                                                                                                     प्रोफेसर आर. एस. सेगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

नाडेप विधि

                                                            

इस विधि को ग्राम पूसर जिला यवतमाल महाराष्ट्र के नारायम देवराव पण्डरी पाण्डे के द्वारा विकसित किया गया है। इसलिये इसे नाडेप कहते हैं। इस विधि के माध्यम से कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी खाद तैयार की जा सकती है। टेंक भरने के लिये गोबर, कचरा (बायोमास) और बारीक छनी हुई मिटटी की आवश्यकता पड़ती हैं।

जीवांश को 90 से 120 दिन पकाने में वायु संचार प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा उत्पादित की गई खाद में प्रमुख रूप से 0.5 से 1.5% नत्रजन, 0.5 से 0.9% स्फुर एवं 1.2 से 1.4% पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते हैं। निम्नानुसार विभिन्न प्रकार के नाडेप टेंकों से नाडेप कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है ।

पक्का नाडेप

                                                   

पक्का नाडेप टेंक ईटों के द्वारा बनाया जाता है। नाडेप टेंक का आकार 10 फीट लंबा, 6 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा या 12’5’3 फीट का बनाया जाता है। ईटों को जोडते समय तीसरे, छठवे एवं नवें रद्दे में मधुमक्खी के छत्ते के समान 6‘‘-7‘‘ के ब्लाक/छेद छोड़ दिये जाते है जिससे टेंक के अन्दर रखे पदार्थ को बाहृय वायु मिलती रहे। इससे एक वर्ष में एक ही टेंक से तीन बार खाद तैयार किया जा सकता है।

कच्चा नाडेप (भू नाडेप)

भू-नाडेप/कच्चा नाडेप परम्परागत तरीके के विपरीत बिना गड्डा खोदे जमीन पर एक निश्चित आकार (12फीट’5फीट’3फीट अथवा 10फीट’6फीट’3फीट) का ले-आउट देकर व्यवस्थित ढ़ेर बनाया जाता है। इसकी भराई भी नाडेप टेंक अनुसार ही की जाती है। इस प्रकार लगभग 5 से 6 फीट तक सामग्री जम जाने के बाद एक आयताकार व व्यवस्थित ढेर को चारों ओर से गीली मिट्टी व गोबर से लीप कर बंद कर दिया जाता है। बंद करने के दूसरे अथवा तीसरे दिन जब गीली मिट्टी कुछ कड़ी हो जाये तब गोलाकार अथवा आयताकार टीन के डिब्बे से ढेर की लंबाई व चौड़ाई में 9-9 इंच के अंतर पर 7-8 इंच के गहरे छिद्र बनाये जाते हैं।

छिद्रो से वायु का अवागमन होता है और आवश्यकता पड़ने पर इनसे पानी भी डाला जा सकता है, ताकि बायोमास में पर्याप्त नमी रहे और विघटन क्रिया अच्छी तरह से सम्पन्न हो सके। इस तरह से भरा बायोमास 3 से 4 माह के भीतर भली-भांति पक जाता है तथा अच्छे तरीके से पकी हुई, भुरभुरी र्दुगंध रहित भुरे रंग की उत्तम गुणवत्ता की जैविक खाद तैयार हो जाती है।

टटिया नाडेप

                                                

टटिया नाडेप भी भू-नाडेप की तरह ही होते हैं, किन्तु इसमें आयताकार व व्यवस्थित ढेर को चारों और से लेप देने की जगह इसे बांस की लकड़ी एवं तुअर के डंठल आदि से टटिया बनाकर चारों ओर से बंद कर दिया जाता हैं। इसमें हवा का आवगमन स्वाभाविक रूप से छेद होने के कारण अपने आप ही होता रहता हैं।

नाडेप फास्फो कम्पोस्ट

यह नाडेप के समान ही कम्पोस्ट खाद तैयार करने की विधि है। अंतर केवल इतना है कि इसमें अन्य सामग्री के साथ राक फास्फेट का उपयोग किया जाता है, जिसके फलस्वरूप कम्पोस्ट में फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है। प्रत्येक परत के उपर 12 से 15 किलो रॉक फास्फेट की परत बिछाई जाती है शेष परत दर परत पक्के नाडेप टेंक अनुसार ही टेंक की भराई की जाती हैं और इसके बाद गोबर और मिट्टी से लीप कर इसे सील कर दिया जाता है। एक टेंक में करीब 150 किलो रॉक फसस्फेट की आवश्यकता होती है।

पिट कम्पोस्ट

इस विधि को सर्वप्रथम 1931 में अलबर्ट हावर्ड और यशवंत बाड ने इन्दौर में विकसित किया था। अतः इस विधि को इंदौर विधि के नाम से भी जाना जाता है। इस पद्वति में कम से कम 9x5x3 फीट व अधिक से अधिक 20’5’3 फीट आकार के गङ्ढे बनाए जाते हैं। इन गङ्ढो को 3 से 6 भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक हिस्से का आकार 3’5’3 फीट से कम नहीं होना चाहिये। प्रत्येक हिस्से को अलग अलग भरा जाना चाहिए एवं अंतिम हिस्सा खाद पलटने के लिए खाली छोड़ा दिया जाना चाहिए।

नाडेप टांका कम्पोस्ट खाद तैयार करने की विधि

  • वानस्पतिक बैकार पदार्थ जैसे सूखे पत्तो, छिलके, डंठल, टहनिया और जड़े आदि 1400 से 1600 किलो, इसमें प्लास्टिक कांच एवं पत्थर नहीं रहने चाहिए।
  • गोबर 100 से 120 किलो (8 से 10 टोकरी) गोबर गैस से निकली स्लरी भी ली जा सकती है।
  • सूखी छनी हुई खेत या नाले की मिट्टी 600 से 800 किलो (120 टोकरी) गो-मूत्र से सनी मिट्टी विशेष लाभदायी रहती है।

साधारणतया 1500 से 2000 लीटर पानी, मौसम के अनुसार पानी की मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है।

नाडेप बनाने की विधि

                                                           

टेंक भरने की विधि:- खाद सामग्री पूरी तरह एकत्रित करने के बाद नीचे बताए क्रम अनुसार ही टेंक भरें। अचार डालने की तर्ज पर ही नाडेप पद्वति खाद सामग्री एक ही दिन में या ज्यादा से ज्यादा 48 घंटे में पूरी तरह से टेंक में भरकर टेंक को सील कर दें।

प्रथम भराई:- टेंका भरने से पहले टेंक के अंदर की दीवार एवं फर्श गोबर व पानी के घोल से अच्छा गीला कर दें।

पहली परत:- वानस्पतिक पदार्थ कचरा, डंठल, टहनियां और पत्तिायाँ आदि पूरे टेंक में छः इंच की ऊचाई तक भर दें। इस 30 घनफीट में 100 से 110 किलो वानस्पतिक सामग्री आती है। इस परत में 3 से 4 प्रतिशत नीम या पलाश की हरी पत्तिायाँ मिलाना भी लाभप्रद होता है, इससे दीमक का नियंत्रण होता है।

दूसरी परत:- गोबर का घोल 125 से 150 लीटर पानी में 4 किलो गोबर मिलाकर पहली परत के उपर इस तरह छिड़कें कि पूरी वानस्पतिक सामग्री अच्छी तरह भीग जाए। गर्मी में पानी की मात्रा अधिक रखें। यदि बायोगैस की स्लरी उपयोग करें तो 10 लीटर स्लरी को 125 से 150 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।

तीसरी परत:- भीगी हुई दूसरी पतर के उपर, साफ छनी हुई मिट्टी 50 से 60 किलो के लगभग समान रूप से बिछा दें। परतों के इसी क्रम में टेंक को उसके मुँह से 1.5 फीट उपर तक झोपड़ीनुमा आकार से भरें। सामान्यतः 11-12 परतों में टेंका भर जाता है। टेंक भरने के बाद टेंक को सील करने के लिए 3 इंच मिट्टी (400 से 500 किलो) की परत जमा कर गोबर से लीप दें। इस पर दरारें पड़े तो उन्हे पुनः गोबर से लीप दें।

द्वितीय भराई:- 15-20 दिन बाद टेंक में भरी सामग्री सिकुड़ कर 8-9 इंच नीचे चली जाती है, तब पहली भराई की तरह ही वानस्पतिक पदार्थ, गोबर का घोल एवं छनी मिट्टी की परतों से टेंक को उनके मुँह से 1.5 फीट उपर तक भरकर पहले भराव के समान ही सील कर लीप दें।

                                                   

अपेक्षित सावधानियां:- नाडेप कम्पोस्ट को पकने के लिये 90 से 120 दिन लगते है। इस दौरान नमी बनी रहने के लिए एवं दरारे बंद करने के लिए गोबर पानी का घोल छिड़कते रहें और इसमें दरारें न पड़ने दें। घास आदि उगे तो उसे उखाड़ दे एवं इसमें नमी का उचित स्तर बनाए रखें। कड़ी धूप हो तो घास-फूस से छाया कर दें।

खाद की परिपक्वता:- 3-4 महीने में गहरे भूरे रंग की खाद बन जाती है और इसकी दुर्गंध भी समाप्त होकर अच्छी खुशबू आने लगती है। खाद सूखनी नहीं चाहिये। इस खाद को एक फीट में 35 तार वाली चलनी से छान लेना चाहिये और इसके बाद उपयोग में लाना चाहिये। छलनी के उपर से निकला अधपका कच्चा खाद फिर से खाद बनाने के काम में लेना चाहिये। एक टेंक से निकला खाद 6-7 एकड़ भूमि में उपयोग किया जा सकता है।

एक टेंक से 160 से 175 घन फीट छना खाद व 40 से 50 घन फीट कच्चा माल मिलता है। मतलब एक टेंक से 3 टन (लगभग 6 बैलगाड़ी) अच्छा पका खाद मिलता है। नाडेप टेंक विधि से कम से कम गोबर में अधिकाधिक मात्रा में अच्छी गुणवत्ता का खाद तैयार होता है। मात्र एक गाय के साल भर के गोबर से 10 टन खाद मिलने की संभावना होती है। जिसमें नत्रजन 0.5 से 1.5 प्रतिशत स्फूर 0.5 से 0.9 प्रतिशत तथा पोटाश 1.2 से 1.4 प्रतिशत होता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।