औषधीय पौधों का हमारे जीवन में महत्व Publish Date : 01/01/2025
औषधीय पौधों का हमारे जीवन में महत्व
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 सुशील शर्मा
पूर्व समय से ही औषधीय पौधें का आयुर्वेदिक और देशी दवाओं में बहुत उपयोग किया जाता रहा है। ये हानिरहित होते हैं और इन्हें घर पर ही आसानी से उगाया भी जा सकता हैं। रोगों के निदान के लिए प्राचीनकाल से ही मनुष्य अपना रोग से बचाव एवं उपचार के लिये विभिन्न प्रकार के पौधों का उपयोग करता आया है। पौधें की जड़ें, तने, पत्तियाँ, पफूल, पफल, बीज और यहाँ तक कि छाल का उपयोग भी उपचार के लिये किया जाता है। मुख्य रूप से औषधीय पौधें एरगोट, एकोनाइट, मुलेठी, जलाप, हींग, मदार, सिया, लहसुन, अदरक, हल्दी, चंदन, बेलाडोना, तुलसी, नीम, अफीम और क्वीनाइन इत्यादि हैं।
नीमः नीम औषधीय दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण वृक्ष है। यह भारत में आमतौर पर समस्त स्थानों पर पाया जाता है। इस वृक्ष के लगभग सभी भाग जैसे इसकी पत्तियाँ, तना, पुष्प और फल आदि सभी औषधीय रूप में काम में आते हैं। इसकी पत्तियाँ पाचक, वातहर, कपफनाशक एवं कीटाणुनाशक होती हैं। पत्तियों का रस अनेक त्वचा रोगों तथा पीलिया रोग के उपचार में प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग एक कृमिनाशक के रूप में भी होता आया है।
भारत में नीम के तने के टुकड़े को दातुन के रूप में प्राचीनकाल से उपयोग में लिया जाता रहा हैं। नीम एक बहुत पुराना औषधीय पौधा है, जिसका उपयोग युगों से किया जा रहा है। नीम में उत्कृष्ट एंटीसेप्टिक गुण होते हैं और इसका उपयोग बाहरी इस्तेमाल के लिए किया जा सकता है। नीम के पिसे पत्ते आंतरिक रूप से एक अद्भुत डी-वर्मग एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। पौधें का यह औषधीय गुण उनमें उपस्थित कुछ रासायनिक पदार्थों से होता है जिनकी मानव-शरीर पर विशिष्ट क्रिया होती है।
बेलः यह रूटेसी कुल का सदस्य है तथा विश्वभर में पाया जाता है। डायरिया, पेट की गड़बड़ियों तथा कब्ज के उपचार में यह उपयोगी है। बेल के फलों से एक ताजगी दायक पेय भी बनाया जाता है।
आंवलाः आंवले का वानस्पतिक नाम एम्बलिका आपिफसिनेलिस है। इसके फलों में विटामिन ‘सी’ भरपूर मात्रा में होता है। आंवले के फल शीतलता प्रदान करने वाले, विरेचक तथा मूत्रावाही होते हैं। यह हरड़ एवं बहेड़ा के साथ मिलाकर त्रिफला चूर्ण के रूप में पेट के विकार तथा आँखों की रोशनी को ठीक करने में सक्षम होता है।
तुलसी भारत में तुलसी को एक पवित्रा पौध माना जाता है। इसलिए, इसे पवित्रा तुलसी के रूप में भी जाना जाता है। यह अपने उपचारात्मक गुणों के कारण जड़ी-बूटियों के रूप में मूल्यवान है। तुलसी की चार किस्में हैं, जिन्हें राम तुलसी, वन तुलसी, कृष्णा तुलसी और कर्पूर तुलसी कहा जाता है। कर्पूर तुलसी के तेल का उपयोग कान के इंपफेक्शन के लिए किया जाता है। तुलसी में बहुत असरकारक कीटाण ुनाशक, फफूंदनाशक, जीवाणुरोधी और एंटीबायोटिक गुण होते हैं, जो बुखार, आम सर्दी और श्वसन संबंधी बीमारियों को ठीक करने के लिए अच्छे होते हैं। राम तुलसी के पत्ते तीव्र श्वसन सिंड्रोम के लिए एक असरदार उपाय के रूप में काम करते हैं। इसके पत्तों का रस सर्दी, बुखार, ब्रोंकाइटिस और खांसी से राहत प्रदान करता है। मलेरिया को ठीक करने में भी तुलसी बहुत कारगर है। यह अपच, सिरदर्द, हिस्टीरिया, अनिद्रा और हैजा को ठीक करने में बहुत असरदार है।
लेमन ग्रासः लेमन ग्रास एक औषधीय पौधा है, जिसे आसानी से घर पर भी उगाया जा सकता है। इसके असंख्य चिकित्सीय और अन्य स्वास्थ्यप्रद लाभ हैं। यह चाय, सलाद, सूप और नींबू के साथ लगभग सभी व्यंजनों में बहुत अच्छा लगता है।
अश्वगंधाः अश्वगंधा एक बहुत ही प्राचीन औषधि है। यह तनाव में कमी और तंत्रिका सुरक्षा के लिए सबसे अच्छी औषधि मानी जाती है। यह प्राचीन जड़ी-बूटी प्रजनन क्षमता और घाव की देखभाल करने में भी सहायता सहायता करता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।