सरसों की खेती से अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ Publish Date : 31/12/2024
सरसों की खेती से अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा
सरसों (Brassica spp) भारत की एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसलों में से एक है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण फसल है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता रहा है।
सरसों के तेल में 60-65 प्रतिशत तक मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (MUFA)] 15.20% पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) और 12% तक संतृप्त वसा होती है, जो इसे हृदय के लिए अत्यंत लाभकारी बनाती है। इसके अलावा, सरसों के पत्तों में प्रचुर मात्रा में विटामिन ।, ब् और ज्ञ कैल्शियम, मैग्नीशियम और आयरन होता है, जो इसे एक पौष्टिक साग भी बनाता है। सरसों की खेती से केवल पोषण ही नहीं, बल्कि आर्थिक लाभ भी भरपूर मात्रा में मिलता है। इसकी खेती मुख्यतः शीतकालीन रबी मौसम में की जाती है और यह फसल सूखे के प्रति सहनशील मानी जाती है, जो इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त बनाती है।
सरसों की खली का उपयोग पशुओं के लिए प्रोटीन युक्त चारा तैयार करने में होता है, जिससे पशुपालन का काम भी भी लाभान्वित होता है। इस प्रकार सरसों एक बहुआयामी फसल है, जो पोषण, स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण योगदान देती है। सरसों की खेती किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी होती है और उचित तकनीक के माध्यम से इसकी उपज को बढ़ाया जा सकता है। आज के अपने इस लेख में आइए जानते हैं, सरसों की खेती में कौन-कौन सी शस्य क्रियाओं को अपनाकर इसके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
भूमि की तैयारी
यह फसल समतल और अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। जहां भमि क्षारीय है वहां प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से मई-जून माह में प्रयोग करना चाहिए।
सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन-चार जुताईयां तवेदार हल से करनी चाहिएं। गर्मी में गहरी जुताई करने से कीटों की सफाई अच्छे प्रकार से हो जाती है।
बारानी क्षेत्रों में प्रत्येक बरसात के बाद तवेदार हल से जुताई कर नमी को संरक्षित करना चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे भूमि में नमी का स्तर बना रहे और यह भाप बनकर न उड़ने पाए।
खेत की अंतिम जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्विनलफॉस 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं, ताकि भूमिगत कीटों का नियंत्रण किया जा सके।
बुवाई का समय और विधि
बुवाई का समय: सरसों की बुवाई का सबसे उचित समय अक्टूबर से नवंबर तक का माना जाता है। इस समय पर बुवाई करने से फसल ठंडे मौसम में सरसों की फसल अच्छी तरह से बढ़ती है, जिससे उपज भी अधिक ही होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।