फसल अवशेष से करें कमाई      Publish Date : 26/12/2024

                          फसल अवशेष से करें कमाई

                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

वर्तमान, गेंहूँ और धान की फसल कटाई अधिकतर कंबाइंड हार्वेस्टर से की जाती है। कटाई के उपरांत बचे हुए गेंहूँ के डंठलों (नरवाई) से भूसा न बनाकर उसे जला देने और धान के पैरा यानी पुआल को जला देने से धान का पुआल और भूसे की आवश्यकता पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक रूप में एकत्रित भूसा ईंट-भट्टा एवं अन्य उद्योग भी प्रभावित होते हैं।

                                                               

गेंहूँ और धान की पुआल की मांग प्रदेश के कई जिलों के अतिरिक्त देश के अन्य प्रदेशों में भी होती है। इस प्रकार एकत्रित किए गए भूसे को 4 से 5 रूपये प्रति कि.ग्रा. की दर से बेचा जा सकता है। जैसा कि हम जानते हैं कि गेंहूँ का पआल भी बहुपयोगी होता है, भूसे/पुआल की उपलब्ध्ता पर्याप्त मात्रा में नही होने पर पशु अन्य हानिकारक पदार्थ जैसे पॉलीथिन आदि का खाने लगते हैं, जिससे वह बीमार पड़ जाते हैं और अनेक बार तो उनकी मौत तक भी हो जाती है जिसके कारण पशुधन की हानि होती है।

नरवाई का भूसा 2-3 महीनों के बाद दोगुनी कीमतों पर बिकता है औश्र बाद में यही भूसा बढ़ी हुई कीमतों पर ही खरीदना पड़ता है। इसके साथ ही नरवाई एवं भूसे को खेतों में जलाना, खेत की जमीन के लिए तो हानिकारक होता ही है इसके साथ ही ऐसा करना पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक ही होता है। इसके कारण पिछले कुछ वर्षों में आग लगने की गम्भीर घटनाएं होने के कारण बड़े पैमाने पर सम्पत्ति की हानि भी होती है।

गर्मियों के मौसम में निरंतर बढ़ती जा रही जल संकट के चलते कानून व्यवस्था के लिए भी विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं।

                                                       

इसी प्रकार से खेत लगी आग के अनियंत्रित होने पर जनधन, सम्पत्ति, प्राकृतिक वनस्पतियां और जीव-जन्तु आदि के नष्ट हो जाने से बड़े पैमाने पर नुकसान होने के साथ ही साथ खेत की मृदा में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले उपज के लिए लाभायक सूक्ष्म जीवाणुओं के नष्ट हो जाने से खेत की उर्वराशक्ति भी धीरे-धीरे कम हो रही है जिसके कारण हमारा उत्पादन भी लगातार कम होता जा रहा है।

वहीं खेत में पड़े फसलीय अवशेष यथा कचरा, भूसा एवं डंठल आदि के खेत में सड़ने पर यह भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं। इसके साथ ही इनको जलाकर नष्ट करने का मतलब ऊर्जा को नष्ट करना होता है। फसलीय अवशेषों को आग से जलाने पर हानिकारक गैसें निकलती हैं जो हमारे पर्यावरण की सेहत पर भी बुरा प्रभाव छोड़ती हैं।  

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।