मृदा का परीक्षण क्यों आवश्यक है      Publish Date : 22/12/2024

                       मृदा का परीक्षण क्यों आवश्यक है

                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

कीटनाशक और भारी धातु संदूषण के लिए चयनित स्थान की मिट्टी का परीक्षण करना महत्वपूर्ण है क्योंकि इनका अत्यधिक-स्तर अंतिम उत्पाद के जैविक उत्पाद के रूप में प्रमाणीकरण में अवरोध उत्पन्न करता है। उदाहरण के लिए, आर्द्र जलवायु परिस्थितियों में अधिक लोगों के कारण ऑर्गेनिक फलों का उत्पादन बहुत जटिल होता है। जैविक उत्पादकों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण नियंत्रण उपाय सांकुर एवं मूलवृन्त का चयन करना है जो कीट और रोगों के लिए प्रतिरोधी हो, तथा विशेष रूप से प्रस्तावित क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रचलित हो।

उदाहरण के लिए फाइटोफ्योरा प्रतिरोधी अंगूर मूलवृन्त ऊनी एफिड प्रतिरोधी सेब मूलवृन्त, फ्यातोफ्थोरा प्रतिरोधी साइट्रस मूलवृन्त और नीमाटोड प्रतिरोधी पीच मूलवृन्त। रोग नियंत्रण के लिए अच्छी जल निकासी और वायु परिसंचरण आवश्यक है। कुछ खरपतवारों और चारा प्रजातियों की उपस्थिति जैविक उत्पादों को के लिए विशेष चिंता का विषय होता है।

मृदा प्रबंधन

                                                          

रोपण से पूर्व मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाना और खरपतवार की समस्या (विशेषकर बारहमासी खरपतवार) को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। खरपतवार नियंत्रण, बाग की स्थापना से पहले करना आसान होता है, क्योंकि फल उत्पादन में खरपतवार नासी प्रयोग की अनुमति नहीं है। स्थान की तैयारी में मिट्टी के संघनन को कम करना, उर्वरता को बढ़ाना, मिट्टी के पीएच को समायोजित करना और खरपतवारों, कीटों और रोगों का प्रबंधन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक संतुलित पोषण युक्त मिट्टी, उचित पीएच मान, और भरपूर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ आदि फलों के लिए जैविक प्रबंधन योजना के मूल तत्व हैं।

रोपण से पहले पोषक तत्वों की कमी या संरचनात्मक समस्याओं की जांच के लिए मिट्टी परीक्षणों का उपयोग अवश्य करें। मानकों के तहत की गई कार्बनिक संशोधन की अनुमति है, लेकिन इनका उपयोग दर्ज किया जाना चाहिए। परम्परागत रूप से, पीएच को चूने (पीएच को बढ़ाने के लिए) या सल्फर (पीएच को कम करने के लिए) के अनुप्रयोगों के माध्यम से समायोजित किया जा सकता है। अधिकांश फल पौधे पीएच 6.5-7.0 के आसपास सबसे अच्छे प्रकार से पनपते हैं।

मृदा परीक्षण के परिणाम मृदा संशोधन के अनुप्रयोगों जैसे खाद, चूना, जिप्सम या अन्य रॉक पाउडर के बारे में उत्पादकों का मार्गदर्शन करते हैं, ताकि मृदा को अच्छी और पोषणयुक्त स्थिति प्रदान की जा सके।

सामान्य तौर पर फलों की फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए अत्याधिक उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है, हालांकि यह फल प्रजातियों के साथ भिन्न होती हैं। अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी नाइट्रोजन से भरपूर, पेड़ों में फलने के बजाय बहुत अधिक वानस्पतिक विकास को बढ़ावा देती हैं। जैविक फलों के रोपण के लिए रोपण से पूर्व पौधे की मिट्टी में सुधार के लिए आमतौर पर कवर क्रॉपिंग और खाद, प्राकृतिक खनिजों या अन्य जैविक उर्वरकों के अनुप्रयोगों के कुछ संयोजन शामिल होते हैं।

मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाने के लिए रोपण से पहले हरी खाद की फसलों को मिट्टी में जोत कर मिला देना चाहिए। यदि वहाँ पुनःरोपण की समस्या है, तो कुछ वर्षों के लिए स्थान को हरे परत के रूप में छोड़ देना चाहिए। अधिकांश निरोधात्मक पदार्थों को मिट्टी के मजबूत जैविक सक्रियण के द्वारा समाप्त किया जा सकता है। ऐसा करने से मिट्टी की संरचना में सुधार होगा और मिट्टी को नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थो से समृद्व किया जाता है।

खरपतवार जैसे बरमूडा घास जॉनसन घास, कुवैत घास, और कई अन्य खतरनाक प्रजातियां फल उत्पादकों के लिए गंभीर समस्या हो सकती हैं जिन्हें बाग स्थापित होने के बाद जैविक तरीके से नियंत्रित करना मुश्किल होता है, जबकि इन्हें बाग स्थापित होने से पहले नियंत्रित करना आसान रहता है। कवर फसलें खरपतवार नियंत्रण में सहायक होती हैं। जुताई के एक सुनियोजित अनुक्रम के साथ कवर क्रॉपिंग एक खरपतवार नियंत्रण की प्रभावी रणनीति है जो मिट्टी की उर्वरता और स्थिर हृयूमस में भी योगदान प्रदान करती है।

सेंसबनिया को सबसे अधिक बायोमास का उत्पादन करने के कारण से सबसे प्रभावी खरपतवार दमनकारी माना जाता है। फूल आने पर काटे जाने पर यह पुनः अच्छी तरह से उग आता है और खरपतवारों को नहीं पनपने देता है। यह बहुत सूखा सहिष्णु होता है। सनई भी एक बेहतर नाइट्रोजन उत्पादक है, लेकिन सेसबनिया की तुलना में कम प्रभावी खरपतवार नाशक है।

मृदा सौरकरण एक उपयोगी मृदा कीटाणुशोधन विधि है। मिट्टी को एक तापमान और गहराई तक गर्म करने के लिए सौरकरण में 4-8 सप्ताह का समय लगता हैं जो मिट्टी में हानिकारक कवक, जीवाणु, सूत्रकृमि, खरपतवार और कीटों को नष्ट कर देता है। पंक्तियों और रोपण प्रणालियों की दिशा को नियोजित किया जाना चाहिए तथा बाग रोपण में 3-4 वर्ष पूर्व वायुरोधी वृक्षों को स्थापित करना अति आवश्यक है।

लीची के नए बाग लगाने से पहले पुरानी लीची के बाग से प्रत्येक गड्ढे में एक टोकरी मिट्टी को मिश्रित करना चाहिए, जिसमें माइकोराइजल कवक होता है। यह नए लगाए गए पौधों की स्थापना और उनके त्वरित विकास में सहायक होता है।

बाग प्रबंधन

बागों में पंक्ति के बीच स्थान खाली रखने से भू-क्षरण होता है अतः कार्बनिक पदार्थों की क्रमिक कमी और मिट्टी के संघनन में वृद्धि होती है जिससे मृदा में पानी के रिसाव में कमी आती है। बाग तल प्रबंधन कटाव को नियंत्रित कर सकता, है मिट्टी में सुधार कर सकता है और लाभकारी कीटों को आश्रर्य देता है। एक प्रणाली जो पूर्ण ग्राउंड कवर प्रदान करती है, कटाव के विरूद्व सर्वाधिक अच्छी सुरक्षा प्रदान करती है। जड़ी बूटियां, फलियां और घास एक स्थाई मिश्रित सोड प्रदान करती है।

आरम्भ में फलदार वृक्षों या बेलों की पंक्तियों के बीच सब्जियां इत्यादि के साथ अंतर फसल लगाना लाभप्रद होता है। इस बात का ध्यान रहे कि अंतर फसल मुख्य फसल के लिए विभिन्न कीटों को आश्रय न प्रदान करें और यह पोषक तत्व और पानी के लिए मुख्य फसल के साथ प्रतिस्पर्धा भी ना करें।

जैविक फलों के उत्पादन में, मशीनरी का उपयोग करने के लिए विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए ताकि मिट्टी को नुकसान न पहुँचे। मिट्टी में बड़े छिद्र, वातन और जल भंडारण के लिए उत्तरदायी होते हैं और मिट्टी के जीवो के लिए आवास के रूप में भी काम करते हैं। यह मुख्य रूप से बड़े छिद्र होते हैं जो मिट्टी पर दबाव से आकार में कम हो जाते हैं। इस तरह से मिट्टी के संरक्षण के लिए मशीनरी के उपयोग की योजना बनाते समय संघनन को रोकना महत्वपूर्ण है।

मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए फलीदार पौधों की खेती और हरी खादों के उपयोग के साथ-साथ वर्ष में कई बार फसल-चक्र (रोटेशन) करना चाहिए। जैविक खेतों में बायो-डिग्रेडेबल पदार्थ एवं पौधों या जानवरों द्वारा उत्पादित पदार्थ को पर्याप्त मात्रा पोषण तत्व प्रबंधन कार्यक्रम का आधार होती हैं। मृदा-प्रबंधन में पोषक तत्वों के हृास को कम करना अति-आवश्यक है। भारी धातु और अन्य प्रदूषक को के संचय पर रोका जाना भी अत्यंत आवश्यक है।

तालिका-2: जैविक खेती में पोषण और मिट्टी कंडीशनिंग में उपयोग किये जाने वाले उत्पादों के लिए शर्तः

अनुमति प्राप्त एफवाईएम, घोल और गो-मूत्र, हरी खाद, पलवार, कैल्शियम क्लोराइड, जिप्सम, क्ले, जैव उर्वरक, पीट, वर्मीकुलाइट आदि।

सीमित    रक्त मील, अस्थि मील, मुर्गी खाद, एसओपी, रॉक, फॉस्फेट, हड्डी मील और खाद आदि।

निषिद्व   मानव मल, खनिज एवं उर्वरक, सुपरफॉस्फेट, उर्वरक जिसमें क्लोराइड, क्विकलाइम, हाइड्रेटेड चूना, सीवेज कीचड़, और सीवेज कीचड़ खाद आदि।

 

तलिका-3: जैविक खेती में पादप सुरक्षा हेतु उपयोग किये जाने वाले उत्पादों के निर्धारित शर्तः

अनुमति प्राप्त नीम उत्पाद, जिलेटिन, लहसुन और पोंगामिया का अर्क; बायोकण्ट्रोल एजेण्ट; नरम साबंन (पोटेशियम साबुन); होम्योपैथिक एवं आयुर्वेदिक उत्पाद, जाल और फेरोमोन।

सीमित    नीम का तेल, रोटेनन, पाइरेथ्रिन, परजीवी और कीटों के शिकारियों को प्रोत्साहन, एस्परगिलस, प्राकृतिक एसिड, (सिरका) उत्पाद, हल्के खनिज तेल, पोटेशियम परमैग्नेट, सोडियम बाइकार्बोनेट तथा सल्फर आदि।

निषिद्व   एथिल एल्कोहॉल और अन्य कृत्रिम कीटनाशक; आनुवांशिक रूप से इंजीनियर जीवों या उत्पादों का उपयोग

खाद की दर निर्धारित करने के लिए और खाद के प्रत्येक बैच का परीक्षण करना उचित रहता है। परीक्षण में यदि एंटीबायोटिक्स और भारी धातुओं को जैसे विषाक्त तत्वों की उपस्थिति है तो उनका उपयोग बन्द कर देना चाहिए क्योंकि इन्हें कार्बनिक मानक के तहत प्रयोग करने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा जैविक खाद का अधिक उपयोग भी फसल के लिए हानिकारक हो सकता है।

अतिरिक्त नाइट्रोजन जलमार्ग को प्रदूषित कर सकते हैं, युवा पेड़ों की जड़ों को नुकसान पहुँचा सकते हैं और फल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अंगूर में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा में आपूर्ति फल की गुणवत्ता को प्रभावित करती है तथा अधिक वृद्धि इससे वायु से परिसंचरण कम हो जाता है जो रोगों को बढ़ावा देता है। इसलिए, मिट्टी की पोषण स्थिति की निगरानी करने और ऐसी ही समस्याओं से बचने के लिए नियमित मिट्टी का विश्लेषण आवश्यक है। सेब और लीची के पेड़ों की जड़ों में माइकोराइजल कवक के संक्रमण और फास्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है। कार्बनिक पोषक तत्वों के स्रोत तथा उनके उपयोग की शर्ते तालिका 1-2 में दी गई है।

जैविक खेती में एक प्रमुख उद्देश्य खरपतवारों के संयोजन को बदलना है जिससे बाग में अधिकतम लाभ मिल सके। पलवार का प्रयोग मृदा की नमी को बनाए करने के साथ खरपतवार नियंत्रण करता है और मिट्टी में जैविक गतिविधियों को बेहतर बनाता है। अकार्बनिक और जैविक सामग्री का उपयोग पलवार के लिए किया जा सकता है।

बाग में जानवरों की चराई खरपतवार नियंत्रण में सहायक होती है, हालांकि विशेष रूप से सूखे के दौरान देखभाल की जानी चाहिए, जब पशुधन वृक्षों अथवा लताओं को खा सकते हैं। यांत्रिक विधियों में स्लैसिंग (घास काटना, ब्रश काटना), थर्मल निराई, (गर्म हवा, गर्म पानी या लौ) आदि शामिल हैं। हाथ से निराई करना खरपतवार नियंत्रण को महत्वपूर्ण एवं प्रभावी तरीका होता है।

कीट और रोग प्रबंधन

कीटों और बीमारियों को कुछ हद तक, कृषण क्रियाओं के द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है। एकीकृत कीट प्रबंधन यह का मानना है कि संभावित रूप से हानिकारक प्रजातियों की मात्र उपस्थिति का अर्थ यह नहीं है कि नियंत्रण क्रियाएं आवश्यक हैं। एकीकृत प्रबंधन कार्यक्रमों में विकसित की जीवन-चक्र और निगरानी तकनीकों का ज्ञान भी जैविक उत्पादों के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि वे कार्बनिक कीट प्रबंधन मानकों के कुछ तत्वों को प्रतिबिम्बित करते हैं।

रोक कवक, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि माइकोप्लॉज्मा या प्रोटोजोआ के कारण हो सकते हैं। मौसम के कारण या पोषक तत्व के असंतुलन (कमी या विषाक्ततता) के कारण विकार इस प्रकार के लक्षण उत्पन्न कर सकते हैं जो बीमारियों की तरह दिखाई देते हैं। उचित पहिचान और निवारक प्रबंधन अनिवार्य हैं। उदाहरण के लिए बौरॉन विषाक्तता या ब्लॉसम-एंड रोट्स को कवकनाशी के माध्यम से ठीक नहीं किया जा सकता। एक स्थापित बाग में सफाई, रोग-ग्रस्त हो पौधों की कटाई -छटाई तथा रोगवाहक की रोकथाम करके बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।

जैविक फल उत्पादन में पौधों की सुरक्षा के लिए निवारक तरीकों पर जोर दिया जाना चाहिए। चूँकि जैविक उत्पादन में कीटनाशकों का प्रयोग बहुत सीमित होता है और वे अक्सर एकीकृत उत्पादन की अपेक्षा कम प्रभावी होते हैं। कुशल परिणामों को प्राप्त करने के लिए पौधों के संरक्षण के सभी तरीकों का सबसे अच्छा संभव उपयोग किया जाना चाहिए। एक ही फसल के साथ पुराने बागों की जगह पर पुनरावृति से बचा जाना चाहिए। पूरे बाग की मिट्टी की सफाई, गिरे हुए फलों को हटाकर नष्ट कर दें तथा कीटों के छिपने के स्थान को उपचारित करें ।

प्रजातियों की विविधता में बदलाव मुख्य फसल के प्रतिस्पर्धी लाभ को बढ़ाने का एक प्रभावी तरीका है। इसमें शामिल हैः पौधों की प्रजातियों की संख्या में वृद्धि करना जो कीटों के लिए बाधक के रूप में कार्य करते हैं, या वैकल्पिक पसंदीदा होस्ट प्रदान करते हैं (उदाहरण के लिए ट्रँप क्रॉप)। बाग की सीमा में और जमीनी कवर में वाँछनीय पौधों के मिश्रण को बनाए रखना, शिकारियों (मित्र कीटों) को प्रोत्साहित करता है। कुछ पौधे कुछ कीटों के शिकारियों को आकर्षित करते हैं जैसे कि गाजर और पार्सनिप, सेब के कोडिंग मौथ को नियंत्रित करने के लिए परजीवी ततैया को आकर्षित करते हैं।

प्रमाणित जैविक उत्पादों के लिए अनुमोदित कीटनाशक आमतौर पर प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं, जो तेजी से विघटित होते हैं और पर्यावरण पर कम से कम प्रभाव डालते हैं। पौधों से विषैले योगिकों के निकालकर वानस्पतिक कीटनाशक तैयार किए जाते हैं। विशेष रूप से तैयार किए गए साबुन जिनमें वसीय अम्लों की मात्रा काफी अधिक होती है, एफिड्स, व्हाइट फ्लाइज, लीपहॉपर्स और स्पाइडर माइट्स सहित कई कीटों के विरूद्व प्रभावी होते हैं। पादप सुरक्षा में उपयोग किए जाने वाले उत्पाद एवं शर्ते तालिका 3 में दी गई हैं।

संभावनाएं एवं भावी चुनौतियों की विविधता

भारत अपनी कृषि जलवायु क्षेत्रों की विविधता के चलते लगभग सभी प्रकार के जैविक उत्पादों का उत्पादन करने में सक्षम है। देश के कई हिस्सों में जैविक खेती की परंपरा विरासत में मिली है। यह उपलब्धि, जैविक उत्पादकों के लिए घरेलू और निर्यात बाजार में लगातार बढ़ रहे बाजार का दोहन करने में सहायक हैं। भारत दुनिया की अग्रणी फल उत्पादकों में से एक है। फल उत्पादन का अधिकांश भाग ताजे और घरेलू उपयोग में किया जाता है। इंग्लैंड, नीदरलैंड और जर्मनी में जैविक आमों की अत्यधिक मांग है, जिसका भारत के द्वारा दोहन किया जा सकता है। भारतीय जैविक केलें का निर्यात विश्व व्यापार के सम्बन्ध में न के बराबर है। भारत में जैविक अनानास के निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं, क्योंकि इसके लिए तीन प्रमुख निर्यात बाजार अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान हैं।

भारतीय अंगूर के लिए मुख्य निर्यात का क्षेत्र मध्य-पूर्व देश है, लेकिन यह जैविक अंगूर के लिए सीमित अवसर प्रदान करता है। भारतीय जैविक अंगूर के लिए यूरोपीय संघ विशेष रूप से इंग्लैंड और नीदरलैंड मुख्य बाजार हैं। अन्य जैविक फल जिनका सफलतापूर्वक निर्यात किया जा सकता हैं उनमें लीची, पैशनफल, अनार, चीकू, सेब, अखरोट और स्ट्रॉबरी आदि शामिल हैं।

हालांकि की बढ़ती मांग के कारण जैविक फल उत्पादकों के लिए भविष्य के अवसर उज्जवल दिख रहे हैं, लेकिन चुनौतियां भी सदैव ही रहेंगी। नए कीट अपनी सीमा में निरंतर वृद्धि करते रहते हैं। फलों की खेती को विकसित करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है जो इनपुट पर निर्भरता को कम करने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों में जैविक उत्पादन की समस्याओं का समाधान करते हैं।

यह एक महंगी और दीर्घकालिक प्रक्रिया है लेकिन कई देशों में सफलतापूर्वक चल रही है। प्रभावी खरपतवार नियंत्रण उपायों की व्यापक रूप से आवश्यकता होती है। आज तक जैविक तरीके व्यवहारिक साबित नहीं हुए हैं, और जुताई पर निर्भरता मिट्टी की स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। जबकि जैविक फलों की बिक्री में वृद्धि जारी है, जैविक और पारंपारिक फलों के उत्पादन के बीच का अंतर कुछ क्षेत्रों में कम हो रहा है और भविष्य में उपभोक्ताओं की धारणा को बदल सकता है और जैविक फलों की कीमतों को कम कर सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।