B to B और B to C क्या होता है? Publish Date : 17/12/2024
B to B और B to C क्या होता है?
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
स्टार्टअप शुरू करना चाहते है तो पहले B to B और B to C बिजनेस जैसे शब्दों का अर्थ भी समझ लीजिए। कोरोना महामारी के दौरान कई ऐसे शब्द रहे जो लोगों की जुबान पर आए। इन्ही शब्दों में से एक शब्द है ‘स्टार्टअप’। आपने भी इन दिनों ये शब्द शायद खूब सुना होगा। जैसे- मेरा स्टार्टअप, उसका स्टार्टअप, इसका स्टार्टअप।
स्टार्टअप का मतलब होता है किसी नए बिजनेस या काम की शुरुआत करना। कोरोना के चलते ढेरो लोग बेरोजगार हो गए थे और उनमें से कई लोगों ने अपना स्टार्टअप आरम्भ किया।
आज की अपनी इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं बिजनेस स्टार्टअप से जुड़े कुछ कॉमन शब्दों के बारे में जिन्हें अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले आपको भी जानना चाहिए।
B to B बिजनेसः इस शब्द का अर्थ है बिजनेस टू बिजनेस। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। माना कि कोई कंपनी साबुन बनाती है। अब अगर यह कंपनी अपने साबुन ग्राहकों के बजाय अलग-अलग होटलो को बेचती और आगे ये होटल अपने यहां ठहरने वाले ग्राहको को यह साबुन देते हैं।
ऐसे ही बिजनेस को B to B यानी बिजनेस टू बिजनेस कहते है। इसमें प्रोडक्ट या सर्विस को सीधे ग्राहको के बजाय किसी दूसरे बिजनेस को बेचा जाता है। यहां दूसरा बिजनेस होटल है।
B to C बिजनेसः इस शब्द का अर्थ है- बिजनेस टू कन्ज्यूमर। इसमें कोई कंपनी, फर्म या स्टार्टअप अपने प्रोडक्ट या सर्विस सीधे ग्राहकों को ही बेचती है। अब इसे भी एक उदाहरण से समझते हैं। अगर साबुन बनाने वाली कोई कंपनी अपने साबुन सीधे ग्राहको को बेचती है तो ऐसे बिजनेस को B to C कहते हैं।
वैल्यूएशनः किसी बिजनेस या कंपनी की इकोनॉमी वैल्यू को निकालना ही वैल्यूएशन कहलाता है। इससे समझा जा सकता है कि इस कंपनी की कितनी कीमत होगी। जैसे- जब आप कभी अपना सामान बेचने जाते है तो उसकी क्वालिटी देखकर कीमत का अंदाजा लगाया जाता है। उसके बाद फाइनल वैल्यूएशन के बाद उस सामान को बेचा जाता है।
कब होता है इसका इस्तेमाल
- किसी कंपनी को बेचने के लिए।
- पार्टनरशिप या ओनरशिप के लिए।
- टैक्सेशन के लिए।
प्री- रेवेन्यूः प्री रेवेन्यू किसी भी तरह की कमाई या खर्च नहीं होता है, बल्कि इसके जरिए एक रफली आइडिया लगाया जाता है कि आप अपने बिजनेस में कितना धन अर्जित कर सकते हैं।
मार्जिनः किसी प्रोडक्ट को बनाने में लगी कीमत और उसे बेचने के बाद आने वाले प्रॉफिट के बीच में जो अंतर होता है उसे ही मार्जिन या प्रॉफिट मार्जिन कहते है।
जैसेः मान लीजिए किसी कंपनी को चॉकलेट बनाने, पेक करने, डिलीवर करने और सभी एक्सट्रा खर्चों को जोड़ने के बाद 2.5 रुपए की लागत आती है और वो कंपनी अपनी चॉकलेट 5 रुपए में बेचती है। तो इस प्रोडक्ट का मार्जिन प्रॉफिट 50 परसेंट का होगा।
इक्विटीः इक्विटी का अर्थ होता है किसी कंपनी में दूसरे इंवेस्टर की हिस्सेदारी। जब आप किसी को अपने बिजनेस के या बिजनेस आईडिया के बारे में बताते है तो आप उससे कहते हैं कि हम आपको इतने इंवेस्टमेंट के बदले इतने पर्सेट इक्विटी देने को तैयार है।
जैसे- मान लीजिए कि आपने कहा मुझे एक करोड़ का इंवेस्टमेंट चाहिए। इसके बदले में सामने वाले को 10 पर्सेट इक्विटी दूंगा/दूंगी। तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि आपके बिजनेस में पैसे लगाने वाले को बिजनेस में 10 पर्सेट की हिस्सेदारी मिलेगी।
एंटरप्रेन्योरः ऐसे लोग जो अपना स्वयं का बिजनेस शुरू करते हैं और उसके मैनेजमेंट से लेकर फायदा-नुकसान हर चीज का रिस्क लेते हैं, उसे ही एंटरप्रेन्योर कहते हैं।
ऐंजल इन्वेस्टरः छोटे स्टार्टअप या एंटरप्रेन्योर को ऐंजल इन्वेस्टर पैसे से मदद करते हैं। इन्हें प्राइवेट इन्वेस्टर, सीड इन्वेस्टर और ऐजल फंडर भी कहते है। अधिकतर ऐजल इन्वेस्टर, एंटरप्रेन्योर के परिवार और मित्रों के बीच से ही होते हैं। कभी कभी ऐसा भी होता है कि ऐजल इन्वेस्टर किसी कंपनी में एक बार फंड इन्वेस्ट करते है, ताकि कंपनी शुरुआती समस्याओं से उबर सके और मजबूती से जमीन पर उतर कर अपने बिजनेस को बढ़ा सके।
ओवरहेडः ओवरहेड वह खर्चा नहीं है जो किसी सामान को बनाने या डिलीवर करने में आता है, बल्कि इसके अलावा जो अन्य खर्चा होता है, जैसे गोदाम का किराया, ऑफिस का रेट, किसी की लीगल फीस या कोई इंश्योरेस आदि, ऐसे तमाम खर्चे को ओवरहेड कहते हैं।
रॉयल्टीः मान लीजिए कि आपने कोई पेन बनाई और इसे पेटेट करवा लिया। उस पेन का कॉपीराइट, लोगो, ट्रेडमार्क सब कुछ आपका है, लेकिन यह पेन ग्राहको तक कोई थर्ड पार्टी बेचना चाहती है। तो उसे हर पेन के पीस की सेल प्राइस का कुछ हिस्सा आपको, यानी असली मालिक को देना होगा। इस आय को ही रॉयल्टी कहते हैं।
परवेज आर्डरः इस शब्द का अर्थ है एग्रीमेंट। किसी प्रोडक्ट को खरीदने वाला व्यक्त्ति सामने वाले बिजनेस मैन से कितने पैसों में कितने पीस प्रोडक्ट खरीदेगा इस बात का एग्रीमेंट होता है।
पेटेटः पेटेंट का सीधा अर्थ यह है कि आपके द्वारा बनाए गए किसी भी प्रोडक्ट या सामान पर आपके नाम की मुहर लगाना। मान लीजिए आपने एक पेंसिल का आविष्कार किया। उस आविष्कार का पेटेंट अपने नाम करा लिया। अब इस पेसिल को कोई भी तब तक नहीं बना सकता जब तक आप, यानी मालिक उसे इनवेट करने, इस्तेमाल करने और बेचने की इजाजत नहीं दे देता। बिना परमिशन के कोई भी उसकी कॉपी नही निकाल सकता है।
ट्रेडमार्कः किसी भी कंपनी के प्रोडक्ट की अपनी विशेष पहचान को ही उस कंपनी का ट्रेडमार्क कहते है। जैसे एप्पल कंपनी का कटा हुआ सेब या फिर मैक्डॉनल्ड का “Ilmovin Its” यह सब इन कंपनियों की एक विशेष पहचान है। आप ध्यान करे कि जब भी आप किसी प्रोडक्ट का रैपर देखते है तो उसके नाम के साथ एक जगह पर छोटा सा वाक्य लिखा होता है। यह उसका ट्रेडमार्क होता है, जिसे कोई दूसरी कंपनी कॉपी नहीं कर सकती है।
कॉपीराइटः यह भी पेटेंट और ट्रेडमार्क से मिलता-जुलता ही है। जैसे आपने कोई ई किताब लिखी, कोई कहानी लिखी या फिल्म बनाई। तो आपके द्वारा बनाए हुए कंटेट या सामान पर आपका कॉपीराइट है। इसे आपकी बिना परमिशन के कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
प्रूफ ऑफ कांसेप्टः इसका अर्थ है आपके कांसेप्ट का सबूत। यानी आपको अपने विचारों का सबूत देना होता है। जैसे आपने एक घर खरीदा है, यह बात आपने किसी से बताई। जरूरी नहीं कि वह इसे सच मान ले। आपको इस बात का सबूत देना पड़ सकता है कि आपने यह घर खरीद लिया है।
ड्यू डेलिजेसः खरीदार किसी भी डील को फाइनल करने से पहले कंपनी के फायदे नुकसान के सभी पहलुओं को आकलन करता है। वह देखता है कि कंपनी का मालिक कोई झूठ तो नही बोल रहा है। इस जांच करने की प्रोसेस को ही ड्यू डेलिजेस कहते हैं। ड्यू डेलिजेंस खरीददार या इंवेस्टर को इस बात का पता चल जाता है कि उसका पैसा डूबेगा या नहीं।
फ्रेंचाइज़ः फ्रेंचाइज मॉडल में दो लोग शामिल होते है। पहला फ्रेंचाइज़र और दूसरा फ्रेंचाइजी।
फ्रेंचाइज़रः अपना प्रोडक्ट और सर्विस फ्रेंचाइजी को देता है।
फ्रेंचाइजीः फ्रेंचाइज उन प्रोडक्ट और सर्विस को अलग अलग शहरों में प्रोमोट करता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।