मृदा की सुरक्षा एवं प्रबंध कर मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ाएं      Publish Date : 09/12/2024

          मृदा की सुरक्षा एवं प्रबंध कर मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ाएं

                                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर,

तेरी मिट्टी में मिल जावां,

गुल बनके मैं खिल जावां।।

इतनी सी है दिल की आरजू,

तेरी नदियों में बह जावां,

तेरे खेतों में लहरावां,

इतनी सी है दिल की आरजू।।

बार बार मिट्टी में मिलने की आरजू रखेंगे तो मिट्टी की बायोडाइवर्सिटी बनी रहेगी। यह अपने आप में सत्य है।

पहले यही होता था, मिट्टी में फसल उगी। वह फसल पशु ने खाई। पशु ने गोबर किया और वह फिर से मिट्टी में मिल गया। सबके लिए भिन्न भिन्न सिचुएशन रही।

इसके बाद फिर हरित क्रांति आई, और यह अपने साथ लाई कृत्रिम उर्वरक, उन्नत बीज, घातक रोगनाशी व कीटनाशी और भी ना जाने क्या क्या रहा।

कृषि के हर क्रिया कलाप का मशीनीकरण हुआ। सर्व शिक्षा अभियान आया। और जो गोबर वापस जंगल और खेतों में जाया करता था उसका स्थान ले लिया इन्हीं कृत्रिम चीजों ने।

अब आप सोच रहे होंगे कि सब में सर्व शिक्षा अभियान का क्या दोष?

दोष नही बल्कि आफ्टर इफ़ेक्ट है- जो बच्चे पहले पशुओं को चराने जंगल जाते थे वह सब स्कूल जाने लगे। अब पशुओं को जंगल लेकर कौन जाए। जब पशु जंगल और खेतों की तरफ जाएंगे ही नहीं तो उनके चरते समय जो गोबर जंगल और खेतों की मिट्टी में मिलना था तो उससे तो यह सब वंचित ही रह गए न।

एक चम्मच मिट्टी में अभी भी 6 बिलियन माइक्रोब्स होते हैं। अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं और बुरे बैक्टीरिया भी। वायरस है तो इमें फंगस भी हैं। इंसेक्ट्स भी इसके अलावा और भी ना जाने क्या क्या होता है हमारी इस मिट्टी में।

मिट्टी की जैव विविधता बनाये रखना बहुत आवश्यक है और ‘‘विश्व मृदा दिवस’’ की वर्ष 2020 की थीम भी यही थी कि मिट्टी को जीवित बनाए रखें, मिट्टी की जैव विविधता का संरक्षण करें।

मिट्टी जिंदा रहेगी तो मानव सभ्यता भी जिंदा रहेगी। मिट्टी मर गई तो हम सब मारे जायेंगे, क्योंकि हमारा 95 प्रतिशत भोजन तो इस मिट्टी से ही आता है। इसलिए वह सब काम करें जिनसे मिट्टी की सांसें चलती रहें।

जैसे-         

  • ’सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग कदापि न करें।
  • ’घातक रसायनों को मिट्टी में मिलने से रोकें। इनके स्थान पर इकोफ्रेंडली उत्पादों का प्रयोग करें।
  • ’बैटरियों आदि को सही तरीके से डिस्पोज करें और घर और पशुशाला से निकले कचरे को कम्पोस्ट में बदल कर फिर से खेतों में वापस भेजें।
  • ’स्वयं शाकाहारी बनें और दूसरों को भी शाकाहारी बनने के लिए प्रेरित करें, ’मृदा संरक्षण के हर सम्भव उपाय करते रहें।

‘‘विश्व मृदा दिवस’’ वर्ष 2022 की थीम थी, ‘‘मृदाः जहां से भोजन का आरंभ होता है’’। इसका उद्देश्य है कि मृदा में स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र बनाए रखने के लिए जागरूकता को बढ़ाना, मृदा प्रबंधन की बढ़ती चुनौतियों का समाधान करके मानव कल्याण करना और मृदा के प्रति जागरूकता बढ़ाना व समाज को मृदा स्वास्थ्य बढ़ाने के लिए जागरूक करना।

विश्व मृदा दिवस की वर्ष 2023 की थीम थी, ‘‘मृदा और जलः जीवन का एक स्रोत है।

जल नहीं होगा तो मृदा भी नहीं होगी। इसलिए मृदा संरक्षण के लिए जल संरक्षण भी आवश्यक है और यह दोनों हैं तो फिर जीवन भी है।

विश्व मृदा दिवस की वर्ष 2024 की थीम है ‘‘मृदा की सुरक्षाः आंकलन, निरीक्षण और प्रबंधन’’। अर्थात मृदा स्वास्थ्य का आंकलन कीजिए, मृदा स्वास्थ्य बेहतर करने के लिए किए गए उपायों का निरीक्षण कीजिए और मृदा का बेहतर से बेहतर प्रबंधन कीजिए।

वर्ष भर इसी थीम पर कार्य करें और मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए हर सम्भव प्रयास करें। हर संभव तरीके से जल संरक्षण करें, तभी मेरे देश की धरती सोना उगलेगी और उगलेगी हीरे मोती। यह है मेरे देश की धरती।

जय हो, विश्व मृदा दिवस 5 दिसम्बर, 2024।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।