लौटें एक बार फिर से आयुर्वेद की ओर      Publish Date : 05/12/2024

                       लौटें एक बार फिर से आयुर्वेद की ओर

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्वति के अंतर्गत पंचकर्म का विशेष योगदान है पंचकर्म उपचार से शरीर में व्याप्त विषाक्त पदार्थों को समाप्त करने, दोषों को संतुलित करने और प्रतिरक्षा तंत्र को वृद्वि प्रदान करने के लिए व्यक्तिगत शारीरिक तकनीक और अनुकूलित आहार के उपयोग से शरीर को रोग रहित करता है। इस प्रक्रिया में पाँच उपचार, वमन, विरेचन, वस्ती, नस्य और रक्त-मोक्षण प्रभावी होते हैं। आयुष विज्ञान से आपकी पहचान के लेख में आज आपसे बात करते है। अपने अति प्राचीन आयुर्वेद स्वेदन के बारे में-

                                                                

इसके के मध्यम से शरीर के विभिन्न स्रोतों से एकत्रित हुए तमाम विषाक्त पदार्थ अलग-अलग प्रक्रियाओं द्वारा शरीर से निष्कासित किए जाते हैं। इस चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत एक पोटली में रेत अथवा पाउडर और विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां भरकर रोगी की सिकाई की जाती हैं। इस प्रक्रिया से आपके शरीर के दर्द, सूजन और बढते हुए वजन को भी कम किया जा सकता हैं।

पोटली स्वेदन अथवा मसाज आयुर्वेद की एक सदियों पुरानी उपचार करने की विधि है। इसमें, गर्म हर्बल थैलियों यानी पोटली का उपयोग करके शरीर के प्रभावित हिस्से को आराम और पोषण प्रदान किया जाता है। यह चिकित्सा, शरीर को डिटॉक्सीफ़ाई करती है, पसीना निकालती है, और रक्त परिसंचरण में व्यापक सुधार करती है। पोटली स्वेदन के माध्यम से दर्द में राहत मिलत है और मांसपेशियां और त्वचा मज़बूत होती है।

                                                                 

यह रुमेटाइड गठिया, ऑस्टियोआर्थराइटिस, और स्पोंडिलाइटिस जैसी दर्दनाक स्थितियों में भी लाभदायक होता है। क्या आप रात में हड्डियों और जोड़ों के दर्द के कारण बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते थक चुके हैं? यह गंभीर और दीर्घकालिक पीठ दर्द, जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में जकड़न, अकड़न आदि के कारण से भी हो सकता है। अब आपके लिए इस समस्या से आयुर्वेद की एक विशेष चिकित्सा पद्धति से परिचित कराते हैं जिससे आपको इन सभी रोगों से राहत मिलेगी।

पोटली स्वेदन/मसाज कैसे की जाती हैः- इस मालिश को करने के लिए, औषधीयुक्त वातहर के पत्तों से बनी एक कतरन का उपयोग किया जाता है और कपड़े की पोटली में इन सबको भरकर किसी विशेष तेल मुख्यतः सरसों का तेल या अश्वगंधा के तेल से मालिश की जाती है।

पत्र पिंड स्वेद, पीठ के निचले हिस्से का दर्द, साइटिका, गठिया और फ्रोजन शोल्डर आदि के लिए आयुर्वेदिक पोटली मसाज है। औषधीय गुणों से भरी इस पोटली से आयुर्वेदिक पोटली मसाज की जाती हैं।

विभिन्न बीमारियों के अनुसार इस पोटली में औषधि और सामग्री बदलती रहती है- जैसे टेंशन और अनिद्रा की स्थिति में मसाज पोटली में रेत के साथ अश्वगंधा भरते हैं। शरीर में दर्द होने पर रेत के साथ नीम का तेल या फिर सरसों का तेल भरा जाता है।

  • स्किन और मानसिक समस्याओं की परेशानी को कम करने के लिए हल्दी और अदरक का उपयोग किया जाता है।
  • सिरदर्द होने पर मिंट और नींबू का प्रयोग किया जाता है।
  • मसल्स में होने वाले दर्द और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करने के लिए चावल और रोजमेरी के फूलों का उपयोग किया जाता है।

आयुर्वेद में अत्याधिक दर्द, जकड़न और मांसपेशियों में अकड़न के लिए एक अद्वितीय उपचार प्रदान करती है, विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों जैसे अरंड, धतूरा, धतूरा मेटेल, निर्गुंडी, भांग, और अश्वगंधा आदि की पत्तियों को एक पोटली में बांधा जाता है और दर्द से पीड़ित जोड़ों पर एक समकालिक तरीके से इसको रगड़ा जाता है। धतूरे में सूजन-रोधी गुण होते है और यह गठिया और गठिया के दर्द को कम करता है। शिग्रु और निर्गुंडी गंभीर दर्द को कम करते है और अरंड वात दोष को शांत करती है।

                                                              

पत्र पिंड स्वेद मस्कुलोस्केलेटल और न्यूरो-मस्कुलर विकार, इन दोनों के उपचार के लिए अत्यधिक कारगर होता है। इस थेरेपी को जब अन्य स्थानीय उपचारों जैसे कि कटि वस्ती (पीठ के निचले हिस्से के लिए तेल पूलिंग), ग्रीवा वस्ती (गर्दन के पीछे तेल पूलिंग), जानू वस्ती (घुटने के जोड़ों में तेल पूलिंग), पृष्ठ वस्ती (पूरी पीठ के लिए तेल पूलिंग) और अभ्यंग (सिर से पैर तक पूरे शरीर पर तेल मालिश) के साथ कुशलतापूर्वक लिया जाता है, तो हमें इसके जादुई परिणाम मिलते हैं। परन्तु ध्यान रखें कि यह सब एक कुशल चिकित्सक के नेतृत्व में करना ही सही रहता है वरना परिणाम उल्टे भी आ सकते हैं।

भारतीय आयुर्वेद में मुख्य रूप से तीन प्रकार के शरीर के दोष बताए गए हैं- वात, पित्त और कफ। शरीर में यदि वात पित्त और कफ के संतुलन में कोई कमी या इसकी वृद्वि हो जाती है तो कई प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं और इन्हीं दोषों को मानव शरीर और मन में पाई जाने वाली जैविक ऊर्जा के रूप में वर्णित किया गया है। यह तीनों मिलकर हमारी शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं और प्रत्येक जीवित प्राणी को एक व्यक्तिगत प्रकृति प्रदान करते हैं।

आज के वैज्ञानिक वैश्वीकरण और भागम-भाग से भरी जिंदगी में प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है ऐसे में शरीर और मानसिक संतुलन का बने रहना बहुत आवश्यक है और इसमें सबसे अधिक आवश्यक है कि हम अपनी बायोलॉजिकल क्लॉक को नियंत्रित रखें। वात पित्त और कफ का संतुलन ही शरीर को बेहतर ढंग से कार्य करने में सक्षम बनाता है ताकि हम स्वस्थ जीवन जी सकें। एक स्वस्थ शरीर में, स्वस्थ विचार अपने आप ही बने रहते है, इस प्रकार आयुर्वेद शरीर और आत्मा दोनों को सकारात्मकता से भर देता है।

                                                                

पोटली चिकित्सा के बाद कुछ विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। मालिश के बाद बचे हुए तेल को धोने के लिए गर्म स्नान या शॉवर की सलाह दी जाती है। वहीं दही मट्ठा, खट्टा तथा शीतल पेय से बचाव करना होता है। कहीं-कहीं बॉडी स्टीमर की उपलब्धता से स्टीम भी ली जाती है।

अब आप जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि यह सब लखनऊ के 50 शैय्या आयुष चिकित्सा अस्पताल कल्ली पश्चिम में विभिन्न रोगों के इलाज हेतु प्रयुक्त की जाने वाली प्रक्रियाएं है। एलोपैथ चिकित्सा में लंबी लगती कतारे और विभिन्न रोगों के लिए प्रयुक्त होने वाली विषाक्त औषधियों के साइड इफेक्ट को समाप्त करने के लिए जरूरी है कि एक फिर से वापस आयुर्वेद की ओर लौटा जाए।

आयुष अस्पताल में आयुर्वेद यूनानी और होम्योपैथी चिकित्सा के माध्यम से विभिन्न लोगों का उपचार एक ही स्थान पर कुशल डॉक्टरों के नेतृत्व में किया जाता है।

यह एक सरकारी अस्पताल होने के कारण इसमें रोगी का उपचार मात्र ₹1 में हो जाता है, परंतु आज भी बहुत सी समस्याएं इस अस्पताल में हैं जो हमें और आप सबको मिलकर दूर करनी होगी। यहां संसाधनों की कमी है और बढ़ती भीड़ के कारण चिकित्सा में और सुविधाओं की आवश्यकता है। अनेकों कमियों के उपरांत भी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ संदीप कुमार शुक्ला के कुशल निर्देशन में आयुर्वेद, होम्योपैथी एवं यूनानी विधा के चिकित्सक डॉ वरुण सिंह, डॉ सुशील त्रिपाठी, डॉ आशुतोष शुक्ला, डॉ अफसाना बेगम, डॉ प्रज्ञा साहू, डॉ ज्ञान प्रकाश मौर्य तथा स्पोर्टिंग स्टॉफ के अथक प्रयास के द्वारा इस चिकित्सालय में पंचकर्म जैसी चिकित्सा विधियों से यहां आने वाले रोगियों को कष्ट मुक्त किया जा रहा है जो कि अपने आप में एक सराहनीय काम है।

’आयुष अस्पताल में जन सुविधा बढ़ती जाएं, इसके लिए छोटे-छोटे प्रयासों के अंतर्गत आज 50 शैय्या एकीकृत आयुष चिकित्सालय कल्ली पश्चिम लखनऊ में रिटायर्ड शिक्षिका और समाजसेवी रमा शर्मा ने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.संदीप कुमार शुक्ल की प्रेरणा से अपने सुपुत्र हिमांशु भारद्वाज के जन्मदिन के अवसर पर इस अस्पताल को एक वॉटर डिस्टेंसर चिकित्सा हेतु आए रोगियों को गर्म पानी मिल सके, दो व्हील चेयर, दो वाकर अस्पताल को रोगियों की चिकित्सा में सुविधा हेतु प्रदान किए है।

लखनऊ जिले के एकमात्र सरकारी 50 शैय्या एकीकृत आयुष चिकित्सालय में आयुष चिकित्सा से विभिन्न रोगों का उपचार करायें तथा कुछ सुविधाओं को बढ़ाने में अपना सहयोग प्रदान करें। आज समय आ गया है कि हम अपनी सनातन और प्राचीन चिकित्सा पद्धति से जुड़े ताकि यह ज्ञान अब घर-घर तक पहुंचाया जा सके।