प्रकोप जहरीली हवा का Publish Date : 12/11/2024
प्रकोप जहरीली हवा का
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली-एनसीआर में Air क्वालिटी इंडेक्स अर्थात एक्यूआई 350 के ऊपर चल रहा है, जो हवा की बेहद खतरनाक श्रेणी को दर्शाता है। इसके चलते दिल्ली-एनसीआर की हवा में पीएम 2.5 यानी प्रदूषित कणों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा निर्धारित सीमा से 50 गुना अधिक खतरनाक हो चला है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार करीब 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष होती है और भारत में इसका खतरा सबसे अधिक है।
वर्तमान में दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत एक बड़ा हिस्सा गम्भीर वायु प्रदूषण से ग्रस्त रहने लगा है। इसका कारण यह है कि जिन वजह से दिल्ली-एनसीआर वायु प्रदूषण की चपेट में आता है अब वही सब कारण उत्तर भारत के इस क्षेत्रों में दिखाई देने लगे हैं। जो पराली पूर्व में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों में जला करती थी, वही पराली अब पूर्वी उत्तर प्रदेशा तथा बिहार के गाँवों में भी जलायी जाने लगी है।
इस प्रकार से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि यदि दिल्ली को वायु प्रदूषण से मुक्त करने में सफलता नही मिल पाती है तो फिर वायु प्रदूषण से मुक्ति पूरे देश को भी नही मिल सकेगी। साथ ही इस तथ्य की अनदेखी भी नही की जानी चाहिए कि वायु प्रदूषण से ग्रस्त शहरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
बोस्टन कॉलेज की ग्लोबल आब्जर्वेटरी ऑन पॉल्यूशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल वर्ष 2019 में ही वायु प्रदूषण के कारण मरने वालों की संख्या 16 लाख रही थी। देखा जाए तो वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन, धूल और मौसम के पैटर्न जैसे कारकों का मिश्रण दिल्ली सहित देश के बड़े शहरों को प्रदूषित कर रहे हैं। विभिन्न बड़े शहरों में तो प्रदूषण के इन स्रोतों का एक बड़ा हिस्सा पूरे वर्षभर ही बना रहता है। हालांकि यह दुर्भाग्य ही है कि हम सभी को केवल और केवल सर्दियों के मौसम में ही हवा के प्रदूषित होने का अहसास हो पाता है।
वर्तमान में जो प्रदूषण का स्तर है उसमें पराली का योगदान बहुत कम है। विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र (सीएसई) के द्वारा दिल्ली में प्रदूषण के नए प्री-दिवाली और प्री-विंटर विशलेषण के अनुसार दिल्ली में वाहनों को वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत बताया गया है। वर्ष दर वर्ष बढ़ती जा रही वाहनों की संख्या के चलते अकेले परिवहन के क्षेत्र से प्रदूषकों का उत्सर्जन लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
वर्ष 1991 से 2011 के बीच दिल्ली का आकार लगभग दो गुना हो चुका है। दिल्ली के इस विस्तार के साथ ही क्षेत्र की जनसांखियकीय संरचना में आने वाला व्यापक बदलाव आया है और आज शहरी परिवारों की संख्या लगभग तीन गुना तक हो गई है, जबकि इसके सापेक्ष ग्रामीण परिवारों की संख्या आधी से भी कम रह गई है।
अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि वर्ष 2028 तक दिल्ली सबसे अधिक आबादी वाले शहरी समूह के रूप में टाक्यो को भी पीछे छोड़ देगी। औद्योगीकिकरण, शहरीकरण और निजी वाहनों की वृद्वि के माध्यम से ही दिल्ली का प्रदूषण बढ़ रहा है।
वर्ष 1985 में दिल्ली योजना बोर्ड सहित एनसीआर की स्थापना की गई थी जिसका प्राथमिक लक्ष्य दिल्ली और इसके बाहरी शहरी केन्द्रों को कुशल एवं संगठित रूप से विकसित करना था। इसके साथ ही दिल्ली की भीड़भाड़ को कम करने के लिए 100 से 300 किमी के दायरे में स्थित कुछ शहरों को ‘‘बाउंटर मैग्नेट’’ के रूप में स्थापित करने का था, परन्तु ऐसा कुछ भी नही हो पाया।
यह वास्तव में चिंताजनक है कि दिल्ली शहर नियमित रूप से ‘‘दुनियाभर की सर्वाधिक प्रदूषित राजधानियों’’ की सूची में शीर्ष पर स्थित है। दिल्ली की वास्तविक स्थिति को समझने के लिए शहर की सीमाओं से परे ब्लू प्रिंट का विस्तार करना और इसके चारों ओर विकसित होने वाले जटिल पारिस्थितिकी तंत्र की पहचान करना अति महत्वपूर्ण है। दिल्ली-एनसीआर में स्वच्छ वायु के लिए एकीकृत सर्वाजनिक परिवहन सेवाओं के उपयोग और हिस्सेदारी को बढ़ाने, पैदल चलने, साइकिल चलाने और एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें भी निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।
बिजली संयंत्रों के लिए बेहतर उत्सर्जन मानक रखने की आवश्यकता है। पराली को जलाने पर भारी अर्थदण्ड़ के साथ ही पराली को खाद में बदलने के लिए किफायती योजनाएं भी बनानी होंगी। स्मॉग टावर और स्प्रिंकलर पूरे वर्षभर संचालित करना वक्त की माँग है। सॉलिड ईंधन के उपयोग को समाप्त या कम करने के लिए भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों पर लगने वाले कर अधिक कटौति करने की आवश्यकता है। ऐसा करने से हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन उपभोक्ताओं के लिए अधिक किफायती हांगे और इससे वायु की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार होगा।
केवल दिल्ली ही नही अपितु परे देश में ऐसे विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जो कि प्रदूषण के स्तर को न बढ़ाए। सेवा उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, होटल, बैंकिंग, मीडिया और पर्यटन के क्षेत्रों को भी समय की मांग के अनुसार नए आयाम प्रदान करने की महत्ती आवश्यकता है। दिल्ली के जैसे बड़ी आबादी वाले शहरों में आबादी प्रबन्धन के हेतु विश्व स्तर पर हमारे पास विभिन्न दृष्टिकोण उपलब्ध हैं, जिनमें पेरिस के जैसे शहर भी शामिल हैं। निरंतर बढ़ती शहरी आबादी के साथ क्षेत्रों में परस्पर आर्थिक निर्भरता का विस्तार ‘‘काउंटर मैग्नेट’’ शहरों के माध्यम से होना चाहिए।
दिल्ली और इसके जैसे शहरों को उचित आर्थिक विकास योजना की बेहद आवश्यकता है, जो कि न्यायसंगत एवं टिकाऊ हो। विकास के लिए पर्यावरण की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, औद्योगिक निकायों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को एक मंच पर एक साथ आना ही होगा।
ऐसे में हमें यह भी समझना होगा कि पर्यावरण किसी सरकार या किसी पार्टी विशेष का मुद्दा नही है बल्कि यह हम सभी और हमारी भावी पीढ़ियों के जीवन से जुड़ा हुआ पहलू है। हमें चालू समय से 25 वर्ष आगे का मॉस्टर प्लान बनाना होगा। विभिन्न महत्वकाँक्षी योजनाओं और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के मध्य उपस्थित बड़े अंतर की पूर्ती करनी होगी।
राजधानी दिल्ली को एक विश्वस्तरीय शहर के रूप में स्थापित करने और इसे एक समावेशी, रोजगारपरक और रहने के योग्य एक वैश्विक शहर बनाना होगा, क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी होने के साथ ही देश का दिल भी है। स प्रकार से यदि दिल की हालत नही सुधरी तो फिर शरीर का सुधार किस प्रकार से हो सकेगा। ध्यान रहे कि हमारे प्रमुख शहरों का प्रदूषित बने रहना देश की बदनामी का कारण भी बनता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।