डिजिटलीकरण के माध्यम से भूमि-सुधार      Publish Date : 28/10/2024

                   डिजिटलीकरण के माध्यम से भूमि-सुधार

                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

भूमि सुधारो की दिशा में डिजिटलीकरण एक अच्छा कदम है लेकिन भू-अभिलेख तथा अन्य चुनौतियों के समाधान करने की महत्ती आवश्यकता है।

                                                           

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा इस बात की पुष्टि किया जाना कि ग्रामीण भारत में 95 प्रतिशत भूमि अभिलेख का डिजिटलीकरण संपन्न हो चुका है, यह भारत सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि कहीं जा सकती है जो देश में एक पारदर्शी एवं प्रभावी भूमि प्रबंधन प्रणाली की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाती है। हमारे देश में भूमि सुधार का मुद्दा वर्षों से गंभीर बना हुआ है। भूमि विवाद मालिकाना हक में असमानता और रिकॉर्ड के अभाव जैसी समस्याएं विशेषरूप से ग्रामीण विकास में बाधा पहुंचती रही है।

ऐसे में केंद्र सरकार के द्वारा पूर्ण वित्त पोषित डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम जो पहले राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम के नाम से जाना जाता था, का वर्ष 2016 में केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में पुनर्गठन किया गया था।

                                                       

इसका उद्देश्य ही एक एकीकृत आधुनिक और पारदर्शीय भूमि अभिलेख प्रबंधन प्रणाली की स्थापना करना है। भारत जैसे देश में जहां की आधी से अधिक कार्यशील आबादी कृषि कार्यां में संलग्न है, जो प्राथमिक संसाधन के रूप में भूमि पर निर्भर है, वहां इस योजना की सफलता से न केवल पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे लाखों किसानों एवं ग्रामीणों को अपनी जमीन के रिकॉर्ड देखने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे भ्रष्टाचार की आशंका भी कम होगी। ऑनलाइन रिकॉर्ड के आधार पर किसान आसानी से रिकार्ड प्राप्त कर सकेंगे, जिससे भूमि निवेश व विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही राज्य एवं केंद्र सरकार की योजनाओं का भी पारदर्शी ढंग से क्रियान्वयन हो सकेगा।

बावजूद इसके कि डिस्टलीकरण की प्रक्रिया में ग्रामीण क्षेत्र में नई संभावनाओं के द्वारा खुले हैं। वहीं विचारणीय प्रश्न यह भी है कि क्या भूमि सुधार के क्षेत्र में निहित समस्याएं केवल भूमि के डिजिटलीकरण से दूर हो सकेंगे। दरअसल भूमि सुधार से जुड़े कई मामले व्यावहारिक और हमारी कानूनी प्रक्रिय के चलते पैदा होते हैं, जिसका समाधान केवल डिजिटलाइजीकरण से हो पाना सम्भव नहीं है। दूसरे भूमि संबंधी कानूनी प्रावधान जो कि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है और जिनमें से अधिकांश कानून अंग्रेजों के जमाने के हैं और जिन्हें वर्तमान समय के अनुसार अध्यांतन करने की भी आवश्यकता है। विवाद निवारण तंत्र को सशक्त करना और भूमि अधिकार आवश्यक मामलों में बदलती प्रक्रिया को सरल बनाना भी आवश्यक है, ताकि आम नागरिकों को वर्षों तक अदालतों के चक्कर न काटने पड़े।

                                                                  

डिजिटल इंडिया अभियान के तहत बेशक 95 प्रतिशत से अधिक गांवों तक थी और 4जी नेटवर्क भी पहुंच गया हो, लेकिन ग्रामीण जन अभिलेखों के डिजिटलाइजेशन का फायदा उठा सके। इसके लिए उन्हें डिजिटल तौर पर जागरूक भी बनाना होगा क्योंकि अभी भी एक बड़ी संख्या में किसान ऐसे हैं जो अपने अभिलेखों को डिजिटल के माध्यम से नहीं देख सकते हैं। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे किसानों को इसके लिए जागरूक किया जाए, जिससे वह अपने दस्तावेजों को आसानी से देख और समझ सके और दूसरों पर उनकी निर्भरता कम हो सके।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।