मिट्टी में फॉस्फेट उर्वरक को जिंक सल्फेट उर्वरक के साथ मिलाने से हानियाँ Publish Date : 14/10/2024
मिट्टी में फॉस्फेट उर्वरक को जिंक सल्फेट उर्वरक के साथ मिलाने से हानियाँ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
किसानों को निम्न कारणों से मिट्टी में फॉस्फेट उर्वरक को जिंक सल्फेट उर्वरक के साथ मिलाने से बचना चाहिएः-
1. रासायनिक असंगतिः फॉस्फेट उर्वरकों (जैसे, डीएपी, एसएसपी) में फॉस्फेट आयन (PO4) होते हैं, जबकि जिंक सल्फेट में जिंक (Zn) और सल्फेट (So4) आयंस होते हैं। इन उर्वरकों को एकसाथ मिलाने से रासायनिक प्रतिक्रियाएँ भी हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूपः-
जिंक फॉस्फेट का अवक्षेपण, जिससे भूमि में जिंक की उपलब्धता कम हो जाती है।
- पौधों के द्वारा फॉस्फेट का अवशोषण कम हो जाता है।
2. भूमि में जिंक की उपलब्धता में कमी आनाः फॉस्फेट आयन जिंक आयनों के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं, जिससे अघुलनशील जिंक फॉस्फेट यौगिक बनते हैं। इससे पौधों के लिए जिंक की उपलब्धता कम हो जाती है।
3. उर्वरक दक्षता में कमी आनाः फॉस्फेट और जिंक सल्फेट उर्वरकों को एकसाथ मिलाने से दोनों उत्पादों की प्रभावशीलता कम हो सकती है।
4. मिट्टी के पीएच में असंतुलनः फॉस्फेट उर्वरक मिट्टी के पीएच को बढ़ाते हैं, जबकि जिंक सल्फेट इसे कम कर सकता है। इन उर्वरकों को एकसाथ मिलाने से मृदा के पीएच में उतार-चढ़ाव हो सकता है।
5. पौधों में पोषक तत्वों का असंतुलनः अत्यधिक फॉस्फेट का प्रयोग भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों के असंतुलन का कारण बन सकता है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
सर्वेत्तम अभ्यासः
मिट्टी के प्रकार, फसल की आवश्यकताओं और अनुशंसित अनुप्रयोग दरों पर विचार करते हुए फॉस्फेटिक और जिंक सल्फेट उर्वरकों को अलग-अलग रूप में ही प्रयोग करें।
सामान्य दिशा-निर्देशः
1. रोपण या बेसल ड्रेसिंग के दौरान फॉस्फेटिक उर्वरकों का प्रयोग करें।
2. रोपण के 30-40 दिन बाद जिंक सल्फेट उर्वरकों को पत्तियों पर छिड़काव या मिट्टी में छिड़काव के रूप में प्रयोग करें।
स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें या विशिष्ट फसलों और मिट्टी की स्थितियों के लिए अनुशंसित अनुप्रयोग के लिए पारित दिशा-निर्देशों का पालन करना सुनिश्चित् करें।
उर्वरक अनुप्रयोग सर्वोत्तम प्रथाओं पर कुछ संसाधन यहां दिए गए हैं कृपया इनका निरीक्षण करें-
विभिन्न वेबसाइट्सः
1. अंतर्राष्ट्रीय उर्वरक उद्योग संघ (IFA) - (लिंक अनुपलब्ध)
2. खाद्य और कृषि संगठन (FAO) - (लिंक अनुपलब्ध)
3. राष्ट्रीय कृषि विभाग संघ (NASDA) - (लिंक अनुपलब्ध)
4. उर्वरक संस्थान (TFI) - (लिंक अनुपलब्ध)
प्रकाशनः-
1- IFA द्वारा ‘‘उर्वरक अनुप्रयोग सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाएँ’’
2- FAO द्वारा ‘‘उर्वरक उपयोग और प्रबंधन’’
3- USDA द्वारा ‘‘मृदा उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन’’
4- TFI द्वारा ‘‘उर्वरक गाइड’’
5. अंतर्राष्ट्रीय पादप पोषण संस्थान (IPNI) द्वारा ‘‘फसल पोषण और उर्वरक उपयोग’’
दिशा-निर्देश और मानकः
1. 4R स्टीवर्डशिप कार्यक्रम (सही स्रोत, सही दर, सही समय और सही स्थान)।
2. अंतर्राष्ट्रीय आचार संहिता उर्वरक प्रबंधन।
3. एफएओ उर्वरक दिशा-निर्देश।
4. यूएसडीए राष्ट्रीय जैविक कार्यक्रम (एनओपी) मानक।
ऑनलाइन पाठ्यक्रम और प्रशिक्षणः
1. उर्वरक अनुप्रयोग और प्रबंधन (नेब्रास्का-लिंकन विश्वविद्यालय)।
2. मृदा उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन (विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय)।
3. उर्वरक सर्वेत्तम प्रबंधन अभ्यास (आईएफएटीसी)।
4. फसल पोषण और उर्वरक उपयोग (आईपीएनआई)।
मोबाइल ऐप्सः
1. उर्वरक कैलकुलेटर (आईओएस, एंड्रॉइड)।
2. फसल पोषण सलाहकार (आईओएस, एंड्रॉइड)।
3. मृदा परीक्षण सलाहकार (आईओएस, एंड्रॉइड)।
4. उर्वरक गाइड (आईओएस, एंड्रॉइड)।
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की मार के कारण फसलों को होने वाले नुकसान से बचाने में नए प्रभेद होंगे मददगार।
वैज्ञानिको ने फसलों को जीवन दान देने के लिए 41 नए प्रभेद धान और गेहूं की फसल के लिए चिन्हित किए।
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में हो रहे उतार चढ़ाव से फसलें अपनी पूरी जिंदगी नहीं जी पाती है और इस बदलते मौसम के कारण बीच में ही दम तोड़ने लगती है जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है। वैज्ञानिकों ने प्रयास करके 41 नए प्रभेद पहचाने हैं, जो मौसम के उतार-चढ़ाव में भी बच सकेंगे और अच्छा उत्पादन दे सकेंगे।
कृषि वैज्ञानिकों ने समय से पहले मर रही इन फसलों को बचाने का उत्कृष्ट समाधान खोज लिया है। इससे कृषि की गतिविधियां स्थापित होगी और किसानों का उत्थान होगा।
वैज्ञानिकों के इस अभिनव फसलियां प्रयोग से पर्यावरण तो संरक्षित होगा ही, साथ ही ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन लगभग 62 प्रतिशत तक काम होगा। बिहार कृषि विश्वविद्यालय में शोध में जुटी वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा विकसित यह सभी फसल प्रभेद जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील हैं।
इन फसलों में बदलते मौसम में बेहतर और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन की क्षमता है। इनमें पानी का उपयोग कम करते हुए लंबे समय तक खेतों की मिट्टी जीवित रखी जाती है। इससे कम लागत में गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त होती है।
वैज्ञानिकों ने लगातार गिरती उत्पादकता बढ़ाने के लिए फसलों के नए प्रभेदों को विकसित करने में सफलता पाई है। इन फसलों पर बदलते मौसम का कम असर होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी फसलों के जीवन चक्र में बदलाव से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में ह्रास के साथ उपज क्षमता में भी कमी देखी जा रही है। वही जलवायु परिवर्तन की मार से कई फसलें समय पहले ही पर पक रही है जिसके कारण उनका उत्पादन बहुत कम हो पाता है।
बुवाई से कटाई तक बढ़ेगी उत्पादकता
कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में कहा है कि असायोजित जलवायु घटक बुवाई से कटाई तक फसली पौधों की उत्पादकता को घटाते हैं। धन और गेहूं को केंद्र में रखकर किया जा रहे इस शोध के अनुसार फसल की वृद्धि और उपज दिन-रात के उच्च तापमान से प्रभावित होते हैं।
जब फसल की बढ़वार पूरी तेजी से होनी होती है तो उस समय दिन का तापक्रम 20 डिग्री सेंटीग्रेड एवं रात का तापमान 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड रहना उपयुक्त माना जाता है। अभी के हालात में आदर्श तापमान से दिन-रात का तापमान अधिक हो गया है, जिससे पौधों में वृद्धि समान रूप से नहीं हो पा रही है।
इससे फसल बर्बाद होती है और उत्पादन घट जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित किए जा रहे फसलों के प्रभेद, मौसम रोधी नए परिवेश में बुवाई से लेकर कटाई तक फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक हो सकेंगे।
विकसित किए गए फसलों के 41 नए प्रभेद
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि अक्सर बाढ़, सूखा, गर्म हवाएं और भी मौसम होने वाली अतिवृष्टि/अनावृष्टि से पैदावार सामान से कम होती है। इससे खेती की लागत बढ़ती जाती है और फसलों को बाजार मूल्य भी बढ़ता है। इन चुनौतियों के बीच मौसम अनुकूल नई-नई फसल प्रभदोें का विकास किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन के हिसाब से सहनशील फसलों के कुल 41 नए प्रभेद विकसित किए गए हैं। हाल ही में विभिन्न फसलों के 11 नए प्रभेद़ों में पांच राष्ट्रीय स्तर के, तीन बिहार के लिए और तीन स्थानीय संस्थान के लिए जारी किए गए हैं।
इसके सम्बन्ध में डॉक्टर आर एस सेंगर ने बताया कि अत्यधिक तापमान से फसलों का जीवन चक्र छोटा हो जाता है जिसके चलते फसल कम गुणवत्ता के साथ पैदावार भी पहले से काफी कम हो रही है। शोध के आधार पर मौसम से तालमेल बैठाते हुए फसलों के नए प्रभेद विकसित किए जा रहे हैं ।
इससे फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी और उत्पादन लागत भी घट सकेगी, वर्तमान में इसके लिए विभिन्न संस्थाओं के वैज्ञानिक इसी दिशा में कार्य कर रहे हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।